बेमेतरा में मायका और जांजगीर में ससुराल था लेकिन भाग कर रायपुर में अपनी सहेली के पास आ गई। सहेली उसे महिला आयोग के परिवार परामर्श केंद्र लेकर आ गई और आयोग में तीन काउंसलरों ने लड़की के माता-पिता को बुलाकर ४ घंटे तक काउंसिलिंग की। उसके बाद पिता को यह अहसास हुआ कि वो कहा गलत कर रहे थे। अपनी गलती मानते हुए लड़की के पिता ने कहा कि अब अपनी बेटी को तलाक भी दिलवाऊंगा और आगे पढ़ाई भी कराउंगा।
आयोग ने दिया संदेश की बेटियों की इच्छाओं को दे प्राथमिकता
जलविहार कॉलोनी में संचालित हो रहे राज्य महिला आयोग में नए साल की शुरुआत के साथ ही परिवार परामर्श केंद्र भी संचालित होने लगा है और यहां पर तीन काउंसलर रोजाना आयोग में आने वाले मामलों में कांउसिंलिंग करते है। इसी कड़ी में 9 जनवरी को आयोग में दो लड़किया अपनी परेशानी लेकर पहुंची, जिस लड़की को परेशानी थी वो इंजीनियरिंग ग्रेज्युएट थी।
रेखा( बदला नाम) बेमेतरा में माता-पिता के साथ रहती थी और २ साल पहले ही उसकी शादी जांजगीर में की गई थी । पति सरकारी नौकरी वाला था, लेकिन रेखा आगे पढऩा चाहती थी और उसे ससुराल वाले घर तक ही सीमित रखना चाहते थे। रेखा ने अपने पिता से बात की, पिता का मध्यम स्तर का कारोबार था। पिता ने जब सुना कि रेखा आगे पढऩा चाहती है तो उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि अब ससुराल ही तुम्हारा घर है और वहीं तुम्हारा भविष्य तय करेंगे।
नहीं मिला कहीं सहारा तो सहेली के पास आ गई
रेखा को मायके और ससुराल से सहारा नहीं मिला तो वो अपने ससुराल जांजगीर से बिना किसी को बताए रायपुर अपनी सहेली के पास आ गई। रायपुर में उसकी सहेली अकेली रहती थी। सहेली उसे आयोग लेकर आई और यहां आने पर आयोग द्वारा रेखा के पिता को बुलाया गया। पिता भी कई दिनों से परेशान थे उन्होंने थाने में भी अपनी बेटी के लापता होने की रिपोर्ट लिखाई थी।
बेटी की शादी करना ही प्राथमिकता नहीं
आयोग की सदस्य खिलेश्वरी किरण भी काउंसिलिंग में शामिल थी। आयोग के प्रभारी सचिव अभय देवांगन ने बताया कि यदि सही काउंसिलिंग सही समय पर हो जो तो उसके सकारात्मक परिणाम निकलते है। 4 घंटे तक काउंसलरों ने रेखा और उसके माता-पिता से पूरे मामले को समझा। और यह कहा कि बेटी की इच्छाओं को प्राथमिकता दें, यह न समझे कि बेटी की शादी करना ही बेटी को सेटल करना होता है बल्कि अब बेटिया भी आत्मनिर्भर होना चाहती हंै। इसलिए पहले उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करें। लड़कियों की भी अपनी प्रााथमिकता है वो अपने विचार रखती है। माता-पिता को लड़कियों की शादी के बजाय उनकी इच्छाओं को प्राथामिकता देना चाहिए।