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रायपुर

छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिलती है यह महंगी सब्जी, पोषक तत्वों से है भरपूर

झारखंड में इस सब्जी को रुगड़ा कहा जाता है। वहां इससे होड़ोपैथी (आदिवासी चिकित्सा पद्धति) से दवा तैयार की जाती है। महानगरों में यही सब्जी 2 हजार किलो तक बिकती है।

रायपुरJun 29, 2022 / 05:23 pm

CG Desk

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रायपुर. बस्तर के सरई बोड़ा के बारे में आपने बहुत सुना होगा, छत्तीसगढ़ के ज्यादातर लोग इसका स्वाद भी ले चुके होंगे। साल को छत्तीसगढ़ में सरई कहा जाता है। जबकि बोड़ा स्थानीय आदिवासियों का दिया हुआ नाम है। इसलिए बोड़ा को सरई बोड़ा भी कहा जाता है। बोड़ा की खोज भी आदिवासियों की ही है। वनोपज पर निर्भरता के कारण वनवासी यहां पैदा होने वाले हर खाद्य पदार्थ के बारे में जानते हैं। बोड़ा भी उन्ही में से एक है।

बोड़ा दरअसल एक फंगस है। वैज्ञानिकों ने इसका बॉटिनिकल नाम शोरिया रोबुस्टा रखा है। वैसे इसे छत्तीसगढ़ का काला सोना भी कहा जाता है। राजधानी रायपुर में भी इसकी भारी डिमांड है। साल में महज डेढ़ दो महीने मिलने वाली यह सब्जी अब जंगलों में पैदा होने लगी है। गावों में ये 300 रुपये किलो, तो आसपास के शहरों में करीब 600 रुपये में मिलती है। जबकि महानगरों में यही सब्जी 2 हजार किलो तक बिकती है। आखिर क्या है यह सब्जी और कहां व कैसे पैदा होती है आइए जानें इसके बारे में सबकुछ

साल वृक्ष के नीचे से ऐसेे निकलता है बोड़ा
बस्तर को साल वृक्षों का द्वीप कहा जाता है और साल वृक्ष के नीचे ही काले और सफेद रंग का बोड़ा निकलता है। बस्तर में मानसून के आगमन से पहले होने वाली बारिश में बोड़ा साल वृक्ष के नीचे से निकाला जाता है। कहा जाता है कि जितना बादल गरजता है उतना ही बोड़ा निकलता है। हल्की बारिश में इसकी आवक बस्तर के बाजारों में ज्यादा होती है। जहां जमीन थोड़ी ऊंची और मुलायम दिखती है, वहां बस्तर के आदिवासी जमीन खोदकर इसे निकालते हैं। मिटटी के नीचे होने के कारण इसमें काफी मिट्टी लगी होती है। इसे उपयोग में लाने से पहले इसकी काफी सफाई की जाती है ताकि मिट्टी की वजह से सब्जी का जायका ना बिगड़े। चार से पांच बार पानी से धोकर ही इसे उपयोग में लाया जाता है।

बस्तर से आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में बोड़ा की सप्लाई की जा रही है। राजधानी रायपुर में भी इसकी भारी डिमांड है। फिलहाल इसका बाजार भाव 3 हजार रुपए किलो तक है। इसे देश की सबसे महंगी सब्जी कहा जाता है। इसकी मांग ज्यादा और सप्लाई कम है। इस वजह से भी दाम बढ़े हैं। बस्तर में साल वृक्ष भी पिछले 10 साल में बहुत कम हुए हैं।

बोड़ा में हैं ये गुणकारी तत्व
यह फंगस खाद्य के तौर पर उपयोग में लाया जाता है। सैल्यूलोज व कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होने की वजह से शुगर व हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) वालों के लिए यह रामबाण है। इसे खाने से उन्हें कोई नुकसान नहीं होता। आमतौर पर यह बटन मशरूम की तरह दिखता है।

मशरूम जहां जमीन के ऊपर होता है वहीं यह आलू की तरह जमीन के नीचे पैदा होता है। पेट की समस्याओं के लिए होड़ोपैथी में रुगड़ा से दवाई बनाई जाती है। प्रोटीन का यह बड़ा स्रोत है। फाइबर भी इसमें खूब होता है। कैलोरी काफी कम होती है, जिससे हेल्थ कॉन्श लोग आराम से इसे खा सकते हैं।

झारखंड में बोड़ा को रुगड़ा कहा जाता है। वहां इससे होड़ोपैथी (आदिवासी चिकित्सा पद्धति) से दवा तैयार की जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार झारखंड की 70 प्रतिशत आदिवासी आबादी इस चिकिम्त्सा पद्धति से जुड़ी हुई है। बस्तर के आदिवासी भी इसके औषधीय गुण को जानते हैं और वे इसका उपयोग औषधी के रूप में करते हैं।

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