सात नवंबर 1971 के वो अद्भुत रात जेन दिन छत्तीसगढ़ी अस्मिता पहिचान अउ कला मनीस्वी दाऊ रामचंद्र देसमुख के सपना ह बघेरा गांव (दुरूग) म अवतरित होइस। ये तारीख ह छत्तीसगढ़ के इतिहास म अजर-अमर होगे। काबर के, इही दिन छत्तीसगढ़ी लोक संस्करीति के चिन्हारी चंदैनी-गोंदा के जनम होइस। दाऊजी ल अपन माटी ले बड़ लगाव रहिस। फेर, वोला वोतके संसो इहां के गरीब, बनिहार अउ किसान के तको रहिस। आने मनखेमन के द्वारा इहां के गरीबहामन के सोसन ह भीतरे-भीतर वोला कलपाय। तब वोहा मंच ल अनियाय अउ सोसन के बिरोध के माध्यम बना के देस-दुनिया के आगू आइस। दाऊजी ह अंगरेजमन के राज ल देखे रहिस। वोमन ल देस ले खेदे-बिदारे म सुराजी सिपाही बन के अपन योगदान देइन। देस आजाद होगे। फेर, गांधीजी के सपना के भारत दूरिहा गे। दाऊजी ह गरीबहामन के हक ल मारत देखिन त बड़ दुखी होइन। छत्तीसगढ़ के इही दुख-पीरा ल देखाय बर अउ इहां के आरूग लोक संस्करीति-संस्कार म हमावत दोस ल दूरिहाय खातिर ‘चंदैनी-गोंदाÓके सिरजन करिन। लगभग 63 कलाकारमन के समिलहा उदीम ले चंदैनी-गोंदा के पहिली परदरसन बघेरा गांव म होइस त देखइयामन बक खागें। छत्तीसगढ़ महतारी के वैभव ल देखके जम्मो छत्तीसगढिय़ा मन के छाती तनगे। चंदैनी-गोंदा के परस्तुति ल कतकोन बेर देख ले, फेर मन नइ भरय।