रायगढ़. जिले में सिलिकोसिस बीमारी से लगातार हो रही मौत और प्रशासनिक लापरवाही के विरोध में मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खट-खटाया गया है। मानवाधिकार आयोग में इस मामले की शिकायत करने के बाद हस्तक्षेप करने और पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने की मांग की गई है। सामाजिक संगठन जनचेतना की ओर से मानवाधिकार आयोग दिल्ली को भेजी गई शिकायत में कहा गया है कि जिले में सिलिकोसिस का कहर बरप रहा है और जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की ओर इसके पीडि़तों को टीबी की दवाई खिलाई जा रही है। जब मामला उठा और सिलिकोसिस की पहचान हुई, इसके बाद भी इन पीडि़तों की मदद नहीं की जा रही है। ये सभी प्रभावित जिले में चल रहे पत्थर पिसाई उद्योग से संबंधित हैं। जहां ये लोग कार्य करते थे, या फिर ऐसे लोग हैं जो उस लोकेलिटी में निवास करते हैं जहां ये उद्योग संचालित होते हैं। आयोग से की गई शिकायत में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि सिलिकोसिस से अब तक दर्जन भर लोगों की मौत हो चुकी है पर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इस मामले में खामोशी बरते हुए है। ऐसे में मनवाधिकार आयोग से इस बात की गुहार लगाई गई है कि पीडि़तों की मदद की जाए और इस लापरवाही के पीछे के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। खेल रहे थे छिपाने का खेल जिले में सिलिकोसिस को छिपाने का खेल ऐसा चलता रहा कि प्रारंभिक में जो लोग इससे पीडि़त थे उन्हें सालों तक टीबी की दवाई खिलाई जाती रही। ऐसे में इस मामले को पत्रिका में जोरदार तरीके से उठाया गया था, दूसरी ओर समाजिक संगठन जनचेतना की ओर से सिलिकोसिस से मरे व्यक्ति के चिता की राख को जांच के लिए भेजा गया जहां इस बात का पुष्टि हुई कि ये लोग टीबी नहीं सिलिकोसिस से पीडित थे। इसके बाद 25 दिसंबर 2015 को एक शिविर आयोजित हुई, जिसमें राष्ट्रीय स्तर और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के डाक्टरों की टीम सिलिकोसिस प्रभावित क्षेत्र सराईपाली पहुंची और शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में 58 लोगों की जांच हुई जिसमें से 29 लोग सिलिकोसिस पीडि़त मिले। इस 29 में से 9 लोग गंभीर पाए गए। वर्तमान में दो की मौत हो चुकी है। जबकि सात मरने की कगार पर हैं। कर दिया इंकार सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी ने बताया कि जब इस मामले की जानकारी जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को दी गई तो उनकी ओर से मौखिक रूप से यह कहा गया कि जिन लोगों ने सिलिकोसिस की पहचान की है वो लोग प्रायवेट डाक्टर हैं उनकी रिपोर्ट को हम नहीं मानते हैं। अब सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी का कहना है कि एक ओर लगातार हो रही मौत के मामले में ये चुप बैठे हैं दूसरी ओर यदि कोई प्रयास कर रहा है तो उसे खारिज किया जा रहा है। आंख मूंदे बैठे रहे विभाग इन मौतों का जिम्मेदार कौन आखिर इन लोगों को बीमार करने का जिम्मेदार कौन है। जानकार बताते हैं व्यक्ति के स्वास्थ्य का जिम्मा राज्य सरकार का होता है। वहीं खदानों और कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिकों को सुरक्षा देने का जिम्मा संबंधित खदान संचालक और कारखाना संचालक का होता है। इन सबके ऊपर इस पर मानिटरिंग की जिम्मेदारी संबंधित विभाग का होता है या फिर यूं कहें कि प्रशासन का होता है। अब की स्थिति में जो बातें सामने आ रही है उसके अनुसार यदि इन सभी में से किसी एक ने भी ध्यान दिया होता तो शायद आधे दर्जन लोगों की मौत नहीं हुई होती। न तो खदान और कारखाना संचालक ने वहां के कार्य की प्रकृति को देखते हुए आवश्यक सुरक्षा के इंतजाम किए और न ही संबंधित विभाग को इस बात की परवाह रही कि वहां कार्य कर रहे मजदूरों की स्थिति सही है या नहीं, आवश्यक सुरक्षा दी जा रही है या नहीं। जबकि प्रशासन को भी इस बात की परवाह नहीं रही। इसका प्रमाण यह है कि सराईपाली क्षेत्र में श्रमिक सिलिकोसिस से मरते रहे और प्रशासन ने कभी इस पर ध्यान हीं नहीं दिया।