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दोस्ती की महत्ता के लिए यह भी कहा जाता है कि पानी पीयो छानकर, दोस्त बनाओ जानकर। छत्तीसगढ़ में दोस्ती के कई रूप हैं। हमने जाने-माने छत्तीसगढ़ी कवि मीर अली मीर से जाना कि हमारे यहां दोस्ती की क्या परंपरा रही है। सबसे ज्यादा प्रचलित है मितान और महाप्रसाद। कोई भी किसी से भी मितान या महाप्रसाद बद सकता है। बदना के मायने हैं तय करना। यह भी पढ़ें
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नाम लेकर नहीं पुकारते मितान एक-दूसरे का नाम नहीं लेते। एक-दूसरे को मितान या महाप्रसाद संबोधित हैं। मितान की पत्नी का भी नाम नहीं लिया जाता। जब दो लोग मितान बनते हैं तो दोनों की पत्नियां खुद ही मितानिन हो जाती हैं। जब मितान के माता-पिता मितान के घर जाते हैं तो उन्हें सगे रिश्तेदारों से ज्यादा सम्मान दिया जाता है। मीत मितानी तीज-त्योहारों में ऐसे गहराती है दोस्ती इहां गंगाजल अउ तुलसी दल रथे दौना पान गांव-गांव मा गजामूंग बगरे हे मिताना भोजली अउ जंवारा संग संघरथे सीता-राम
सद्भावना सिखो दिन हमर पुरखा अउ सियान गजामूंग: रथ यात्रा के दौरान गजामूंग बदा जाता है। महाप्रभु के इस प्रसाद को साक्षी मानकर गजामूंग मितान बदा जाता है। जवारा: नवरात्रि के बाद जवारा विसर्जन के दौरान जवारा बदने की प्रक्रिया होती है। विसर्जन के बाद कुछ जवारा बचा लेते हैं। उसी को कान में खोंचकर जवारा बदते हैं।
गंगाजल: जब दो दोस्त या सहेलियां एक-दूसरे को स्नेह करने लगते हैं तो वे गंगाजल बद लेते हैं। घर पर विधिविधान से गंगाजल पीया जाता है। भोजली: राखी के दौरान भोजली बदते हैं। भोजली को पहले तालाब में धोया जाता है, फिर बदने की प्रक्रिया होती है।
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ऐसे बनते हैं मितान चावल के आटे का चौक पूरकर उस पर दो पीढ़ा रखते हैं। पीढ़े पर मितान बनने वाले खड़े होते हैं। दोनों एक-दूसरे पर दूबी से जल के छींटे मारते हैं। तिलक लगाकर पीला चावल छिड़कते हैं। कान पर फूल, दूबी या जवारा खोंसा जाता है। इसके बाद फूलों की माला पहनाकर नारियल भेंटकर गले मिलते हैं। किसी भी मंदिर के सामने, किसी भी सार्वजनिक आयोजन के दौरान मितान बद सकते हैं। अखंड रामायण, यज्ञ या कथा के मौके पर मितान बनना महाप्रसाद कहलाता है। सिर्फ महिलाएं ही बदती हैं दौना पान दोस्ती के जितने भी छत्तीसगढ़ी वर्जन हैं वे कॉमन हैं। लेकिन दौनापान को सिर्फ महिलाएं ही बदती हैं। यह एक तरह के पौधे का सुगंधित पत्ता होता है। दौना पान बहुत प्रसिद्ध है। इस पर कई छत्तीसगढ़ी एल्बम भी बनाए गए हैं। कई हिट भी हैं।
और पहुंच गए 57 के साथी से मिलने मृत्युंजय शर्मा के चार मित्र हैं कनक तिवारी, धनेन्द्र जैन, डॉ. डीपी चंद्राकर, अजय सिंह गुप्ता और नंद किशोर शर्मा। ये सभी “संत्तावन के साथी” के रूप में जाने जाते हैं। सभी अस्सी बरस की उम्र पार कर चुके है। सभी एक-दूसरे से मोबाइल पर कनेक्ट रहते हैं। हाल ही में मृत्युंजय शर्मा को कनक तिवारी से मिलने की तलब हुई। चूंकि मृत्युंजय चलने में तकलीफ है इसलिए उनके बेटे त्रयम्बक ने कार पर ही भेंट मुलाकात करा दी। दोनों के बीच जमकर हंसी-ठिठोली हुई। यह तस्वीर उसी वक्त की है।
मेडिकल कॉलेज में मिले, हो गई दोस्ती एनआईटी के असिस्टेंट प्रोफेसर गोवर्धन भट्ट ने बताया, 2013 में मेरी मुलाकात मेडिकल कॉलेज में बृजेश राय से हुई। हम दोनों मेडिकल चेकअप के लिए गए थे। थोड़ी देरे में ही हम घुलमिल गए। वे सिविल जज हैं। एक छोटी सी मुलाकात दोस्ती में बदली और आज भी जारी है। हर मौके पर हमारी बात होती है।