अतीत के भंडार, उधेड़ रहे खनन माफिया
पाटन दक्षिण से लेकर उत्तरी सरहद तक खारून नदी से घिरा है। खारून के किनारे टीलों में अतीत की यादें दबी पड़ी हैं। यहां ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के शुंगवंश, कुषाण, सातवाहन, गुप्तवंश, मौर्यवंश और कलचुरी राजवंशों के प्रमाण मिले हैं। इन्हें सहेजने के नाम पर कुछ जगहों पर केवल खुदाई कर छोड़ दिया गया है। तरीघाट के किशोर निषाद ने बताया खारून का दायरा गांवों तक पहुंच रहा है। खनन माफिया लगातार बंड उखाड़ रहे हैं। प्रमेश साहू ने बताया कि खारून के संरक्षण के लिए सीएम ने हवाई यात्रा भी की था। खारून के पानी से राजधानी की प्यास बुझती है, लेकिन पाटन तट पर होकर भी प्यासा है।
धूल और धमाके के कारण गांव छोड़ रहे हैं लोग
सेलूद में चर्चा के बाद युवा प्रमोद हमें चुनकट्टा-मुड़पार के पत्थर खदानों के बीच ले गए। धूल और धुएं के बीच मशीनों की आवाज ने हमें भी परेशान कर दिया। यहां दो दर्जन खदानें है। खदान अब मैदानों से गांवों की सरहद तक पहुंच गए हैं। मजदूर सुखीत राम ने बताया कि धूल-धुएं से लोग दमे और सांस की बीमारी से परेशान हैं। चुनकट्टा की आधी आबादी गांव छोड़ चुकी है। दुकान संचालक चंद्रमोहन कुर्रे ने बताया पानी में भी धूल और धुएं की परत जम जाती है। सेलूद के सरपंच खेमलाल ने बताया कि धमाकों से मकान हिलते हैं। पेंड्री में पत्थर घरों में गिरने से बड़ा हादसा हो चुका है।
जर्जर सडक़ पर दस किमी दूर जाती हैं बेटियां कॉलेज पढऩे
इसके बाद 13 किलोमीटर दूर ब्लॉक मुख्यालय पाटन पहुंचकर बस स्टैंड में दुकानों में बैठे लोगों से मेरी बात हुई। कॉलेज छात्रा तुलेश्वरी ने मोबाइल नहीं मिलने की बात कहीं। संतोषी साहू ने बताया कि उसे 10 किलोमीटर दूर से साइकिल से आना पड़ता है। रानीतराई मार्ग पर सालभर से काम के कारण परेशानी होती है।
यह कैसा ब्लॉक मुख्यालय
पाहंदा (अ) के चौपाल में मिले मुकेश ठाकुर, नारद यादव, सतीश साहू, राकेश वर्मा, पोषण वर्मा ने विकास में पिछडऩे के लिए दलीय राजनीति को जिम्मेदार ठहराया। कहा कि नेता सिर्फ अपने मतलब के लिए जनता के बीच आते हैं। तरीघाट के युवा राजेन्द्र ने ब्लॉक मुख्यालय के गांव जैसे हालात पर चिंता जताई। उनका कहना था कि सामान्य जरूरत की चीजों के साथ शिक्षा और चिकित्सा के लिए आज भी दुर्ग या रायपुर जाना पड़ता है।
जो किसानों की चिंता करेगा हमारा वोट उसी को
जामगांव (एम) मार्ग पर तर्रा और लोहरसी के बीच सडक़ के किनारे किसान चर्चा में मशगूल मिले। किसानों ने कहा कि अभी फसल को बचाने की चिंता है, ऐेसे में चुनाव के लिए समय कहां? पिछली बार सूखे के बाद भी बीमा और राहत राशि नहीं मिली। इस बार फसल को बचाने पानी के लिए रतजगा करना पड़ रहा है। खुले मवेशी अलग परेशान कर रहे हैं। कहा कि जो किसान की चिंता करेगा, उसे ही वोट देंगे।