उल्लेखनीय है कि बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट रहे यशपाल सिंह का संविलियन छत्तीसगढ़ पुलिस में करके उन्हें कई पुलिस अधिकारियों से ज्यादा सीनियर बना दिया गया है। अब उन्हें आईपीएस अवार्ड करने की तैयारी की जा रही है। सूत्रों के मुताबिक इसी तरह अन्य राज्य के दो और पुलिस अधिकारी भी छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा में संविलियन की जुगाड़ में लगे हैं। इसकी जानकारी मिलते ही छत्तीसगढ़ स्टेट पुलिस ऑफिसर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने मोर्चा खोल दिया है और दूसरे राज्य के पुलिस अधिकारियों का छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा में संविलियन का विरोध शुरू कर दिया है।
पदाधिकारियों के मुताबिक यशपाल सिंह बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में भर्ती हुए थे और माओवादियों के खिलाफ अभियान के तहत वर्ष 2009- 2010 में प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आए। इस दौरान अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते वर्ष 2016 में अपना छत्तीसगढ़ पुलिस में अपना संविलियन करवा लिया। इसके बाद तुर्रा यह कि उन्हें 1997 की सीनियरिटी दी गई, जबकि छत्तीसगढ़ वर्ष 2000 में बना है। इसको दरकिनार करते हुए अधिकारियों ने उन्हें 1997 की सीनियरिटी दे दी। इस कारण अब वे आईपीएस अवार्ड के दावेदार हो गए हैं, जबकि छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस सेवा के कई अफसर उनसे सीनियर हैं। लेकिन अब वे पीछे रह जाएंगे। सीनियर होने के बाद भी अनका आईपीएस अवार्ड रूक जाएगा। एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने यशपाल सिंह का संविलियन और सीनियरिटी दिए जाने की प्रक्रिया को ही अवैधानिक और नियम विरूद्ध बताया है। इसी तरह दूसरे राज्यों से छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा में संविलियन का जुगाड़ कर रहे अधिकारियों के संविलियन पर रोक लगाने की मांग की है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 1997 बैच के राज्य पुलिस सेवा के करीब 70 पुलिस अफसरों को आईपीएस अवार्ड हो चुका है और बाकी अधिकारियों का अगले दो चरणों में आईपीएस अवार्ड होना है। इसमें वर्ष 1998 बैच के पुलिस अधिकारियों को भी लाभ मिलने की संभावना है। लेकिन दूसरे राज्यों से संविलियन कराकर सीनियरिटी लेने वालों से राज्य पुलिस सेवा के अफसरों के आईपीएस अवार्ड होने पर खतरा मंडरा रहा है।
यशपाल सिंह बीएसएफ से वर्ष 2009- 10 में प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ आए हैं। इसके बाद उनका गलत ढंग से छत्तीसगढ़ पुलिस में संविलियन कर लिया गया और उन्हें 1997 की सीनियरिटी भी दी गई। यह पूरी तरह से नियम विरूद्ध है। छत्तीसगढ़ का अस्तित्व ही वर्ष 2000 में आया है, तब वर्ष 2009 में दूसरे राज्य से प्रतिनियुक्ति में छत्तीसगढ़ आने वाले को राज्य पुलिस सेवा में वर्ष 1997 की वरिष्ठता कैसे दी जा सकती है। यह संवैधानिक और नियमता: पूरी तरह गलत है। इससे स्थानीय पुलिस अधिकारियों का हक मारा जा रहा है। इसके अलावा और प्रदेश में उनका कोई विशेष उल्लेखनीय कार्य भी अब तक सामने नहीं आया है, जिससे उनका राज्य पुलिस सेवा में संविलियन करके वरिष्ठता दिया जाए। इस तरह के सभी पैराशूट पुलिस अधिकारियों हर संभव विरोध किया जाएगा।
प्रफुल्ल ठाकुर, अध्यक्ष, स्टेट पुलिस ऑफिसर्स एसोसिएशन, छत्तीसगढ़