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स्कूलों के प्राचार्यों ने पत्रिका के सामने इस वित्तीय समस्या बताई।प्राचार्यों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रतिवर्ष स्कूलों की चॉक, डस्टर, सफाई का सामान समेत छोटी-छोटी जरूरतों को पूरी करने के लिए 5 लाख रुपए मिलते थे। लेकिन, नई सरकार बनने के बाद बजट दिया ही नहीं जा रहा। पूरा साल बीतने का आया, तब जाकर नवंबर माह में केवल 79-79 हजार रुपए स्कूलों को मिले, जो पिछली उधारी चुकाने में खत्म हो गया। अब फिर हमें दुकानदारों के सामने जरूरत के सामान खरीदने के लिए हाथ फैलाना पड़ रहा है। दुकानदार भी उधारी सामान देने से अब इंकार करने लगे हैं। करने उल्लेखनीय है कि स्वामी आत्मानंद स्कूलों में बच्चों से भी किसी तरह की फीस नहीं ली जाती है।
कलेक्टर की समिति कर रही संचालित
पिछली सरकार ने वर्ष 2020 में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए प्रदेशभर के 751 सरकारी स्कूलों को ऑटोनोमस (अनुदान प्राप्त) व्यवस्था के तहत स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालय में बदल दिया था और उनके संचालन के लिए प्रत्येक जिला के कलेक्टर की अध्यक्षता वाली समिति को जिमेदारी दे दी गई। स्कूलों के संचालन के लिए सामान्य प्रशासन की ओर से अलग से बजट दिया जाता रहा है। लेकिन, अब नई सरकार आत्मानंद स्कूलों को सरकारी व्यवस्था के अंतर्गत संचालन चाहती है। इसके लिए फाइल भी चल रही है, जो विभागों में घूम रही है। लेकिन, इस मामले में कोई भी फैसला नहीं हो पा रहा। इस कारण आत्मानंद स्कूलों को बजट मिलने की समस्या आ रही है।