स्किन डोनेशन को लेकर जागरुकता कुछ भ्रांतियों की वजह से प्रदेश में स्किन डोनेशन करने वाले कम है। इसके बावजूद अस्पताल प्रबंधन लोगों को जागरू़क करने करने के लिए विभिन्न संस्थाओं से संपर्क कर रहा है। इसके लिए सीएमई यानी कंटीन्यू इन मेडिकल एजुकेशन के साथ वर्कशॉप का आयोजन भी किया जा रहा है। कैडेवर यानी डेड बॉडी से स्किन निकाली जाती है। यह सब परिजनों की सहमति के बाद होता है। डीकेएस में प्लास्टिक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. दक्षेश शाह के अनुसार आग से झुलसे हुए, दुर्घटना में स्किन निकलने के बाद इसमें ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। बैंक की स्थापना के बाद लोगों को जागरूक करना सबसे बड़ी चुनौती है।
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एम्स से एक डोनेशन मिला बाकी पांच डीकेएस का डीकेएस को अभी तक 6 स्किन डोनेशन मिल चुका है। इसमें पांच डीकेएस में भर्ती मरीजों का है। एक डोनेशन एम्स से मिला है। जिस मरीज की स्किन निकाली निकाली गई, उनका हार्ट व फेफड़े का भी डोनेशन किया गया। चूंकि एम्स में अभी स्किन बैंक नहीं है। इसलिए डीकेएस प्रबंधन वहां कैडेवर बॉडी से स्किन लेता है। इसके लिए एक डीकेएस व एम्स प्रबंधन के बीच कुछ समझौता भी हुआ है। ये दोनों सरकारी संस्थान हैं इसलिए डोनेशन में ज्यादा दिक्कत नहीं है। गौरतलब है कि सोटो यानी स्टेट ऑर्गन ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन में किसी भी ट्रांसप्लांट के लिए पंजीयन अनिवार्य है। प्रदेश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट पॉलिसी के तहत अब प्रदेश में किडनी के अलावा लीवर ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। फेफड़े, हार्ट ट्रांसप्लांट अभी एक भी नहीं हुआ है। इसके लिए निजी अस्पताल जरूरी संसाधन जुटा रहे हैं। अभी जो भी किडनी व लीवर ट्रांसप्लांट हुए हैं, वे बड़े निजी अस्पतालों में हुए हैं। एम्स में भी किडनी ट्रांसप्लांट शुरू हो गया है। सीनियर प्लास्टिक सर्जन डॉ. कमलेश अग्रवाल व डॉ. नवीन खूबचंदानी के अनुसार देश में स्किन बैंकों की संख्या सीमित है। इसलिए स्किन की उपलब्धता कम है। इसके बावजूद जो भी उपलब्ध है, वह मरीजों की लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। सीनियर प्लास्टिक सर्जन डॉ. कमलेश अग्रवाल व डॉ. नवीन खूबचंदानी के अनुसार देश में स्किन बैंकों की संख्या सीमित है। इसलिए स्किन की उपलब्धता कम है। इसके बावजूद जो भी उपलब्ध है, वह मरीजों की लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है।