यह भी पढ़ें: CG News: दिल की बीमारी अब बुजुर्गों की नहीं… स्क्रीनिंग के बाद 49 बच्चों की जांच, निकले 23 हृदयरोगी यही नहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी बिना परची की दवा देने पर रोक लगाई है, लेकिन कई मेडिकल स्टोर वाले इस नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। पत्रिका ने सोमवार को तीन मेडिकल स्टोर पर एंटीबायोटिक दवा की मांग की तो आसानी से मिल गई। स्टोर के कर्मचारियों ने ये तक नहीं कहा कि इसके लिए डॉक्टर की पर्ची की जरूरत है। ये तो केवल बानगी है। पूरे शहर में मेडिकल स्टोर में यही दृश्य है। डॉक्टरों के अनुसार आईसीयू में भर्ती गंभीर व सेप्टीसेमिया के मरीजों पर एंटीबायोटिक दवाएं असर नहीं कर रही है।
दवाओं के दुरुपयोग के कारण ऐसा हो रहा है। ज्यादातर मरीज स्थानीय अस्पतालों या डॉक्टर से इलाज करवाकर बड़े अस्पताल में पहुंचते हैं। तब तक उन्हें डॉक्टर एंटीबायोटिक के हाई डोज दे चुके होते हैं। ऐसे में जरूरी दवा देने के बाद भी असर नहीं करती। इससे मरीज असमय ही मौत के मुंह में चले जाते हैं। कई मरीज लंबे इलाज के बाद भी ठीक नहीं होते और जीवनभर बिस्तर पर पड़े रहते हैं।
कहीं मल्टीनेशनल दवा कंपनियों के दबाव का असर तो नहीं ये
एंटीबायोटिक दवाओं का बेतहाशा उपयोग न केवल गांवों में, बल्कि बड़े सरकारी व निजी अस्पतालों में भी हो रहा है। चर्चा है कि कुछ डॉक्टर मल्टीनेशनल दवा कंपनियों के लालच में आकर मरीजों के लिए हाई डोज एंटीबायोटिक दवाएं लिख रहे हैं या इंजेक्शन लगा रहे हैं। इससे न केवल मरीजों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है, वरन जान का खतरा भी बन रहा है। डॉक्टरों के अनुसार मरीजों को हाई डोज एंटीबायोटिक दवाएं देने के बाद दूसरी दवा का असर ही नहीं होता। दरअसल बॉडी में एंटी ड्रग रजिस्टेंस बन रहा है। मेडिकल री-अंबर्समेंट के लिए आने वाले मेडिकल बिल में हाई डोज एंटीबायोटिक व महंगी दवा लिखने की पुष्टि भी हो रही है। सीनियर डॉक्टर भी मेरोपेनम जैसे दवाएं एक माह के लिए लिख रहे हैं, जो नियमानुसार गलत है। जर्नल जेएसी एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस के अनुसार दुनिया में इजिथ्रोमाइसिन सबसे ज्यादा खाई जाने वाली दवा है। 500 मिग्रा की दवा रोज 38.4 करोड़ डोज खाई जाती है।
प्रोटोकाल के लिए बनी थी कमेटी, डॉक्टरों ने कहा- कमेटी की अनुशंसा अमान्य
प्रदेश सरकार ने 2018 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश के बाद प्रदेश में एंटीबायोटिक दवाओं का प्रोटोकॉल तय करने के लिए एक कमेटी बनाई थी। स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 2020 में सरकार को रिपोर्ट सौंप दी थी। हालांकि कमेटी की अनुशंसा लागू नहीं हो पाई है। दरअसल विशेषज्ञों का कहना था कि एंटीबायोटिक के संबंध में कमेटी प्रोटोकॉल कैसे तय कर सकती है? इलाज करने वाले डॉक्टरों को कई बार मरीज के लक्षण व गंभीरता के अनुसार दवाएं देनी पड़ती है। यह चूंकि मरीज की जान से जुड़ा मामला है इसलिए रिपोर्ट लागू नहीं की जा सकी। चूंकि रिपोर्ट लागू नहीं हुई इसलिए मॉनीटरिंग भी नहीं हो रही है। छत्तीसगढ़ रिटायर्ड डॉ. विष्णु दत्त डीएमई एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल के लिए प्रोटोकॉल तय है, लेकिन इसका पालन कहीं भी नहीं हो रहा है। न डॉक्टर इसका पालन कर रहे हैं और न मेडिकल स्टोर वाले। स्टोर वाले डॉक्टरों के बिना प्रिस्क्रिप्शन के ये दवा बेच रहे हैं। ड्रग विभाग भी कोई कार्रवाई नहीं करता।
घबराहट या हार्ट अटैक का खतरा शरीर में अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं। किडनी खराब होने की आशंका। दिमागी उलझन यानी कंफ्यूजन। जी मिचलाना, पेट दर्द या डायरिया। एलर्जी व मुंह में लाल चकत्ते।
डाइजेशन की समस्या। हड्डियां कमजोर व आस्टियोपोरोसिस की समस्या