CG Hospital: वहीं, कार्डियोलॉजी विभाग में 30 से ज्यादा मरीजों को पेसमेकर नहीं लगाया जा सका है। ये समस्या वेंडर के इंप्लांट सप्लाई नहीं करने के कारण खड़ी हुई है। बताया जा रहा है कि 15 से 20 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं हुआ है। अस्पताल प्रबंधन भी बेबस नजर आ रहा है। उनका कहना है कि वेंडर को भुगतान के लिए शासन से फंड ही नहीं मिल रहा है।
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CG Hospital: प्रबंधन भी बेबस..
इन दिनों आंबेडकर अस्पताल जाने वाले मरीजों की परेशानी बढ़ गई है। खासकर रेडियो डायग्नोसिस, कार्डियोलॉजी व ऑर्थोपीडिक विभाग जाने वाले मरीजों का इलाज प्रभावित हो रहा है। डीएसए मशीन से इलाज पूरी तरह ठप हो गया है। मशीन से जुड़े दो डॉक्टर अस्पताल आकर अटेंडेंस लगाते हैं और कोई मरीज नहीं होने के कारण दूसरे कार्यों एमआरआई, सीटी स्कैन की रिपोर्टिंग में बिजी हो जाते हैं। मरीज के लिए जरूरी कैथेटर व जरूरी इंप्लांट नहीं मिलने से भर्ती मरीजों को घर भेज दिया गया है। कई मरीज निजी अस्पताल जाने की बात कह रहे हैं और कुछ केसों में डॉक्टर कुछ इंतजार करने को कह रहे हैं। ताकि इंप्लांट आने पर मरीजों का इलाज किया जा सके। डॉक्टरों के अनुसार, डीएसए मशीन से मरीजों का इलाज कभी सप्ताहभर तक बंद रहा हो, ऐसा कभी नहीं हुआ। इंप्लांट का टेंडर अगस्त में खत्म हो गया। इसके बाद वेंडर ने बकाया भुगतान नहीं होने तक सामान सप्लाई करने से मना कर दिया। बताया जाता है कि वेंडर का 5 करोड़ से ज्यादा बकाया है।
दो माह से बंद है मरीजों का हिप और नी रिप्लेसमेंट
ऑर्थोपीडिक विभाग में मरीजों का हिप व नी रिप्लेसमेंट दो माह से बंद है। अगस्त में टेंडर खत्म होने के बाद वेंडर ने इंप्लांट सप्लाई करने से मना कर दिया है। सितंबर व अक्टूबर में एक भी हिप व नी रिप्लेसमेंट नहीं होने की जानकारी सामने आई है। कई मरीज ये सर्जरी कराने आते हैं, लेकिन उन्हें वापस भेज दिया जाता है। कई मामलों में जो ये ऑपरेशन कराना चाहते हैं, उनसे कहा जाता है कि कैश इलाज होगा। ऐसे में गरीब मरीजों की परेशानी बढ़ जाती है। प्रदेश में गिने-चुने अस्पतालों में ही हिप एंड नी रिप्लेसमेंट हो रहा है। आंबेडकर में ये सुविधा बंद होने से मरीज निजी अस्पताल जा रहे हैं। वहां दिक्कत ये भी है कि हिप रिप्लेसमेंट की सर्जरी आयुष्मान के पैकेज में नहीं है। पिछली सरकार ने निजी अस्पतालों से यह पैकेज हटा लिया था।
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पुराना टेंडर खत्म, नया नहीं हुआ इसलिए बढ़ गई परेशानी
हार्ट के मरीजों को पेसमेकर नहीं लगने से समस्या बढ़ गई है। दरअसल पेसमेकर हार्ट की अनियमित धड़कन को नियमित करती है। पेसमेकर एक छोटी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस होती है, जो हार्ट की धड़कन को नियमित रखने के लिए करंट भेजता है। पेसमेकर लगाने से हार्ट की धड़कन खतरनाक रूप से कम नहीं होती। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे मरीजों की क्या दुर्दशा हो रही होगी। विभाग के डॉक्टर भी बेबस है। दरअसल, यहां भी वेंडर का 8 से 10 करोड़ रुपए बाकी है। एंजियोप्लास्टी के लिए जरूरी कैथेटर, बलून व स्टेंट की सप्लाई तो हो रही है, लेकिन यह कब बंद हो जाए कहा नहीं जा सकता। डॉक्टरों का कहना है कि इस बारे में अस्पताल प्रबंधन को कई बार बताया गया है। वहां से भी फंड नहीं होने की बात कही जाती है। यहां का टेंडर 6 माह पहले खत्म हो गया है। इसके बाद भी वेंडर डॉक्टरों के कहने पर इंप्लांट की सप्लाई कर रहा है।