वहीं सिम्स में जिस छात्रों को डर्मेटोलॉजी की सीट मिली थी, उन्हें नेहरू मेडिकल कॉलेज में रेडियो डायग्नोसिस की सीट मिली है। डीएमई कार्यालय ने सोमवार को दोबारा आवंटन सूची जारी कर दिया। इसमें 216 छात्रों के नाम है। उन्हें 5 दिसंबर तक प्रवेश लेना होगा।
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CG Medical College: बोनस अंक के सहारे अच्छी सीट फील्ड में नहीं आता कोई काम
CG Medical College: बोनस अंक विवाद के बाद शनिवार को नई मेरिट व सोमवार को आवंटन सूची जारी कर दी गई है। सूरजपुर के मेडिकल अफसर को 30 के बजाय 16 अंक बोनस मिलने के बाद वह 14वीं से सीधे 108वीं रैंक पर आ गया था। वहीं ज्यादा बोनस अंक की शिकायत करने वाली डॉ. अपूर्वा चंद्राकर 20वीं से 19वीं रैंक पर आ गई थी। यश को क्यों सीट आवंटित नहीं की गई, ये सोचने वाली बात है। हालांकि देखने में आया है कि जिस छात्र से विवाद जुड़ता है, वे एडमिशन से कतराते रहे हैं। चूंकि इन्हें सीट आवंटित नहीं की गई है तो हो सकता है कि विवाद के कारण ऐसा किया गया हो। टॉप 10 में स्थिति जस का तस है। 10 में 6 को जनरल मेडिसिन, 2 को रेडियो डायग्नोसिस, एक को पीडियाट्रिक व एक को डर्मेटोलॉजी की सीट मिली है। बाकी छात्रों के विषय भी बदले हैं। गौरतलब है कि पहली आवंटन सूची रद्द होने के बाद काउंसलिंग में देरी हो गई है। अब चिकित्सा शिक्षा विभाग को तय शेड्यूल से पहले दूसरे राउंड की काउंसलिंग भी करानी होगी।
निजी कॉलेजों को फीस वापस करने में हो रही परेशानी
पहली आवंटन सूची रद्द करने के बाद निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश ले चुके छात्रों को फीस वापस करने में परेशानी हो रही है। दरअसल निजी कॉलेजों में क्लीनिकल की फीस 10 लाख रुपए सालाना है। दूसरी आवंटन सूची में जिन छात्रों को वही कॉलेज मिला है, उनकी फीस एडजस्ट कर दी जाएगी। वहीं जिनका कॉलेज बदला है, उनकी 10 फीसदी फीस काटकर लौटाने का नियम है। 10 लाख फीस की 10 फीसदी एक लाख रुपए होती है। वहीं सरकारी कॉलेजों में सालाना फीस महज 20 हजार रुपए है। बोनस अंक के सहारे इनसर्विस कोटे के तहत डॉक्टरों को रेडियो डायग्नोसिस जैसी महत्वपूर्ण सीट तो मिल जाती है, लेकिन अस्पताल में ये कोई काम नहीं आता। पत्रिका के पास ऐसी जानकारी है, जिसमें एमडी की सीट मिलने के बाद बस्तर संभाग में कार्यरत कुछ डॉक्टर दूसरे काम कर रहे हैं। यानी वे जहां पदस्थ है, वहां एक्सरे मशीन भी नहीं है।
उदाहरण के लिए सूरजपुर के जिस डॉक्टर को रेडियो डायग्नोसिस की सीट मिली थी, पास होने के बाद रिपोर्टिंग नहीं कर पाता। स्वास्थ्य विभाग जिला अस्पताल में ट्रांसफर करता, तब उनकी डिग्री काम आता। प्रमोशन के लिए ये डिग्री काम आता है और जिला मुयालय में पोस्टिंग होने पर प्राइवेट प्रेक्टिस के लिए काम आता है। पहले इनसर्विस केटेगरी के डॉक्टरों को केवल डिप्लोमा सीटें दी जाती थीं। 4 साल पहले देशभर में डिप्लोमा सीटों को कन्वर्ट कर डिग्री में बदल दिया गया।