रायपुर

CG Festival Blog: राउत नाचा, सुआ गीत समेत कई परंपराओं का संगम है दिवाली

CG Festival Blog: रोशनी और खुशियों का त्योहार दिवाली भारत में सबसे ज्यादा प्रतीक्षित त्योहारों में से एक है। यह एक शुभ अवसर है, यह खुशी, एकजुटता और उत्सव का समय है। तो आइए इस त्योहार को लेकर पाठक के द्वारा भेजे गए ब्लाग पढ़ते है..

रायपुरOct 24, 2024 / 12:51 pm

Khyati Parihar

CG Festival Blog: दिवाली कार्तिक माह में मनाया जाने वाला पर्व है। हिंदू धर्म से दिवाली के पर्व को मनाए जाने के पीछे कई प्रकार की कथा और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित मान्यता है कि कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही भगवान राम लंका विजय करने के बाद अयोध्या नगरी लौटे थे। जिनके आगमन पर अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था।
मान्यता यह भी है कि इसी दिन समुद्र मंथन के बाद धन की देवी मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। दिवाली को लेकर कुछ लोगों की मान्यता है कि इसी दिन पांडव 12 वर्ष का वनवास काटकर वापस लौटे थे, जबकि कुछ लोग इसे राजा विक्रमादित्य के राजतिलक का दिन मानते हैं।

धनतेरस का पर्व

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोद‌शी तिथि के दिन शाम को 13 दीप दरवाजे में जलाकर माता धनलक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। इस दिन हमारे गांवों में पारम्परिक तौर पर सुबह तालाब या नदी किनारे से गौरा-गौरी निर्माण हेतु मिट्‌टी लाया जाता है। गोड समुदाय द्वारा छत्तीसगढ़ी विवाह गीत गाकर बडे ही प्यार से मिट्टी लाया जाता है। जिसके बाद शाम में ग्रामवासियों को निमंत्रण देकर सारे घरों से फूल लेकर एक जगह एकत्रित होकर फूल से-देवी- देवता श्रृंगार हेतु गहने बनाए जाते है जिसे छत्तीसगढ़ी में (फल कूचरना) कहते है।
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नरक चतुर्दशी का पर्व

दिवाली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है, यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को छोटी दिवाली, काली चौदस और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है और दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीपक भी जलाया जाता है। इस दिन यम पूजा के साथ कृष्ण पूजा और काली पूजा भी की जाती है।
चौदस के शाम में 14 दिप दरवाजे में जलाकर रामराज को पूजा जाता है। इस दिन रात में छत्तीसगढ़ी गायन के साथ गौरा-गौरी मूर्ती को बनाया जाता है सारे ग्रामवासी रात जाग कर शिव – पार्वती मूर्ती अलग जगह बनाते हैं।

लक्ष्मी पूजा की तैयारी

अगले दिन अमावस्या तिथि के दिन सुबह रंगोली, विवाह गीत के जरिए गांवो में उत्साह के साथ ही लक्ष्मी पूजा की तैयारी की जाती है। इस दिन शाम में ग्रामवासी अपने घरों में लक्ष्मी माता का श्रद्धापूर्वक पूजा करते है तथा गोड़ समुदाय की महिला सुआ गीत गाकर घरों-घर जाकर सुआ नृत्य करते हैतथा गौरा – गौरी विवाह हेतु गांव वालो को नियंत्रण देते है। इसके साथ ही ग्रामीण मिलकर पार्वती – शिव का विवाह कराते हैं। गांव के पुरुष मनोरंजन हेतु ताश – पाला खेलते हैं।

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा का पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है, जिसे अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही 56 तरह के भोग अर्पित किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि उपासना करने से साधक को जीवन के समस्त दुख और संताप से मुक्ति मिलती है।
गोवर्धन पूजा के दिन गांव वाले अपने घर के गौशाला में गोबर से गोवर्धन भगवान का निर्माण किया करते है। गाय के बछड़े से इसे पूजा करा कर खिचड़ी का भोग लगाकर गाय को खिचड़ी खिलाकर प्रसाद स्वरूप पूरे घर में उसे खाया जाता है। छत्तीसगढ़ीयों द्वारा इस दिन सब्जी में सारे सब्जीयो जैसे – जिमीकंद, मूली, भाटा, करेला, मूनमा, कुम्हड़ा सारे सब्जियों को मिलाकर 56 स्वरुप सब्जी बनाकर प्रसाद खिलाया जाता है। इसी दिन ग्रामवासियों द्वारा सुबह गौरा – गौरी मूर्ति पूजाकर गांव में मूर्ति घुमाया जाता है तथा श्रध्दापूर्वक विसर्जन किया जाता हैं।

लोगों से प्रेमपूर्व होता है मिलन

गोवर्धन पूजा के शाम में गोठान में गोवर्धन पूजा हेतु गोबर से गोवर्धन बनाया जाता हैं। यादव (राउत), समाज द्वारा दोपहर में घरों- घर जाकर सोहई गीत गाते हुए धान कोठी में सोई बाधा जाता हैं। शाम में यादव (राउत) समुदाय द्वारा गाना गाकर गाव वालो को आमंत्रित किया जाता है। लोग राउत नाचा, गाना – बाजा के साथ गौठान जाकर गोवर्धन पूजा कर उसी देवता को उठाकर घरों घर जाकर परिवार, मित्र सब एक-इसरे में गोबर का टिका लगाकर दिवाली व सुख समृद्धि की बधाई व सुभकामनाएं देते हैं। गांवो में गाने, फटाके, आतिशबाजी के साथ दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है।

भाई दूज का पर्व

भाई दूज का त्योहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है। भाई दूज को भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से भी जाना जाता है। भाई दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन बहनें स्नान-ध्यान के बाद यम देव की पूजा करती हैं। इसके बाद अपने भाई के हाथ पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और माथे पर तिलक लगाती हैं। इस समय बहनें यम देवता से अपने भाई की लंबी आयु और सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए कामना करती हैं।
वहीं, भाई अपनी बहनों को मन मुताबिक उपहार देती हैं। भाई दूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन यम देव अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन करने आए थे। जिसके बाद से यह पर्व मनाया जाता है। इस तरह की सांस्कृतिक, पारंपरिक व खुशियों के साथ हमारे गांव में दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है।
नाम – स्वाति परिहार
जिला – बेमेतरा (नवागांव)

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