पत्रिका ने 25 अगस्त के अंक में यह मामला उठाया था। मुख्यमंत्री सचिवालय के निर्देश पर सरगुजा कलेक्टर संजीव कुमार झा ने इसकी जांच शुरू की है। मंगलवार को अम्बिकापुर के सहायक आयुक्त आदिवासी विकास जेआर नागवंशी, उदयपुर के अनुविभागीय अधिकारी राजस्व प्रदीप साहू और अनुविभागीय अधिकारी वन एसएन मिश्रा की संयुक्त टीम ने मामले की जांच की। कलेक्टर को भेजी गई संयुक्त जांच रिपोर्ट में साफ लिखा है, किसानों को घाटबर्रा के कंपार्टमेंट क्रमांक 2004 और 2005 में वन भूमि का अधिकार पत्र दिया गया था। भू-अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार कानून में वन अधिकार पत्र धारक को भू-स्वामी माना गया है। ऐसे में वन अधिकार पत्र से मिली जमीन का कब्जा भूमि अधिग्रहण का अवार्ड पारित करने के बाद ही लिया जाना चाहिए। लेकिन, किसानों की वन अधिकार के तहत मिली जमीन को बिना भू-अधिग्रहण की प्रक्रिया के ही खनन के लिए ले लिया गया है। अधिकारियों ने बताया है, प्रभावितों में से नवल सिंह आदि 15 किसानों ने कहा है, जमीन के लिए चेक देते हुए उनसे एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर कराया गया है।
मुख्यमंत्री तक पहुंची शिकायत
परसा ईस्ट केते वासन कोयला ब्लॉक की दो खदाने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित हैं। अडानी इंटरप्राइजेज उसकी एमडीओ है। पहली में 2013 से खनन चल रहा है। दूसरी खदान में खनन 2028 से शुरू होना है। इसकी भू-अधिग्रहण प्रक्रिया चल रही है। स्थानीय ग्रामसभाएं इस प्रक्रिया का विरोध कर रही हैं। कंपनी ने गुपचुप तरीके से घाटबर्रा, परसा आदि गांवों में कई किसानों की जमीन को शपथपत्र पर अपने पक्ष में करा लिया है। अभी तक ऐसे 32 किसानों का मामला सामने आया है। इनमें आदिवासी किसान भी शामिल हैं। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और छत्तीसगढ़ वन अधिकार मंच ने मुख्यमंत्री से इसकी शिकायत की है।