माता का एेसा अनोखा मंदिर, जहां नाग-नागिन का जोड़ा आकर खुद देता था भक्तों को दर्शन
रायपुर. महामाया मंदिर की तरह ही राजधानी के कुशालपुर में मां दंतेश्वरी का प्राचीन मंदिर है। माता के इस स्थान की पौराणिक मान्यताएं हैं। यहां से श्रद्धालुओं की गहरी आस्था जुड़ी है।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर के गर्भगृह के ठीक पीछे नाग-नागिन की मांद हुआ करती थी। नवरात्रि पर्व के दौरान नाग-नागिन का जोड़ा एक बार जरूर माता के भक्तों को दर्शन देने के लिए निकलता था और परिक्रमा कर मूर्ति के बाजू से होकर मांद में प्रवेश कर जाता था।
अब उसी स्थान पर भगवान भोलेबाबा की मूर्तियां विराजमान कर पूजा-अर्चना की जा रही है। इस प्राचीन मंदिर में भी जात-पांत की बेडिय़ां मातारानी के दरबार में पिघल जाती है। नवरात्रि पर 1500 ज्योति कलश से माता का दरबार जगमग है। वहीं मुख्य ज्योति हमेशा प्रज्जवलित होती रहती है। व्यवस्था ऐसी है कि मनोकामना ज्योति का पंजीयन कराने के साथ ही श्रद्धालु खुद ज्योति प्रज्जवलित करें। नवरात्रि पर्व के दौरान आस्था ज्योति की परिक्रमा करने की भी व्यवस्था है।
स्वयं प्रकट हुई मां दंतेश्वरी दूसरी पीढ़ी में माता की सेवा करने लगे पुजारी संजय यादव बताते हैं कि देवी स्थापना का इतिहास 700 वर्ष पूराना है। उस समय यह स्थान पूरी तरह से जंगल था। ग्वाले यहां मवेशी चराने आते थे, एक दिन उन्हे माता की मूर्ति जमीन से प्रकट होते दिखाई दी। तब से यहां पूजा अर्चना शुरू हुई। इसलिए यहां यादव की मंदिर के पुजारी होते हैं। अब यहां माता का भव्य दरबार बन चुका है। यहां जो भी श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं सभी की मनोकामना पूर्ण होती है, ऐसी मान्यता जुड़ी है।
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