CG Medical College: आज जारी हो सकती है आवंटन सूची
यश को पहले नेहरू मेडिकल कॉलेज में रेडियो डायग्नोसिस की सीट मिली थी, अब उन्हें ये सीट नहीं मिल पाएगी। वहीं अपूर्वा को सिम्स में स्किन विषय की सीट मिली थी। ये विषय उनका तीसरा प्रिफरेंस था। यानी पहला प्रिफरेंस रेडियो डायग्नोसिस या जनरल मेडिसिन रहा होगा। डीएमई कार्यालय ने सूरजपुर में पदस्थ मेडिकल अफसर डॉ. यश को बोनस अंक ज्यादा देने की पुष्टि होने के बाद शुक्रवार की रात आवंटन सूची रद्द कर दी थी। पत्रिका ने इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। नई मेरिट सूची के बाद रविवार को आवंटन सूची जारी की जा सकती है। पहली आवंटन सूची रद्द होने के बाद काउंसलिंग में देरी हो गई है। यही कारण है कि सूची रद्द होने के तत्काल बाद नई सूची जारी की गई है। डॉ. अपूर्वा के 98.19 परसेंटाइल अंक है। वहीं डॉ. यश को 93.77 परसेंटाइल अंक मिला है, लेकिन बोनस अंक के कारण रैंक में ऊपर आ गया था।
छह साल में तीसरी बार बोनस अंकों का विवाद
पिछले 6 साल में तीसरी बार बोनस अंक के विवाद से दो बार काउंसलिंग प्रभावित हुई है। छह साल पहले कोरबा के इन सर्विस कोटे के डॉक्टर ने फर्जी बोनस प्रमाणपत्र बनवा लिया था। तब उस छात्र को भी रेडियो डायग्नोसिस की सीट मिली थी। यह भी पढ़ें
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फर्जीवाड़ा का पता चलने के बाद छात्र ने एडमिशन नहीं लिया। दोबारा आवंटित सूची जारी हुई और डॉ. मनीष मेश्राम को जनरल सर्जरी से रेडियो डायग्नोसिस की सीट आवंटित हुई थी। तीन साल पहले सुकमा में पदस्थ एक इन सर्विस कोटे को डॉक्टर को 70 अंक बोनस में मिल गया इसलिए वह मेरिट सूची में टॉपर भी बन गया। विवाद सामने आने के बाद छात्र एडमिशन लेने ही नहीं पहुंचा।बोनस अंक से छेड़छाड़ कोई नहीं करता: डीएमई
छात्र को भी रेडियो डायग्नोसिस की सीट आवंटित हुई थी। दरअसल दस्तावेज के सत्यापन के दौरान गलती पकड़ी जाती और छात्र का प्रवेश नहीं हो पाता। छात्र का आरोप था कि बोनस अंक में त्रुटि काउंसलिंग कमेटी ने की है। जबकि तब डीएमई का कहना था कि बोनस अंक से छेड़छाड़ कोई नहीं करता। अधिकारियों के अनुसार छात्र ने ही गलती की थी।बोनस अंक के सहारे अच्छी सीट फील्ड में नहीं आता कोई काम
बोनस अंक के सहारे इनसर्विस कोटे के तहत डॉक्टरों को रेडियो डायग्नोसिस जैसी महत्वपूर्ण सीट तो मिल जाती है, लेकिन अस्पताल में ये कोई काम नहीं आता। पत्रिका के पास ऐसी जानकारी है, जिसमें एमडी की सीट मिलने के बाद बस्तर संभाग में कार्यरत कुछ डॉक्टर दूसरे काम कर रहे हैं। यानी वे जहां पदस्थ है, वहां एक्सरे मशीन भी नहीं है। उदाहरण के लिए सूरजपुर के जिस डॉक्टर को रेडियो डायग्नोसिस की सीट मिली थी, पास होने के बाद रिपोर्टिंग नहीं कर पाता। स्वास्थ्य विभाग जिला अस्पताल में ट्रांसफर करता, तब उनकी डिग्री काम आती।