शास्त्र की अनुप्रेक्षा में बहुत गहरा चिंतन है। पहले आप निर्णय करके अपने आप में दृढ़ हो जाओ। वस्तु का जो स्वभाव है वह धर्म है। इसलिए वस्तु स्वभाव की फिक्र करो, धर्म की फिक्र मत करो। वस्तु स्वभाव की फिक्र करोगे तो धर्म हो जाएगा। हिंसा से रहित धर्म होता है। भाईचारे में धर्म है, प्रेम वात्सल्य में धर्म है, भक्तिभाव में धर्म है। आराधना में धर्म है। सभी एक ही रास्ते पर चलते हुए भी सभी के अनुभव अलग अलग हैं। जब भी आपको धर्म की बात करनी होगी तो अहिंसा, अपरिग्रह, सत्य की बात करनी पड़ेगी।
रायपुर•Oct 24, 2019 / 08:27 pm•
Nikesh Kumar Dewangan
मुनि प्रसम सागर के दादाबाड़ी में प्रवचन
Hindi News / Raipur / भाईचारा, वात्सल्य, आराधना और भक्तिभाव भी हैं धर्म के रूप