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CG News: पत्रिका जन अभियान: पड़ोस में सरकारी बसें भर सकती हैं फर्राटा.. तो यहां क्यों नहीं?

CG News: पड़ोस में सरकारी बसें भर सकती हैं फर्राटा तो यहां क्यों नहीं? छत्तीसगढ़ में अन्य राज्यों के फार्मूले पर फिर जिंदा हो सकती राज्य परिवहन निगम

रायपुरOct 24, 2024 / 12:50 pm

Laxmi Vishwakarma

CG News
CG News: प्रदेश में किसी भी शहर से लेकर गांव को कनेक्ट करने के लिए बसों को लाइफ लाइन मानी जाती हैं। देश के महानगर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और हैदराबाद सहित अन्य को छोड़कर दूसरे शहरों में मैट्रो ट्रेन जैसे विकल्प नहीं है।

CG News: राज्य परिवहन निगम की बसें आज भी दौड़ रही

छत्तीसगढ़ में इसे शुरू करने अभी दूर तक कोई आसार तक नहीं है। वहीं दूसरी ओर बसों की लगाम सरकार की नहीं निजी हाथों में चल रही हैं। इसके लिए लंबे अरसे से नेता-अफसर और ठेकेदारों के गठजोड़ ने इतना जोर लगाया कि 2002 में बंटवारा होने के पहले ही राज्य परिवहन निगम का दफ्तर ही खुलने नहीं दिया गया।
वहीं दूसरी तरफ देशभर के कई राज्यों में राज्य परिवहन निगम की बसें आज भी दौड़ रही हैं। इन बसों को राज्यों की रीढ़ माना जाता है। (CG News) देश के आजाद होने के पहले 1921 में पहली बार मुंबई में अफगान चर्च और क्रॉफर्ड मार्केट के बीच बस चली थी। उन बेस्ट की बसों के बेड़े वाला महाराष्ट्र परिवहन निगम (एमएसटी) आज शहर की लाइफ लाइन है।

अंतरराज्यीय बस सेवा का संचालन

इसी तरह आजादी से 9 साल पहले 1938 में बने केरल राज्य परिवहन निगम (केएसआरटीसी) की लक्जरी बसें आम जरूरतों को पूरा कर रही हैं। 1948 में देश की राजधानी दिल्ली में ट्रांसपोर्ट कंपनी की बसें कीर्तिमान रच रही हैं।
लेकिन, छ्त्तीसगढ़ सरकार बस चलाने नए सिस्टम के साथ परिवहन निगम को फिर से जिंदा करने के स्थान निजी हाथों पर भरोसा दिखा रही है। उन्हीं के भरोसे राज्य के अंदरूनी मार्गों से लेकर अंतरराज्यीय बस सेवा का संचालन किया जा रहा है।
पत्रिका ने महाराष्ट्र के मुंबई से लेकर नागपुर, केरल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और दिल्ली में दौड़ चल रही परिवहन व्यवस्था को खंगालने पर पता चला कि राजनीतिक इच्छा शक्ति से फिर राज्य परिवहन निगम को धरातल पर खडा़ कर सकती है।

केरल हर रूट पर लग्जरी बसों का संचालन

देश के आजाद होने के पहले राजा थिरूनल ने 1938 में त्रावणकोर राज्य परिवहन निगम बनाया था। यात्रियों की सुविधा के लिए इसकी शुरूआत 38 बसों से की गई थी। 1955 में राज्य परिवहन निगम (केएसआरटीसी) का गठन कर स्वायत्त विभाग बनाया गया। साथ ही प्रदेश के 661 रूट पर 901 बसों का संचालन शुरू किया गया।
इन बसों को लोगों ने हाथों हाथ लेते हुए सफर की शुरूआत की। रिस्पॉन्स को देखते हुए समय से साथ बसों में सुविधाएं भी बढ़ते गई। 2001 में परिवहन मंत्री केवी गणेश कुमार ने निगम का कायाकल्प करते हुए वॉल्वो और लक्जरी बसों को बेडे़ में शामिल किया। वहीं त्रिवेन्द्रम में लो-एंटी एयर संस्पेशन और मिनी बस सेवा शुरू की गई। इसके चलते निगम को मुनाफा भी हुआ।

केरल की ताकत

1965 में केरल के 661 रूट पर 901 बसें थीं

2018 तक 5136 रूट में 5662 बसों का संचालन

1965 में रोजाना औसतन 1.67 लाख किमी संचालन

2018 में 1626 लाख किमी तक घुमे पहिए
1965 में रोजाना औसतन कलेक्शन था 1.54 लाख रुपए

2018 तक 5.73 लाख रुपए हो गया

सामान्य किराया 1965 में 3 पैसे प्रति किमी था

2018 में प्रतिकिमी करीब 70 पैसे
रोजाना औसतन 32 लाख यात्रियों को गंंतव्य स्थान तक पहुंचाती हैं बसें

दूर हुईं बाधाएं

2015 में शहरी सडक परिवहन निगम शुरू हुआ था। (CG News) कर्नाटक में से छिड़ी ट्रेडमार्क की लड़ाई में केएसआरटीसी बंद करने की बात हुई। लड़ाई के बाद केरल के जीतने के बाद 2023 में नियमित यात्रियों के लिए एलएनजी बस शुरू हुई।
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6000 बसों का बेड़ा बेजोड़ सेवा

