Jhansi Hospital Fire: झांसी के मेडिकल कॉलेज में आग लगने से 10 शिशुओं की मौत के बाद पंचकूला सिविल अस्पताल में इलाज कराने आए मरीजों में डर बना हुआ है। बता दे कि पत्रिका की पड़ताल राज्य के बड़े सरकारी अस्पतालों की हालत चिंताजनक रायपुर/जगदलपुर/राजनांदगांव/बिलासपुर/. झांसी मेडिकल कॉलेज की एनआईसीयू में आगजनी के बाद पत्रिका टीम ने रायपुर के आंबेडकर अस्पताल, बिलासपुर में सिम्स सहित कई जिला एवं मेडिकल कॉलेज को खंगाला।
Hospital Fire: कुछ जगह तो स्थिति ठीक दिखी लेकिन कहीं कहीं अभी हालात चिंताजनक हैं। फायर सेफ्टी को लेकर अभी भी गंभीरता नहीं दिख रही है। सिम्स बिलासपुर जहां 2019 में 5 बच्चों की मौत ऐसी ही घटना में हो चुकी है वहां अब भी फायर सेफ्टी की पाइप लाइन बिछाने का काम ही चल रहा है।
बस्तर में बडे अस्पताल के पास फायर एनओसी ही नहीं है तो राजनांदगांव में इलेक्ट्रिक आडिट में मिली खामियों को सुधारा नहीं गया है। अस्पतालों में बिजली के तारों के रखरखाव को लेकर गंभीर खामियां मिल रही हैं। शॉर्ट सर्किेट बड़े हादसों की वजह बनता है लेकिन संबंधित विभाग अस्पताल प्रबंधन की शिकायतों के बाद भी ध्यान नहीं देते हैं।
Hospital Fire: सिम्स बिलासपुर: फायर फाइटिंग सिस्टम का काम अब भी अधूरा
Jhansi Hospital Fire: छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान ( सिम्स) में की हॉस्पिटल बिल्डिंग में 22 जनवरी 2019 को शार्ट सर्किट से आग लगी थी जिसमें एसएनसीयू में भर्ती 5 नवजातों की मौत हुई थी। इसके बाद अब तक सबक नहीं लिया गया है। अब भी यहां फायर सेफ्टी को लेकर पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। सिम्स की हॉस्पिटल बिल्डिंग में उलझे तारों के बीच शार्ट सर्किट की वजह से आग लगी थी।
हॉस्पिटल बिल्डिंग में जगह-जगह मकड़ज़ाल की तरह फैले बिजली के तार हर समय खतरे को आमंत्रित कर रहे हैं। इन्हें व्यवस्थित करने कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। फायर सेफ्टी के लिए महज अग्निशमन यंत्र ही रखे हैं, वो भी नाकाफी हैं। एम एस डॉ. लखन सिंह ने बताया कि फायर सिस्टम बनाने का काम अभी चल रहा है। बिल्डिंग में सेंसर वाली पाइप लाइनें बिछाई जा रही हैं।
बस्तर: बड़े सरकारी अस्पताल के पास नहीं फायर एनओसी
संभाग के सबसे बड़े महारानी अस्पताल का संचालन ही बिना फायर एनओसी के हो रहा है। 100 बेड वाले इस जिला अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड, सर्जिकल, मेडिकल, बर्न वार्ड, आयुष्मान, प्रसूति वार्ड, आईसीयू सहित कई आपरेशन थियेटर हैं। अस्पताल में नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 के निर्धारित मापदंडों के तय निर्देशों का उल्लंघन हो रहा है।
सुरक्षा के नाम पर कुछ अग्निशमन यंत्र दिखे बस, लेकिन इनका भी सर्वे लंबे वक्त से नहीं हुआ है। वहीं डिमरापाल मेडिकल कॉलेज ठीक व्यवस्थाएं होने से फायर एनओसी भी मिली हुई है। लेकिन यहां शॉर्ट सर्किट का खतरा बना हुआ है। वार्ड में समय समय पर स्पार्किंग होते देखी गई है।
राजनांदगांव : इलेक्ट्रिक ऑडिट में मिली समस्याएं नहीं सुधरीं
बसंतपुर स्थित जिला अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट दो महीनों से बंद पड़ा है। इसके चलते 100 बिस्तर मदर एंड चाइल्ड केयर यूनिट में सेंट्रल ऑक्सीजन पाइप लाइन से ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो रही। यहां सिलेंडर से ही काम चलाया जा रहा है। यहां दो महीने पहले इलेक्ट्रॉनिक ऑडिट में सामने आई समस्याओं को भी अब तक दूर नहीं किया गया है जबकि इसी बिल्डिंग में गायनिक वार्ड के साथ ही बच्चा वार्ड व एसएनसीयू भी संचालित है।
यहां ऑडिट में सामने आया है कि अर्थिंग की समस्या है। इसके अलावा विद्युतीकरण के दौरान कम एम्पीयर के तार लगाए गए हैं। यहां फायर सिस्टम पाइप लाइन बिछी हुई है, लेकिन पूरे बिल्डिंग में कहीं पर भी फायर सिलेंडर नजर नहीं आया। सिविल सर्जन डॉ. यूके चंद्रवंशी ने कहा कि उसे दुरुस्त करा लिया जाएगा।
रायपुर: हाल ही में करवाया सेफ्टी आडिट
आंबेडकर अस्पताल में 5 नवंबर को न्यू ट्रामा सेंटर के ओटी में आग लगने के बाद नियोनेटल इंटेसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में पिछले सप्ताह ही फायर फायटिंग सिस्टम व इलेक्ट्रिकल का ऑडिट करवाया गया है। आंबेडकर अस्पताल के एनआईसीयू में पड़ताल के लिए हालांकि रिपोर्टर को अंदर जाने की अनुमति नहीं मिली।
सूत्रों से पता चला कि 6 व 7 नवंबर को ग्राउंड व प्रथम फ्लोर पर स्थित 40 बेड की नर्सरी का फायर फायटिंग सिस्टम व वायरिंग का ऑडिट कराया गया है। नर्सरी में लगे सी-पेप यानी बच्चों का वेंटीलेटर, वाॅर्मर, मॉनीटर, इंफ्यूजन पंप, फोटोथैरेपी मशीन व अन्य उपकरणों की जांच भी की गई। उल्लेखनीय है कि 11 साल पहले यहां प्रथम तल पर एनआईसीयू में आग लगी थी हालांकि समय रहते बच्चों को शिफ्ट कर दिया गया था।
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