CG ELECTION 2018: कोमल या गिरवर जीते तो खैरागढ़ हो जाएगा लोधी गढ़
राहुल जैन/रायपुर. चुनाव में जीत के लिए प्रत्याशियों को सिर्फ वोट लेने ही नहीं, बल्कि सामने वाले का वोट काटने में भी माहिर होना चाहिए। जिस प्रत्याशी ने कार्यकर्ताओं की ताकत का सही इस्तेमाल और बूथ मैनेजमेंट कर लिया उसकी जीत पक्की मानी जा सकती है।
जीत का यह गणित इस विधानसभा चुनाव में साफ नजर आता है। चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या को देखें तो कुछ सीटों पर आश्चर्यजनक रूप से उम्मीदवारों की बाढ़-सी आ गई थी। स्थिति यह रही कि कुछ पांच-छह सीटों के पूरे उम्मीदवारों को जोड़ दें तो भी उससे अधिक उम्मीदवार रायपुर दक्षिण सीट से चुनाव मैदान में उतरे।
इस सीट से 46 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। उम्मीदवारों के विश्लेषण से एक बात और साफ होती है कि इस चुनाव में कांग्रेस की तुलना में भाजपा के दिग्गज उम्मीदवारों के सामने ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी खड़े हुए। राजनीति के पंडित इसे बूथ मैनेजमेंट का बड़ा तरीका मान रहे हैं।
रायपुर शहर की दो अहम सीटों को देखें तो रायपुर दक्षिण और रायपुर पश्चिम में मतदान का प्रतिशत काफी कम है। जबकि इन दोनों सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या सबसे अधिक है। राजनीति के जानकारों की मानें तो कमजोर बूथ से वोट काटने की रणनीति के लिए निर्दलीय प्रत्याशियों को खड़ा करवाया जाता है। रायपुर दक्षिण की बात करें तो यहां अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं की संख्या ठीक-ठाक है।
यह भी एक अजब संयोग है कि अल्पसंख्यक वर्ग के करीब 23 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे। इन उम्मीदवारों ने किसका वोट काटा है कि इसका पता 11 दिसम्बर की मतगणना के बाद ही पता चलेगा। रायपुर पश्चिम की बात करें, तो यहां से कुल 37 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं। माना जा रहा है कि इसमें भी बूथ मैंनेजमेंट की बड़ी भूमिका है। हालांकि यहां के चार निर्दलीय प्रत्याशियों ने चुनाव के कुछ दिन पूर्व ही भाजपा को अपना समर्थन दे दिया था।
सर्वाधिक उम्मीदवारों के मामले में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की राजनांदगांव विधानसभा सीट तीसरे नम्बर पर है। यहां से 30 उम्मीदवार चुनाव मैदान है। इसके बाद बिल्हा और कसडोल सीट का नम्बर आता है। यहां से 29-29 उम्मीदवार चुनाव मैदान में अपना भाग्य आजमाने उतरे हैं। बिल्हा सीट भाजपा प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक और कसडोल सीट विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल की वजह से चर्चा में बनी हुई है।
घट-बढ़ रहे हैं उम्मीदवार राज्य निर्माण के बाद अब तक हुए विधानसभा चुनावों को देखें तो उम्मीदवारों की संख्या घटती-बढ़ती रही है। 2003 के विधानसभा चुनाव में कुल 819 उम्मीदवार थे। जबकि 2008 में 247 उम्मीदवारों का इजाफा हुआ और कुल संख्या 1066 तक पहुंच गई। 2013 में उम्मीदवारों की संख्या में पहली बार कमी हुई। इस चुनाव में 989 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे। इस विधानसभा चुनाव में अबतक के सबसे अधिक 1269 उम्मीदवार अपना भाग्य अजमा रहे हैं।
ज्यादा उम्मीदवार वाली सीटों पर भाजपा का वर्चस्व पिछले चुनाव पर नजर डालें तो 90 में से 21 विधानसभा सीटें ऐसी थीं, जहां 15 या फिर उससे अधिक उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इनमें से 16 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ चार सीट कोरबा, कोटा, बिल्हा और दुर्ग शहर की आई थी। वहीं जैजैपुर सीट पर बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी।
प्रतिद्वंद्वी का ध्यान बंटाने की रणनीति चुनाव विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर ने कहा, ज्यादा उम्मीदवारों के चुनाव लडऩे की पीछे दो प्रमुख वजह मानी जा सकी है। पहला यह है कि कई बार प्रतिद्वंद्वी का ध्यान बंटाने के लिए मजबूत प्रत्याशी दूसरे उम्मीदवारों को खड़ा करवाता है। हालांकि सीधे मुकाबले की स्थिति में कई बार नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। दूसरी वजह यह है कि जमानत की राशि बहुत कम होती है। कुछ लोग शौकियां तौर पर और अपने नाम को चर्चा में लाने के लिए भी चुनाव मैदान में उतर जाते हैं। बहुत से उम्मीदवार सावधानी बरतने और वोट बंटाने के उद्देश्य से भी यह काम करते हैं।
भाजपा के दिग्गजों व उम्मीदवारों का गणित
उम्मीदवार
सीट
प्रत्याशी
बृजमोहन अग्रवाल
रायपुर दक्षिण
46
राजेश मूणत
रायपुर पश्चिम
37
डॉ. रमन सिंह
राजनांदगांव
30
धरमलाल कौशिक
बिल्हा
29
गौरीशंकर अग्रवाल
कसडोल
29
अमर अग्रवाल
बिलासपुर
28
यह है कांग्रेस के दिग्गजों और उम्मीदवारों का गणित
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Hindi News / Raipur / छत्तीसगढ़ चुनाव: दिग्गजों की सीटों पर उम्मीदवारों की भीड़ में छिपा जीत और हार का गणित