निगम के पास 6241 बसों के बेडे़ में वाॅल्वो, स्कैनिया, अशोक लीलैंड की बसें हैं। सेवाएं भी बेजोड़ हैं। गरूड़ महाराजा बस में सीटी के सामने और केंद्र में रेडियो, टीवी और कंबल सुविधा उपलब्ध कराई गई हैं।

सामान्य बसों में सीट की गारंटी

CG News: गरूड राजा में 10 एयरकंडीशन वाॅल्वो बसों की प्रीमियम सेवा, गरूड संचारी में वॉल्वो बसें सुपर डीलक्स बस सामान्य पर मोबाइल-लैपटॉप चार्जिग सुविधा के साथ ही सभी को सीट की गारंटी।

हर आम और खास को सुविधा

लंबी दूरी में सामान्य से लेकर नाइट बसें दौड़ रही है। इसमें आम लोगों के लिए सेमी डिलक्सऔर नॉन एसी स्लीपर कम सीटर बसें हैं। वहीं ग्रामीण सेवा में सामान्य, सेमी डीलक्सऔर मिडी सर्विस को शामिल किया गया हैं।

मुंबई में बसें बंद होने वाली थी, किराए में छूट देकर डबल डेकर से मुनाफा

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में परिवहन सेवा देशभर में मिसाल है। 1926 में किसी ने मुंबई में किसी ने बसों की कल्पना तक नहीं की गई थी। लेकिन जब पहली बार अफगान चर्च और क्रॉफर्ड मार्केट के बसे बीच चली तो लोगों का उत्साह देखते हुए बनता था। पहले ही साल 6 लाख लोगों ने सफर किया।
शुरूआत होते ही टैक्सी चालकों ने इसका विरोध करते हुए खूब जोर लगाया। आंदोलन प्रदर्शन और बसों को रोकने तक की घटनाएं हुई। लेकिन, इन सबसे बावजूद 1927 में 38 लाख लोगों ने सफर कर पूरी तरह से अपना लिया। यही सेवा आज वृहन्न मुंबई की पहचान बनी। जिसे बेस्ट के नाम से जाना जाता है। इस समय मुंबई में 17659 रूट पर बेस्ट की 17189 बसें दौड़ रही हैं। लंबी रूट पर एसी और स्लीपर के साथ ही हर तबके के लिए यात्रियों को कम किराए में राहत दे रही हैं।

मुंबई की ताकत

17189 बसे बेस्ट के पास
584 बस स्टैंण्ड
100169 कर्मचारी
6095.79 करोड़ रुपए राजस्व 2020-21 में

डबल डेकर का क्रेज

बस सेवा को लोकप्रिय बनाने के लिए 1937 में डबल डेकर बसों की शुरूआत की गई। इससे लगातार मुनाफा बढ़ने के साथ बेस्ट की बसें मुंबई की लाइफ लाइन बन गई।

डिस्काउंट दिया

मुंबई स्थित कुछ मार्गों पर यात्रियों की कमी के चलते 1937 में नुकसान होने लगा था। इसे देखते हुए बेस्ट की बसों के बंद होने की नौबत आने लगी। लेकिन, छोटे रूट पर चल रही बसों के रूट का विस्तार कर उत्तरी क्षेत्र तक चलाया गया। साथ ही किराए में छूट देकर यात्रियों को आकर्षित किया गया।

दिल्ली में हर साल नुकसान के बाद भी बसें बंद नहीं हुई

देश के आजाद होने के बाद 1948 में दिल्ली ट्रांसपोर्ट सर्विस के नाम से सार्वजनिक परिवहन की शुरूआत हुई। इसके बाद 1971 में इसका नाम बदलकर दिल्ली ट्रांसपोर्ट कंपनी (डीटीसी) कर दिया गया। 7000 से ज्यादा डीटीसी की बसें चलने के बाद भी इसकी माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। लेकिन, नुकसान होने के बाद भी सरकार ने सेवा को जारी रखते हुए रोज 87 लाख यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाया। साथ ही बसों में हर साल सुविधाएं बढ़ाई जा रही है।
2022-23 में रोजाना 25.02 लाख औसत दैनिक यात्री

2022 में 16.39 लाख यात्री क्लस्टर बसों में सफर करते थे

इस समय 7300 यात्री बसों में 4000 डीटीसी और 3300 क्लस्टर बसें शामिल
महिलाओं को नि:शुल्क यात्रा एवं डेली व मंथली पास की सुविधा

प्रतिकिमी 82.54 रुपए का घाटा फिर भी सेवा

दिल्ली की सरकार ने बसों से होने नुकसान के बाद भी छत्तीसगढ़ की तरह राज्य परिवहन निगम को बंद नहीं किया। इसका आकलन करने पर पता चला कि 2003-04 में डीटीसी को हर किमी पर 15.77 रुपए आय और खर्च 39.46 रुपए संचालन पर खर्च हो रहा था।
औसतन हर किमी पर 23.69 रुपए का नुकसान हुआ। अब खर्च तीन गुना 120 रुपए से अधिक प्रतिकिमी और राजस्व 37.46 रुपए है फिर भी बसें यात्रियों की सेवा में जुटी हुई हैं।

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