रायपुर

चार दिन की चांदनी है स्टारडम, मैं घमंड नहीं करती: अनिकृति

300 से ज्यादा धार्मिक एलबम्स करने के बाद साल 2015 में आए हम बाराती से डेब्यू करने वाली अनिकृति ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दीं और उनके नाम के आगे स्टारडम जुड़ गया।

रायपुरJul 27, 2021 / 01:03 pm

Tabir Hussain

चार दिन की चांदनी है स्टारडम, मैं घमंड नहीं करती: अनिकृति

रायपुर/ ताबीर हुसैन. स्टारडम को मैं चार दिन की छाया चांदनी मानती हूँ। जिनकी बदौलत आपको स्टारडम मिला हो उनके प्रति सदा कृतज्ञता होनी चाहिए, घमंड नहीं। हंस झन पगली के बाद जिस तेजी से मेरी फैंस फॉलोइंग बढ़ी है उसके लिए तो सतीश सर की वजह से। उनके जैसे डायरेक्टर संग काम करना मेरी किस्मत है। फिल्मों में मुझे लाने वाले दिवंगत अभिनेता आशीष शेन्द्रे हैं। मैं जीवनभर उनकी आभारी रहूंगी। यह कहना है छत्तीसगढ़ी फिल्म अभिनेत्री अनिकृति चौहान का। मंगलवार को उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल लॉन्च किया। अभिनेत्री के फेसबुक और इंस्टाग्राम पर लाखों फॉलोअर्स हैं। 300 से ज्यादा धार्मिक एलबम्स करने के बाद साल 2015 में आए हम बाराती से डेब्यू करने वाली अनुकृति ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दीं और उनके नाम के आगे स्टारडम जुड़ गया।

विरासत से मिली कला

हर किसी का अपना संघर्ष होता है मेरा भी रहा। कला मुझे विरासत से मिली है। मेरी मां को गायन में रुचि थी। चाचू वीडियो एल्बम एडिटिंग किया करते थे। ऐसे माहौल में मैं पढ़ी-बढ़ी। मेरे टाइम पर स्मार्ट फोन तो था नहीं। जो भी सीखा टीवी देखकर। चाहे डांस हो या अभिनय। फि़ल्म से पहले मैंने 300 से ज्यादा एल्बम किए थे। प्रेम सुमन से मुझे सिल्वर स्क्रीन की पहचान मिल चुकी थी। मैंने स्कूली छात्रा का रोल किया था। स्कूल ड्रेस में स्कूली बच्चों को ऑटोग्राफ देना यादगार पल रहा है।

पिता को समर्पित है चैनल, प्रतिभाओं को दूंगी मौका

यह चैनल मैंने पिता अनिल सिंह चौहान के नाम से लॉन्च किया है। करीब 3 साल पहले उनका देहांत हो गया था। मेन कॉनसेप्ट तो यही कि कोरोनाकाल से मिली सीख। इसकी मार हर तरफ पड़ी। हमारी इंडस्ट्री भी ठप हो गई। लोगों को काम नहीं मिल रहा। यूट्यूब के जरिए मैं भी एक्टिव रहूंगी और यहां की प्रतिभाओं को एक प्लेटफॉर्म मिलेगा।

चैलेंजिग रोल की चाहत

आगे मेरी इच्छा है कि नारी प्रधान और चैलेंजिग रोल करूँ। हमारी इंडस्ट्री अभी मर्दानी, शेरनी या मणिकर्णिका जैसी नारी प्रधान फिल्में नहीं बना रही है। इसके पीछे यहां की ऑडियंस की पसंद भी है। यहां फैमिली ड्रामा ज्यादा पसंद किया जाता है। अगर ऐसे किरदार को लेकर एक्सपेरिमेंट किया जाए तो मैं बिल्कुल करना चाहूंगी।

फिल्म सिटी से ज्यादा जरूरी है थियेटर

छत्तीसगढ़ी इंडस्ट्री को बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी चीज है कि गांव-गांव में थियेटर खोले जाएं, क्योंकि जब तक लोग फिल्में नहीं देखेंगे बात आगे कैसे बढ़ेगी। फिल्म सिटी बनाने की बात तो अच्छी है लेकिन उससे पहले बुनियाद मजबूत करनी होगी।

आजादी मिले तो बेहतर नतीजे आते हैं

एक सवाल पर अभिनेत्री ने कहा कि अब डायरेक्टर किसी भी एक्टर को यह आजादी दे कि वह अपना एफर्ट लगाकर रोल को बेहतर कर सके तो अच्छे नतीजे आते हैं। मैंने सतीश सर के साथ काम किया है। वे कलाकारों को इस बात की छूट देते हैं कि वे किसी सीन में कोई एक्सपेरिमेंट करें। कई बार वह सीन इतना अच्छा बन पड़ता है जिसके बारे में किसी ने सोचा भी न हो।

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