CG News: फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की बड़ी भूमिका
ज्यादातर शराब पीकर आए मरीज
सड़क दुर्घटना या वाद-विवाद के हुए झगड़े के बाद अस्पताल पहुंचते हैं। इसलिए यह मेडिको लीगल केस (एमएलसी) होता है। कई बार कोर्ट में भी अल्कोहल की मात्रा को लेकर विवाद होता रहा है। अब ब्रेथ एनालाइजर से जांच होने के बाद विवाद भी खत्म होने की संभावना है। एमएलसी केस में फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की बड़ी भूमिका होती है।
इस विभाग ने कॉलेज व अस्पताल प्रबंधन को इमरजेंसी में आए मरीजों में अल्कोहल की मात्रा जांचने के लिए ब्रेथ एनालाइजर का उपयोग करने की सलाह दी है। इससे अल्कोहल का वास्तविक मात्रा का पता चलने से केस में शराब का एंगल भी सामने आएगा। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि वर्तमान में कई लोग शराब पीने के बावजूद नहीं पीने का दावा करते हैं।
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हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि मुंह को सूंघने से अथवा आसपास रहने से भी शराब की गंध आती है। कई बार मरीज ट्रामा सेंटर में केजुअल्टी मेडिकल ऑफिसर (सीएमओ) से उलझते हुए दिख जाते हैं। चूंकि अस्पताल में कई महिला सीएमओ है इसलिए स्थिति विषम हो जाती है। (Chhattisgarh News) मरीज के परिजन भी केस में शराब का उल्लेख नहीं करने के लिए लड़ पड़ते हैं। दरअसल अगर शराब पीया व्यक्ति अगर पेशाब कर दे या पानी पी दे तो जांच में ब्लड में अल्कोहल की मात्रा घट जाती है। इसलिए ब्रेथ एनालाइजर को अच्छा विकल्प बताया जा रहा है।
आंबेडकर अस्पताल अधीक्षक, डॉ. संतोष सोनकर: फोरेंसिक मेडिसिन विभाग ने मरीजों में शराब की मात्रा का पता करने के लिए ब्रेथ एनालाइजर मशीन का उपयोग करने का सुझाव दिया है ताकि मेडिको लीगल केस में विवाद न हो। अभी मुंह को सूंघकर शराब पीने की पुष्टि की जाती है। इससे महिला डॉक्टरों के लिए स्थिति विषम हो जाती है।
शराब का विवाद सिरदर्द से कम नहीं
CG News: किसी घटना में शराब का एंगल आने के बाद इंश्योरेंस क्लेम करने व मुआवजा में परेशानी होती है। इसलिए इंश्योरेंस कंपनियां मुआवजा देने से मुकर जाती हैं। दरअसल उनका यह तर्क होता है कि
शराब पीकर गाड़ी चलाने से दुर्घटना की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में मरीज की लापरवाही के लिए इंश्योरेंस कंपनियां क्यों जिम्मेदार रहे और क्लेम का सेटल क्यों करें? ब्रेथ एनालाइजर का उपयोग इसी विवाद को खत्म करने के लिए किया जाएगा। पत्रिका से बातचीत में डॉक्टरों ने बताया कि शराब का विवाद सिरदर्द से कम नहीं है।