CG Festival Blog: यहां भगवान शंकर और गौरी माता यानी पार्वती की मूर्ति बना कर उनकी पूजा करते है। मूर्ति बनाने के लिए लोग धनतेरस को माटी खोदने जाते है। इससे मिटटी को साफ़ कर के लक्ष्मी पूजा वाली रात भगवान शंकर और माता गौरी की मूर्ति बनाई जाती है। मूर्ति बनाने के दौरान गढ़वा बाजा के साथ महिलाएं कलसा मांगने घर घर जाती हैं,या दोनों प्रक्रियाएं रात भर चलती है और सुबह मूर्ति पूरी बनने के बाद उसकी पूजा अर्चना कर उस क्षेत्र में घुमाया जाता है। यहां परंपरा एक भगवान शंकर और गौरी की शादी है।
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क्षेत्र में घुमाने के बाद भगवान् की मूर्तियों को वापस गौरा चौरा लाया जाता है, जिसके बाद क्षेत्र के लोग बारी बारी भगवन की आरती करते है। थोड़ी देर बाद दोनों मूर्तियों को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है जो एक प्रकार से भगवान शिव की बारात होती है। यहां भक्त गण कई अलग अलग वेश धारण किये हुये गढ़वा बाजा के धून पर नाचते गाते हुए आगे बढ़ते है। इस दौरान कई भक्त पैरा से बने सांटे से अपने हाथ और पैर पर मार खाते है। ऐसा करते हुए भगवान् की बारात नदी या तालाब तक पहुंचती है और उसे आरती के बाद विसर्जन कर दिया जाता है। इसी दिन छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा भी की जाती हैं लोग अपने यहां गौठान के गाये और बैलो की पूजा करते है, उनके लिए भोजन बनाते है, और उनके जूठन खाने को प्रसाद के रूप में दिया जाता है, वहीँ शाम के वक़्त गोवर्धन पूजा किया जाता है, लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिमा बना कर उसकी पूजा करते है और राऊत नाचा के साथ नाचते गाते इस परंपरा को निभाया जाता है। इस तरीके से छत्तीसगढ़ में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।