रायपुर

दो कुलपतियों की नियुक्ति पर राजभवन और छत्तीसगढ़ सरकार में टकराव के संकेत

भूपेश बघेल ने कहा कि संघ की पृष्ठभूमि के कुलपतियों की नियुक्ति की जानकारी उन्हे आदेश जारी होने के बाद पता चली।

रायपुरMar 04, 2020 / 07:01 pm

bhemendra yadav

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में दो शासकीय विश्वविद्यालयों में कथित रूप से संघ की पृष्ठभूमि के कुलपतियों की कल हुई नियुक्ति को लेकर राजभवन एवं राज्य सरकार में टकराव की स्थिति निर्मित होती दिख रही है। इन नियुक्तियों पर सरकार की ओर से असहमति जताते हुए नाराजगी जताई गई है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल रात यहां वरिष्ठ संपादकों से बजट पर अनौपचारिक चर्चा के दौरान इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि संघ की पृष्ठभूमि के कुलपतियों की नियुक्ति की जानकारी उन्हे आदेश जारी होने के बाद पता चली। राजभवन ने राज्य सरकार की संस्तुति की अनदेखी की। राज्यपाल ने अपना काम कर दिया है,राज्य सरकार अपना काम करेंगी..।
इस विवाद की शुरूआत राजभवन से रायपुर के कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बलदेव भाई शर्मा तथा बिलासपुर के प. सुन्दरलाल शर्मा ओपन विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर वंशगोपाल शर्मा की पुन: नियुक्त किए जाने के आदेश जारी होने के बाद हुई।
जानकारी के अनुसार कुलपतियों की नियुक्ति के आदेश राज्यपाल अनुसुईया उइके द्वारा जारी किए गए हैं जबकि पूर्व की परम्परा के अनुसार राज्यपाल की स्वीकृति के बाद उनके सचिवालय द्वारा सचिव या प्रमुख सचिव के द्वारा जारी होते रहे है। इस परम्परा का पालन नही होने के कारण ही राज्य सरकार को नियुक्ति की जानकारी आदेश जारी होने के बाद हुई।
सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने दोनो विश्वविद्यालयों पर नियुक्ति के लिए बने पैनल में जिन नामों की कुलपति के लिए संस्तुति की थी, उन पर राजभवन एवं उनके बीच सहमति नही बन पा रही थी जिसके कारण से इन पदों पर नियुक्ति नही हो पा रही थी।सरकार को विश्वास था कि सहमति बनने तक इन पर नियुक्ति नही होगी,पर राज्यपाल ने विश्वविद्यालय अधिनियम में प्रदत शक्तियों का प्रयोग करते हुए अचानक आदेश जारी कर दिया।

राज्यपाल ने अपना काम कर दिया है, अब राज्य सरकार अपना काम करेंगी.. के कथन के तेवरों से लग रहा हैं कि वह फिलहाल इन मसले पर शान्त नही बैठने वाले है। उन्होने यह भी संकेत दिया है कि राज्य सरकार विश्वविद्यालय अधिनियम में बदलाव कर मौजूदा व्यवस्था में राज्यपाल से यह अधिकार वापस लेकर राज्य सरकार की संस्तुति को मानने की बाध्यता की व्यवस्था करेंगी।
बघेल को नामों से कहीं ज्यादा इनकी संघ की पृष्ठभूमि को लेकर एतराज है। राज्य गठन के बाद केन्द्र एवं राज्य में अलग पार्टियों की सरकार होने के बाद भी शायद यह पहला मौका होगा कि राजभवन एवं राज्य सरकार में किसी मसले पर टकराव सार्वजनिक हुआ हो। देखना है कि इस मसले पर टकराव किस हद तक पहुंचता है।
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