रायपुर

70 प्रतिशत मौतों की वजह सर्दी, जुकाम और खांसी को नजरअंदाज करना, अस्पताल पहुचने तक हो जाती है बहुत देर

अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में जिन लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई, डॉक्टरों ने उनके अस्पताल में भर्ती होने के दौरान ब्रेथलेसनेस (फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलना या सांस की तकलीफ या दमभरना) की समस्या पाई। जो ऑन-रेकॉर्ड है।

रायपुरOct 05, 2020 / 11:21 pm

Karunakant Chaubey

70 प्रतिशत मौतों की वजह सर्दी, जुकाम और खांसी को नजरअंदाज करना, अस्पताल पहुचने तक हो जाती है बहुत देर

रायपुर. प्रदेश में कोरोना वायरस अब तक 1050 से अधिक लोगों की जान ले चुका है। शुरुआत में सर्दी, जुकाम, लगातार कई दिनों तक बुखार और लगातार खांसी की शिकायत लेकर मरीज अस्पताल पहुंच रहे थे। इलाज के दौरान मरीज ठीक भी हो जा रहे थे। मगर, आज महामारी के इस दौर में मरीजों में दिखने वाले उन शुरुआती लक्षणों में बड़ा बदलाव दर्ज किया जा रहा है।

अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में जिन लोगों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई, डॉक्टरों ने उनके अस्पताल में भर्ती होने के दौरान ब्रेथलेसनेस (फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलना या सांस की तकलीफ या दमभरना) की समस्या पाई। जो ऑन-रेकॉर्ड है। ‘पत्रिका’ पड़ताल में सामने आया कि यह लक्षण कोरोना से होने वाली 70 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार हैं।

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आंकड़ों बताते हैं कि 30 जुलाई तक प्रदेश में 53 लोगों की इलाज के दौरान मौत हुई। तब स्वास्थ्य विभाग ने मौतों के कारणों का डीप इंवेस्टीगेशन नहीं किया था। मगर, इसके बाद बढ़ते मौतों के आंकड़ों तेजी से बढऩे लगे। 31 अगस्त तक 277 मौतें हो गईं। अगस्त से ही मौतों की डिटेल रिपोर्ट तैयार की जाने लगी।

इस रिपोर्ट में मरीज के अस्पताल में भर्ती होने की वजह, मौत के कारण को लिखा जा रहा है। 10 में हर 7वीं मौत में यही कारण दर्ज है। यही वजह है कि सरकार जिला स्तर पर कोविड हॉस्पिटल और कोरोना केयर सेंटर में 5 हजार ऑक्सीजनयुक्त बेड का इंतजाम कर रही है।

क्या है ब्रेथलेसनेस

पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट विभागाध्यक्ष डॉ. आरके पंडा बताते हैं कि एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) की वजह से फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलती। जिसके चलते व्यक्ति कम समय में अधिक ऑक्सीजन लेने की कोशिश करता है। जब वह ऐसा नहीं कर पाता है तो इसे ब्रेथलेसनेस कहते हैं। इसे ही सांस लेने में तकलीफ कहा जाता है।

पल्स ऑक्सीमीटर आज बेहद जरूरी

डॉक्टरों का मानना है कि आज के समय पर पल्स ऑक्सीमीटर घर पर रखना चाहिए। खासकर उन घरों में जहां बुजुर्ग हैं, परिवार का सदस्य अन्य किसी बीमारी से पीडि़त है या फिर घर में किसी सदस्य को सर्दी, जुखाम, खांसी है। ऑक्सीजन लेवल 92 से नीचे न जाए, यह ध्यान रखना चाहिए।

मरीजों के लिए करें ऑक्सीजन का बंदोबस्त

अगर बुजुर्ग व्यक्ति कोरोना संक्रमित हुए हैं। 10 दिन बाद स्थिति ठीक होने पर अस्पताल से छुट्टी दे दी जा रही है, मगर निमोनिया के हल्के लक्षण हैं। या हल्की ही सही सांस फूल रही है तो डॉक्टर की सलाह पर घर पर ऑक्सीजन की व्यवस्था कम से कम 15 दिन तक के लिए करनी चाहिए। ऑक्सीजन लेवल 90 प्रतिशत से नीचे उतरता है तो ऑक्सीजन सपोर्ट देना चाहिए।

 

सिर्फ सांस फूलना ही कोरोना नहीं-

डॉक्टरों का मानना है कि सिर्फ सांस फूलने से ही कोरोना नहीं होता। सांस फूलने की वजह हृदय रोग, एनीमिया, फेफड़े के अन्य रोग भी हो सकते हैं। वहीं सिर दर्द भी कोरोना का लक्षण नहीं है। इसलिए घबराएं नहीं।

देखिए, कोरोना से मरने वालों में ब्रेथलेसनेस की समस्या सर्वाधिक पाई जा रही है। यह वायरस सीधे फेफड़ों में अटैक करता है। इसलिए समय पर इलाज बेहद जरूरी है।

-डॉ. सुभाष पांडेय, प्रवक्ता एवं अध्यक्ष, कोरोना डेथ ऑडिट कमेटी, स्वास्थ्य विभाग

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