स्टे होम की सोच से आया बड़ा बदलाव :
बस्तर के घने जंगलों में बसे गांवो में इन दिनों स्टे होम की व्यवस्था की गई है। इन गाँवो में स्टे होम के माध्यम से यहां के आदिवासी कला व संस्कृति को जानने व समझने के शौकीन विदेशी व देशी सैलानी आदिवासी जीवन शैली को बहुत करीब से देख व समझ रहे हैं। इन्हें गांवों में घने जंगलों के बीच बने झोपड़ियां आकर्षित कर रहीं है। देश-विदेश के पर्यटक अब बस्तर के गांवों में बने होम स्टे में समय बीता रहे हैं।
जलप्रपात नहीं, यहां की संस्कृति के प्रति अधिक प्रेम :
नक्सलवाद को छोड़ दें तो बस्तर की लोक संस्कृति के प्रति देशी विदेशी पर्यटकों में बहुत अधिक रुझान हैं। नक्सलवाद से न केवल विश्व में बस्तर की छवि धूमिल हुई है वरन आर्थिक नुकसान भी हुआ। पर्यटन व्यवसाय से आदिवासी युवाओं को जोड़ने से न केवल उन्हें आर्थिक लाभ मिल रहा है वरन वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को देश विदेश में प्रचारित भी कर पा रहे हैं।
आंगा देव व गुड़ीदेव अधिक आकर्षण
नानगुर इलाके का गाँव छोटेकवाली में होमस्टे संचालित करने वाले शकील रिजवी ने बताया कि यहां देश विदेश से आने वाले पर्यटकों को यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति, कला, नृत्य और जीवन शैली खूब पसंद कर रहे हैं। यहां अधिकांश विदेशी पर्यटक बस्तर के जल कामिनि, आंगादेव तथा गुड़ीदेव सबसे आकर्षण का केंद्र है।
फ्रांस व अमेरिका के पर्यटक सबसे अधिक
बस्तरिया संस्कृति को लेकर अमेरिका, फ्रांस, इटली व रूस के कई रिसर्चर, फोटोग्राफर, फारेस्टर यहाँ प्रति वर्ष पहुचते हैं। और बस्तर की कल्चर, खानपान, रहन सहन, रीति रिवाज को जानने आदिवासियों के बीच स्टे होम में रहते हैं। इसके अलावा केरल, पूना, मुम्बई,गुजरात नईदिल्ली,कलकत्ता इत्यादि शहरों से भी कई पर्यटकों का दल आकर रहते हैं।
वर्तमान में बस्तर ज़िले के छोटेकवाली, चिलकुटी, गुड़ियापदर, मिलकुलवाड़ा, पुसपाल, व नेशनल पार्क में होमस्टे चला रहे हैं। इसके अतिरिक्त कोंडागाँव, नारायणपुर, केशकाल, कांकेर, दंतेवाड़ा, सुकमा में भी होमस्टे संचालित हैं।