स्कूल की संख्या में आ रहा है अंतर
जिले के कई स्कूलों में 10 वीं व 12 वीं में दो से तीन सेक्शन हैं इसके अलावा १२ वीं में विषयवार अलग-अलग क्लास हैं। इन सभी की अलग-अलग इंट्री होनी है, इसके कारण जिले में 10 वीं के 111 स्कूल है, लेकिन इसमें 235 संख्या दिख रही है। इसीप्रकार 12 वीं का 148 स्कूल है लेकिन इसमें 250 स्कूल दिख रहे हैं।
इधर इंट्री करने में भी कर रहे हैं गड़बड़ी
सूत्र बताते हैं कि सेक्शन और विषयवार अलग-अलग कक्षा होने का लाभ स्कूल प्रबंधन उठा रहे हैं। एक कक्षा की इंट्री करने के बाद वेबसाइट में स्कूल का नाम आ जाने पर इंट्री हो जाने की रिपोर्ट कर रहे हैं जबकि अन्य सेक्शन व विषय के कक्षाओं की इंट्री बाद में की जा रही है।
हर साल गिर रहा रिजल्ट
पिछले दो साल से देखा जाए तो 10 वीं और 12 वीं बोर्ड के परिणाम का प्रतिशत गिरता चला जा रहा है। इसको लेकर पूर्व में शिक्षा मंत्री ने भी एक शिविर में तात्कालीन कलक्टर को आईंना दिखाते हुए सुधार लाने के लिए कहा था। जिसके बाद वर्तमान कलक्टर ने पहल के माध्यम से परिणाम में सुधार लाने की कवायद शुरू की, पर स्थिति अब भी जस की तस दिख रही है।
गिने-चुने ए व बी में
पहल के तहत सामने आए परिणाम के अनुसार हाई स्कूल के परिणाम पर गौर किया जाए तो लैलूंगा में २९ स्कूल सी ग्रेड व एक स्कूल बी ग्रेड में है जबकि एक भी स्कूल ए व ए प्लस में नहीं है।
पत्रिका व्यू
जि ले में शिक्षा की जो हालत हैं वो किसी से छुपी नहीं है। खासकर सरकारी शिक्षा जिस प्रकार से रेंग रही है उसमें यह कह पाना मुश्किल है कि देश का भविष्य कैसे गढ़ा जा रहा है। जर्जर हो चुके स्कूल भवन, संसाधन की कमी से जूझ रहे शिक्षण व्यवस्था को लाख योजनाओं की घुट्टी पिला दी जाए इसका परिणाम तब तक बेहतर नहीं आएगा जबतक इस समस्या की जड़ को उदासीनता, मनमानी और अदूरदर्शिता के खाद-पानी से सींचा जाता रहेगा। अगर बेहतर परिणाम चाहिए तो सबसे पहले स्कूलों में संसाधन को सुधारना होगा फिर शिक्षा व शिक्षकों की गुणवत्ता पर कार्य करना होगा, इसके बाद पूरी शिक्षण व्यवस्था में कसावट लानी होगी। केवल योजना की खानापूर्ति से शिक्षण व्यवस्था की दुर्दशा पर उठते सवालों को तो दो मिनट के लिए टाला जा सकता है पर खुद सवाल बनती जा रही सरकारी शिक्षा को शनै-शनै रुग्न होने से नहीं रोका जा सकता।