रायपुर

झीरम घाटी में हुई थी 31 कांग्रेसी नेताओं की बर्बर हत्या, जानिए उस खौफनाक दिन से जुड़ी सारी बातें

पांच साल पहले 25 मई 2013 में सुकमा के झीरम घाटी में हुए देश की सबसे खौफनाक माओवादी वारदात को याद कर आज भी लोगों की रूह कांप जाती है

रायपुरMay 25, 2018 / 01:23 pm

Ashish Gupta

झीरम घाटी में हुई थी 31 कांग्रेसी नेताओं की बर्बर हत्या, जानिए उस खौफनाक दिन से जुड़ी सारी बातें

राजनांदगांव. ‘दोपहर 3.20 पर नंदकुमार पटेल, कवासी लखमा और पटेल के पुत्र दिनेश पटेल एक गाड़ी में सवार होकर आगे बढ़े। पीएसओ पीछे की गाड़ी में था। उनके पीछे मलकीत सिंह गेंदू की गाड़ी में महेन्द्र कर्मा सवार थे। पीछे योगेन्द्र की गाड़ी में बस्तर प्रभारी उदय मुदलियार, अलानूर भिंडसरा थे। विद्याचरण शुक्ल की तबियत ठीक नहीं थी, वे कुछ देर से निकलना चाहते थे। पटेल ने एनएसयूआई नेताओं निखिल और देवेन्द्र यादव (अब भिलाई महापौर) को शुक्ल के साथ आने कहा।’
दोपहर बाद करीब 3.50 से काफिले पर हमला शुरू हो गया था। 4.15 के आसपास सबसे पीछे विद्याचरण की लैंडक्रूजर पहुंची। इसी दौरान एक गोली इंजन के पास लगी। इंजन सीज हो गया। गाड़ी बंद हो गई। गोलियां लगातार चल रही थीं। करीब डेढ़ घंटे लगातार अंधाधुंध फायरिंग होती रही।

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90 फीसदी थी युवतियां
सैकड़ों की संख्या में माओवादी इस समय मौजूद थे। उनमें से करीब 90 फीसदी युवतियां थीं। युवतियों की उम्र 17 से 23 साल की थीं। सबकी सब बेहद क्रूर थीं। गोलियां मारने, घायलों और मृत लोगों को चाकू मारने में उनको कहीं पर भी झिझक नहीं थी। क्रूरता से लोगों को मारा जा रहा था। मौके पर मौजूद माओवादी किसी देवा नाम के व्यक्ति से सेटेलाइट फोन पर निर्देश भी लेते जा रहे थे।

कोडवर्ड में बात कर रहे थे हमलावर
एस आकार की घाटी में एक ओर खाई थी तो दूसरी ओर करीब 12 से 15 फीट ऊंची पहाड़ी। इसी पहाड़ी से माओवादी हमला कर रहे थे। लगातार गोलियां चला रहे थे। वे एक-दूसरे से कोडवर्ड में चिडिय़ों जैसी आवाज निकालकर बात कर रहे थे।

सचेत करते रहे
फायरिंग में वीसी शुक्ल को गोली लग गई थी। उनका खून खूब बह रहा था, लेकिन वो बार-बार बाकियों को सचेत कर रहे थे, हिलो मत… गोली तुम्हें भी लग सकती है।

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नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल को ढूंढ रहे थे माओवादी

माओवादी गाड़ियों में नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल को ढूंढ रहे थे। नंदकुमार पटेल और दिनेश को माओवादी नहीं पहचानते थे, इसलिए उनके बारे में बार-बार पूछ रहे थे।
छह बज चुके थे… गोलीबारी लगभग थम गई थी। माओवादी पहाड़ी से नीचे उतर गए थे और गाड़ियां चेक कर रहे थे, जो लोग गाड़ियों में ही गोली लगने से मारे जा चुके थे, उन्हें चाकू मारकर नीचे फेंक रहे थे। बचे हुए लोगों को बंधक बना रहे थे। इस बीच महेन्द्र कर्मा अपनी गाड़ी से उतरे और अपना परिचय देते हुए कहा कि मुझे बंधक बना लो, बाकी लोगों को छोड़ दो।
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गोली मारने का निर्देश
माओवादी मारे गए लोगों को नीचे फेंकते और बचे लोगों को बंधक बनाते जब विद्याचरण की गाड़ी के पास पहुंचे, तो गोंडी भाषा जानने वाले ड्राइवर बाला ने हाथ ऊपर कर कहा कि वह निर्दोष है। उसने विद्याचरण शुक्ल को तेंदूपत्ता ठेकेदार बताया। निखिल को विद्याचरण शुक्ल का नाती बताया। दो गोली खा चुके विद्याचरण को गाड़ी से नीचे उतारकर बाकी लोगों को बंधक बनाया गया और उन्हें बंदूक के बट से मारा गया। इस बीच ऊपर पहाड़ी से निर्देश दे रहे रमन्ना नाम के व्यक्ति ने बंधक बनाए गए सभी लोगों को मार डालने का निर्देश दिया।

30 फीट दूर महेन्द्र कर्मा को मारा
गाडिय़ों से लोगों को उतारकर बंधक बनाकर जमीन पर लिटा दिया गया था। कई नेता और पीएसओ सहित करीब 23 लोग बंधक थे। सभी जमीन पर लेटे थे। इनसे करीब 30 फीट दूर पर महेन्द्र कर्मा को खड़े कर गोलियों मारी गईं।

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नहीं भूले हैं, गोलियों की आवाज और चीखें…
गांव वालों के सामने झीरम घटना का जिक्र करने से वे सिहर उठते हैं। गांव के कुछ लोगों ने बताया, घटना के दौरान उनके घर तक न केवल गोलियों की आवाज आ रही थी, बल्कि घटना में फंसे लोगों की चीखें भी साफ सुनाई दे रही थीं। लेकिन डर की वजह से मदद के लिए गांव से कोई नहीं जा सका।

नहीं रोकते घाटी में गाड़ी…
झीरम घाटी से अक्सर गुजरने वालों में तो खौफ नजर नहीं दिखता। बाहरियों में डर जरूर देखा जा सकता है। हमने घाटी में लिफ्ट मांगी तो किसीं ने वाहन नहीं रोका। काफी देर बाद एक स्थानीय व्यापारी ने रूककर परेशानी पूछी। आगे केसलूर के पास एक ढाबे में हमें वहीं बस्तर से बाहर के लोग मिल गए, जिन्होंने घाटी में वाहन नहीं रोका था। कारण पूछने पर कहा ‘झीरम घाटी में कौन गाड़ी रोकेगा…’।

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