दाने दाने को मोहताज…
एक दशक पहले दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 19 किमी दूर ग्राम पंचायत कासोली के शिविर में सलवा जुडूम अभियान के तहत माओवाद प्रभावित सैकड़ों लोगों को यहाँ लाकर बसाया गया। उनके रहने, खाने-पीने, स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक की सुविधाएं की गई। लेकिन आज स्थिति कुछ और है अपने घर जमीन, खेत, गाय, बैलों को छोड़ शिविर में शरणार्थियों की तरह रह रहे आदिवासियों को स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतें तो दूर दाने-दाने के लिये मोहताज होना पड़ रहा है। अपनी खेती की जमीन होने के बावजूद यह लोग खेतिहर मजदूर बनकर रह गए हैं। लेकिन अफ़सोस यह हैं कि उन्हें मजदूरी का काम भी नहीं मिल पा रहा।
प्राथमिक शिक्षा भी मुश्किल
कसोली और उसके आस पास के गाँवों की स्थिति का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि यहाँ प्राथमिक शिक्षा भी अब तक नहीं पहुँच पाई है। अनपढ़ युवा सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिये दिन रात जूझते रहे हैं बहरहाल विकास के आडम्बर के बीच सिर्फ आदिवासियों के साथ मजाक ही हो रहा है। जिला मुख्यालय के 5 किमी दायरे में ही सिमट कर रह जाने वाले विकास की हकीकत तब पता चलती है,जब चंद किमी दूर रह रहे आदिवासियों के जीवन में सिर्फ और सिर्फ अँधेरा दिखाई देता है।
ग्रामीणों को नहीं पता कौन है उनके गांव का सरपंच
कसोली के युवा सोनार यादव, मुन्ना अटन ने बताया कि जैसे तैसे 5वीं, 8वीं तक की पढाई कर ली। अब पेट भरने के लिये जहाँ जो मिल जाये रोजी मजदूरी कर के पेट पालते हैं। लेकिन इन बीहड़ अंचल में वो भी नसीब नहीं होता। स्वास्थ सुविधा तो यहां है ही नहीं। इलाज के लिये गीदम जाना पड़ता है या दंतेवाड़ा। लेकिन वहां भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं है। चंद दिनों पहले यहाँ उप स्वास्थ्य केंद्र तो खोला गया। लेकिन वहां भी हफ़्तों हफ़्तों चिकित्सक नहीं आते हैं।
अभी पुनर्वास करना मुश्किल है
ग्राम पंचायत कासोली सरपंच मलिका अटामी ने कहा कि इंद्रावती नदी पर पुल बने बिना आदिवासियों का पुनर्वास नहीं किया जा सकता है। सुरक्षा की दृष्टि से वहां जवानों के कैम्प लगाना भी जरुरी है। आने वाले समय में ये पूरा किया जायेगा, जहाँ तक रोजगार की बात है, स्थिति तो चिंतनीय है, आदिवासियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व मूलभूत सुविधा देने के लिये आने वाले समय में सरकार काम करेगी।