3 माह से बाकी है भुगतान
वन विभाग के अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार कोरोना काल से पूर्व जंगल सफारी के मांसाहारी और शाकाहारी वन्य प्राणियों को खाना की सप्लाई देने वाले ठेकेदारों को एक माह के बाद भुगतान हो जाता था। भुगतान समय पर होने का प्रमुख कारण प्रबंधन की आय थी। प्रबंधन को वन विभाग से पैसा नहीं मांगना पड़ता था। वर्तमान में कोरोना काल की वजह से पर्यटकों की संख्या में कमी आई है।
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इसका सीधा असर सफारी की कमाई पर पड़ा है। पैसा नहीं आने से प्रबंधन पूरी तरह से वन विभाग के भरोसे हो गया है। प्रबंधन के जिम्मेदार बिल भेजते है, तो पैसों की कमी के चलते पेंडिंग में डाल दिया जाता है। बिल पेंडिंग होने से समय पर भुगतान नहीं हो पाता, जिसका असर अब ठेकेदारों पर पडऩे लगा है।
कर्मचारियों का भुगतान भी लेट
जंगल सफारी में संविदा में रखे गए लगभग ७० कर्मचारियों का भार भी अब वन विभाग पर आ गया है। संविदा नियुक्ति पर रखे गए, इन कर्मचारियों को कलक्ट्रेट दर पर भुगतान दिया जाता है। कोरोना काल से पूर्व हर माह की १ से ७ तारीख के बीच भुगतान कर दिया जाता था। कोरोना संक्रमण का प्रकोप बढऩे के बाद महीनों से तनख्वाह दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को नहीं मिली है। कर्मचारियों ने पूर्व मंे प्रदर्शन किया था, तो अफसरों ने जुलाई-अगस्त का भुगतान समय पर किया। सितंबर और अक्टूबर में फिर से कई कर्मचारियों का भुगतान अटका दिया गया है।
ये वन्य प्राणी सफारी में
जंगल सफारी में वर्तमान में बाघ, शेर, सफेद बाघ, तेंदुआ, दरियाई घोड़ा, मगरमच्छ, हिरण और भालू समेत अन्य वन्य प्राणियों का रखा गया है। इन वन्य प्राणियों के भोजन में मंथली खर्च लाखों रुपए का होता है। यह खर्च पूर्व में पर्यटकों के आने से निकल जाता था। वर्तमान में इक्का-दुक्का पर्यटक आ रहे है। इसका सीधा असर वन विभाग के खजाने पर पड़ रहा है।
कोरोना के कारण कुछ भुगतान समय पर नहीं हो पा रहे है। मैने वरिष्ठ अधिकारियों को इन मामलों से अवगत कराया है। ज्यादा जानकारी के लिए आप उनसे बात कर लीजिए।
-एम. मर्सीबेला, डायरेक्टर, जंगल सफारी