निरई माता में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ाया जाता। नारियल, अगरबत्ती माता को अर्पित किए जाते हैं। माता का मंदिर साल में सिर्फ एक दिन चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को 4 घंटे के लिए खुलता है। इस बार निरई माता का जातरा 14 अप्रैल को सुबह 4 से 9 बजे तक यानि केवल 5 घंटे के लिए ही खुलेगा।
मान्यता है कि इस देवी मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्र के दौरान स्वत: ही ज्योति प्रज्ज्वलित होती है। इस दैवीय चमत्कार की वजह से लोग देवी के प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं। कहा जाता है कि हर चैत्र नवरात्रि के दौरान देवी स्थल पहाड़ियों में अपने आप से ज्योति प्रज्ज्वलित होती है। ज्योति कैसे प्रज्ज्वलित होती है, यह आज तक पहेली बनी हुई है। ग्रामीणों की मानें तो यह निरई देवी का ही चमत्कार है कि बिना तेल के ज्योति नौ दिनों तक जलती रहती है।
निरई माता मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए महिलाओं को प्रवेश करने का इजाजत नहीं है, यहां केवल पुरुष ही पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं। जातरा के दिन गरियाबंद, महासमुंद, रायपुर, धमतरी, कुरूद, मगरलोड, सिहावा, नयापारा, राजिम क्षेत्र के हजारों भक्तजन श्रद्धा पूर्वक माता के दर्शन करने आते हैं। निरई माता का दर्शन पवित्र मन से किया जाता है। माता की बुराई या शराब सेवन किए हुए व्यक्ति को मधुमक्खियों का कोप भाजन बनना पड़ता है।