रायपुर। कलजुग म ऊंच-ऊंच बिल्डिंग ह हमर तरक्कीके चिन्हा आय। अइसन म छानही-खपरा के घर नंदावत हे। फेर, जतका बांच गे हे तेमन ल असाढ़ लगे के एक महीना पहिलीच ले संसो धर लेथे। बड़ खोजे म खपरा लहुटइया मिलथे त वोकर बनिहारी ह नंगत रहिथे। काबर के खपरा लहुटाय बर घलो सबे ल नइ आवय। कते कर चिपा देय बर हे, कते करा के काड़ बदले बर हे तेन ल जम्मो मनखे नइ जानय।
गांव म कतकोझन खपरा नल्ली बनावय बउरे अउ बेचे। फेर अब समे बदल गे हे। अब सांचा ले हाथ के बनाय खपरा ल कोनो पसंद नइ करंय। पहिली कतकोन किसम के खपरा नाली मिलय। अब एक नाप के नाली भर जादा बनथे। ऐला छाय म सरल होथे अउ कुम्हार ल बनाय म घलो सरल होथे। फेर, वहूमन ल अब माटी नइ मिलय। पकोय बर लकड़ी बनिहारी जम्मो
चीज ह महंगी परथे। लेवाल घलो कम होगे हे त खपरा नल्ली के कीमत ल बढ़ा देथें।
खपरा, बनिहार, काड़ कोरई, कमचिल, मियार, झन चुहे कइके झिल्ली, छानही के जोड़ अउ ओरछा म डोंगी अतका अकन के जुगाड़ करत ले कतको पइसा सिरा जथे। फेर बेंदरा कुदई म छानही एकमई हो जथे। कभु मुसवामन झिल्ली ल भोंगरा कर देथें। अतका हलाकानी ल सही के बीस बछर के छानही म होय खरचा ल गनबे त लेंटर ले उपराहा खरचा हो जथे। फेर, परकरीति ल अइसन घर ले कोनो नुकसान घलो नइ होय।
जेन चीज ह कभु संस्करीति के चिन्हारी रहिस उही आज गरीब होय के चिन्हा हो गे हे। पहली सिरमिट-पथरा के घर कमे देखे बर मिलय। फेर, अब लेंटर वाला घर ह सान देखाय के साधन आय। घर म चारझन मनखे रहिथें त बीसठन कुरिया। तइहां गरीबहा मनखे जुच्छा माटी के खदर-छानही वाला घर अउ पोठमन ह पटाव छानही वाला घर उचांय। माटी, पेरउसी अउकुधरी ल सना के कोठ ल बरंडे ले अउ छानही म डारा छिन ल डार के छाय ले। घर ह वातानुकूलित हो जाय। अइसन घर-कुरिया म रेहे मनखे ऐकर सुख ल जानथें। न जड़काला म जाड़ लागे, न गरमी म घाम जनाय। अइसन घरमन भुइंया के तापमान ल घलो नइ बिगाड़े।।
तइहां जतका जरूरत राहय वोतके घर-दुवारी राखंय। उपराहा के लालच कोनो ल नइ रहिस। अबादी घलो कम राहय। सुग्घर गांव, गांव म नान्हे-नान्हे घर, घर मगोबर लिपाय दुवार अउ अंगना, अंगना म सुग्घर
तुलसी चांवर, बखरी म लहकत रूख-राई, कुआं, किंयारी म फूल-पान, मुड़ छुवऊल खपरा के छानही, ओरछा ये जम्मो अब तइहां के गोठ होगे हे।
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