छत्तीसगढ़ के प्रथम फिल्म “कहि देबे संदेश”
छत्तीसगढ़ में बनी पहली फिल्म “कही देबे संदेस” थी, जो 1965 में अनमोल चित्रमंदिर प्रोडक्शन के नाम से
रिलीज हुई थी और इसे खत्म होने में कुल 27 दिन लगे थे। छत्तीसगढ़ी फिल्म “कही देबे संदेस” में कान मोहन और सुरेखा ने प्रमुख भूमिकाएँ निभाईं। यह फिल्म सामाजिक चेतना को बढ़ाने और सामाजिक बुराइयों को उजागर करने के बारे में थी। 1960 और 1970 के दशक के दौरान समाज में प्रमुख जाति संरचना अस्पृश्यता और निरक्षरता को नुकसान पहुंचाने वाली फिल्म है।
“कही देबे सन्देश” के निर्माता निर्देशक कौन है कहा से है
इस फिल्म के लेखक निर्माता निर्देशक मानुनायक जी है। जिनका जन्म रायपुर जिला के कुर्रा गावं में हुआ था इनके पिता रामकिशन नायक जी थे। इनका जन्म 11 जुलाई 1937 को हुआ था। इसने मेट्रिक तक की पढाई की फिर 1956 -57 में ये मुंबई चले गए। वहा जाकर भी अपनी भाषा और संस्कृति को नहीं भूले। 1970 के दसक में अलग अलग भाषाओं में फिल्म निर्माण प्रारंम्भ हो गया था। जिससे प्रेरित होकर मानुनायक जी को भी अपने मातृभाषा में फिल्म बनाने की जिज्ञासा हुई और फिर वो फिल्म बनाने के लिए आगे बढे। उस समय फिल्म बनाना इतना आसान नहीं होता था।फिर भी इन्होने ये काम किया इसलिए इन्हे छत्तीसगढ़ी फिल्म के जनक भी कहा जाता है। कहि देबे संदेस के गीतों में मोहम्मद रफी, महेंद्र कपूर, मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर जैसे फनकारों ने अपनी आवाज दी थी।
तब तक फिल्म का नाम तय नहीं हुआ था, इसके पश्चात छत्तीसगढ़ी गीतों में संदेश होने की वजह से नाम रखा गया ‘कहि देबे भइया ला संदेश’. इस फिल्म की कहानी प्रेम- प्रसंग पर आधारित रखने का विचार हुआ लेकिन कालांतर में छूआछूत के खिलाफ स्टोरी लिखी गई तो नाम में ‘भइया ला’ हटाकर ‘कहि देबे संदेश’ रखा गया. नवंबर 1964 में फिल्म की शूटिंग छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला स्थित पलारी ग्राम में हुई. 16 अप्रैल 1965 को रायपुर, भाटापारा, बिलासपुर में प्रदर्शित इस फिल्म ने इतिहास रचने के साथ ही सुर्खियां भी बहुत बटोरी.
इंदिरा गांधी ने विवाद के चलते फिल्म देखी
उस दौर में फिल्म को लेकर भारी विवाद हुआ, ब्राह्मण और दलित की प्रेम कथा से लोग उद्वेलित हो गए और विरोध प्रदर्शन करने की धमकियां भी दी.इसी वजह से तत्कालीन मनोहर टॉकिज कें मालिक पं. शारदा चरण तिवारी ने फिल्म के पोस्टर उतरवा दिए और फिल्म का प्रदर्शन रोक दिया. आंदोलनकारी चाहते थे कि फिल्म को बैन कर दिया जाए। “लेकिन दो प्रगतिशील कांग्रेस नेताओं से मदद मिली: मिनी माता और भूषण केयूर। दोनों ने फिल्म के पक्ष में बात की। मुझे बताया गया कि इंदिरा गांधी (तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री) ने भी फिल्म के कुछ हिस्से देखे और कहा कि फिल्म राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देती है।
सरकार ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया तो सिनेमा घरों के संचालक इसे प्रदर्शित करने के लिए टूट पड़े. फिल्म ने सफलता पूर्वक प्रदर्शन कर इतिहास रचने के साथ ही छत्तीसगढ़ी सिनेमा में मनु नायक का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया गया.
कही देबे संदेश (संदेश देना) आज एक क्लासिक के रूप में माना जाता है। इस महीने की शुरुआत में इसे छत्तीसगढ़ी सिनेमा की स्वर्ण जयंती मनाने की प्रशंसा के बीच रायपुर में एक फिल्म समारोह में दिखाया गया था। फिल्म का प्रीमियर 16 अप्रैल, 1965 को दुर्ग और भाटापारा में हुआ था। विवाद के चलते इसे सितंबर में ही रायपुर में रिलीज किया गया था। मुंबई में रहने वाले नायक ने कहा, “यह राजकमल टॉकीज (अब राज) में आठ सप्ताह तक चला।”
छत्तीसगढ़ी फिल्म कही देबे सन्देश के गीत कौन कौन से है
कही देबे संदेस फिल्म में मुख्य गीत निम्न है-
झमकत नदिया बहनी लागे ,परबत मोर मितान हावय रे भाई। मै लइका अवं …..
तोर झनर झनर। .जियरा ला ले जाथे संगी …
तरी हरी ना मोर नाना सुवना हो। .. तरी हरी ना ना। ..