बता दें कि सरकारी रेकॉर्ड के मुताबिक प्रदेश में 6 लाख 24 हजार 937 विकलांग पंजीकृत है। यह आकंडा 2011 की जनगणना के आधार पर है। न्यायालय, आयोग में प्राथमिकता से होगी सुनवाई
जारी नए नियम में विकलांगता के आधार पर न्याय उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा। समस्त न्यायालयों, बोर्ड एवं आयोग में उनके प्रकरणों की सुनवाई में प्राथमिकता दी जाएगी तथा परिसर के अंदर विकलांगों के लिए बाधारहित व्यवस्था प्रदान की जाएगी। वहीं राज्य व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को साइन लैंग्वेज (सांकेतिक भाषा) में प्रशिक्षित या जानकार शासकीय व निजी अधिवक्ता की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी।
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सुविधाजनक बनाया जाएगा पाठ्यक्रम नए अधिकारों में आईटीआई, पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग एवं मुख्यमंत्री कौशल विकास कार्यक्रमों के पाठ्यक्रमों को विकलांगों की सुविधा के अनुरुप तैयार करना होगा। विकलांगता के आधार पर विशेष शिक्षकों की नियुक्ति भी करनी होगी। सरकारी वेबसाइटों का भी बदलेगा स्वरूप नए नियम में सरकारी वेबसाइटों के स्वरूप में भी बदलाव होगा। विकलांगों से सम्बन्धित रजिस्ट्री, साक्ष्य दस्तावेज, फाइल आदि को उनके अनुकूल सुगम व पढ़ने योग्य बनाना होगा।
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विकलांगों की डायग्नोसिस और थैरेपी के लिए होगी व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में विकलांगों के नि:शुल्क स्वास्थ्य उपचार की व्यवस्था करनी होगी। साथ ही डायग्नोसिस व थैरेपी के लिए अलग से नियम बनाकर 6 माह के अन्दर जारी करना होगा। अब निजी अस्पताल में विकलांगों के बाधारहित सुविधा होने पर ही नर्सिंग एक्ट के तहत लाइसेंस दिया जाएगा। शिक्षा विभाग को दो साल के भीतर करना होगा सर्वे 6 से 18 वर्ष आयु वर्ग के स्कूल जाने वाले विकलांग बालकों की पहचान करने शिक्षा विभाग को दो साल के भीतर सर्वे कर महिला एवं बाल विकास विभाग को इसकी जानकारी देगा। यह विभाग बच्चों में विकलांगता की रोकथाम एवं उपचार के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से अभिभावकों का प्रशिक्षण देगा।