राजधानी में सबसे ज्यादा धूल टाटीबंध चौक में है। ओवरब्रिज बन जाने के बाद सर्विस रोड का काम अधूरा जिसके कारण यहां से गुजरने वाले लोग धूल से नहा रहे हैं। धूल से प्रभावित मरीजों पर आंबेडकर अस्पताल के चेस्ट एंड टीबी विभाग में एक स्टडी भी की गई है। जिसमें उनके बीमार होने का प्रमुख कारण धूल रहा। धूल के कारण लोगों को सांस लेने में परेशानी होने लगी है। स्टडी में क्षेत्र पाया गया कि मरीज राजधानी के विभिन्न इलाकाें के हैं। कुछ आउटर के भी हैं। चेस्ट विभाग की ओपीडी में अस्थमा, एलर्जी, ब्राेंकाइटिस के मरीज काफी संख्या में पहुंच रहे हैं।
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शुक्रवार को ओपीडी में 130 मरीजों का इलाज किया गया, जिसमें 50 से ज्यादा मरीज धूल के कारण हुई बीमारियों के कारण इलाज कराने पहुंचे थे। सालभर पहले ऐसे मरीजों की संख्या 10 से 12 होती थी। पिछले सालभर में 1200 से ज्यादा मरीजों पर स्टडी की गई, जिसमें धूल वाले मरीज प्रमुख रहे। लोगों को हेलमेट व मॉस्क लगाकर बाइक चलाने की हिदायत दी गई। इस तरह प्रभावित करती है धूल बढ़ती उम्र के कारण बुजुर्गों के शरीर के कई अंग काफी धीमी गति से काम करते हैं। इसके कारण उनका फेफड़ा ताजी हवा को फिल्टर नहीं कर पाता है। यही कारण है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से बुजुर्गों को सांस से जुड़ी कई समस्याएं हो जाती है। केवल बुजुर्ग नहीं हर उम्र के लोग धूल से प्रभावित होते हैं।
15 फीसदी धूल कंस्ट्रक्शन से पं. रविवि के कैमिस्ट्री विभाग के शोध में पता चला है कि सबसे ज्यादा धूल 43 से 55 फीसदी रोड ट्रैफिक के कारण उड़ती है। इसके बाद 28 से 32 फीसदी उद्योग, 22 से 24 फीसदी कचरा जलाने, कंडे व सिगड़ी के कारण व सबसे कम 15 फीसदी तक कंस्ट्रक्शन है।
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टॉपिक एक्सपर्ट धूल के कारण अस्थमा, एलर्जी व सांस से जुड़ी बीमारियों के मरीज 4 से 5 गुना बढ़ गए हैं। ओपीडी में 25 से 30 फीसदी मरीज ऐसे ही होते हैं। मरीज ही नहीं सामान्य लोगों को भी मास्क लगाकर घर से बाहर निकलना चाहिए। – डॉ. आरके पंडा, एचओडी चेस्ट आंबेडकर अस्पताल कोरोनाकाल में लोग घर ही नहीं बाहर भी मॉस्क लगा रहे थे। इसके कारण धूल के कारण सांस सबंधी होने वाली बीमारियों में कमी आई थी। दरअसल मास्क हवा को फिल्टर कर नाक के माध्यम से फेफड़े तक भेज रहा था। – डॉ. योगेंद्र मल्होत्रा, प्रोफेसर मेडिसिन आंबेडकर अस्पताल