Prime

भारत को वैश्विक ब्रांड बनाने के लिए आवश्यक रणनीतियां

मिलिंद कुमार शर्मा, एम.बी.एम. विवि में प्रोफेसर

जयपुरDec 18, 2024 / 01:00 pm

Hemant Pandey

भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला के ऊपरी हिस्से में स्थित तकनीकी और व्यापारिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि वह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के सपने को साकार कर सके। ताइवान के एसर के संस्थापक स्टान शी का ‘स्माइल कर्व’ सिद्धांत भारत के तकनीकी विकास के लिए प्रेरणा बन सकता है।


नई दिशा: उत्पादन से आगे बढक़र देश को बनाना होगा विश्व लीडर

भारत का ‘मेक इन इंडिया’, ‘मेक फॉर इंडिया’ अभियान महत्त्वपूर्ण था। इसके बाद अब ‘डिजाइन फॉर इंडिया’ और ‘डिजाइन फॉर वल्र्ड’ आधारित रणनीति का दृष्टिकोण पेश किया जा सकता है। भारत की विशाल जनसंख्या और विकास की संभावनाओं को देखते हुए नीति निर्धारकों का उत्पादन आधारित अर्थव्यवस्था पर जोर देना उचित प्रतीत होता है। भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला के ऊपरी हिस्से में स्थित तकनीकी और व्यापारिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि वह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के सपने को साकार कर सके। ताइवान के एसर के संस्थापक स्टान शी का ‘स्माइल कर्व’ सिद्धांत भारत के तकनीकी विकास के लिए प्रेरणा बन सकता है। इसके अनुसार, किसी भी आपूर्ति शृंंखला के ऊपरी हिस्से में अधिक मूल्य आधारित कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना राष्ट्र के विकास को गति दे सकता है। एसर कंप्यूटर ने आइबीएम और कोम्पैक जैसी कंपनियों के लिए असेंबली का काम किया, लेकिन जल्दी ही स्टान शी ने समझा कि एसर केवल अनुबंध निर्माता बनकर इन ब्रांड्स से सीमित लाभ प्राप्त कर रहा था।
इसी प्रकार, एप्पल जैसे ब्रांड्स, जो मोबाइल, लैपटॉप और अन्य उत्पादों के लिए प्रमुख हैं, अपने उत्पादन के अधिकांश काम फॉक्सकॉन जैसे अनुबंध कंपनियों से करवाती हैं। फॉक्सकॉन, दुनिया का सबसे बड़ा तकनीक वाला मैन्यूफेक्चरर है। केवल असेंबली कार्य करता है, जबकि एप्पल का मार्केट वैल्यू 3 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है। यह स्पष्ट है कि उत्पादन के बाद, भारत को भी एसर और एप्पल जैसी कंपनियों की रणनीतियों का पालन करना चाहिए। भारत को रिसर्च, नए खोज, ब्रांडिंग, डिजाइन, वितरण, विपणन और बिक्री के बाद सेवा जैसे अधिक मूल्य और लाभ आधारित कार्यों पर ध्यान देना चाहिए। ये काम ग्राहक से सीधे जुडऩे के कारण बड़े ब्रांड बनाने में सहायक होते हैं। रिसर्च और खोज, ब्रांडिंग और डिजाइन भारत को वैश्विक उत्पादों के निर्माण में आत्मनिर्भर बना सकते हैं। इसलिए भारत को इन पर फोकस करना होगा।
यह रणनीति भारत को अधिक मूल्य आधारित सेवाओं, उद्यमशीलता और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद करेगी। चीन की हुवाई, दक्षिण कोरिया की सैमसंग और ताइवान की एसर जैसी कंपनियों ने इसी मॉडल का पालन किया है। इसके अलावा, भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में भी यह रणनीति सहायक हो सकती है। भारत के सूचना और तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत इंजीनियर, जो विदेशी ब्रांड्स के लिए काम कर रहे हैं, यदि स्थानीय औद्योगिक प्रतिष्ठानों से जुड़ते हैं, तो भारत वैश्विक ब्रांड और लीडर के रूप में उभर सकता है। उच्च तकनीकी शिक्षा संस्थानों और निजी उद्यमों के बीच सहयोग से छोटे शहरों में भी गुणवत्ता से युक्त ढांचा विकसित किया जा सकता है। आरबीआइ के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और रोहित लाम्बा की पुस्तक ‘ब्रेकिंग द मोल्ड’ में भी भारत को अधिक मूल्य आधारित कार्यों पर बल देने की सिफारिश की गई है। उत्पाद आधारित काम भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला के ऊपरी हिस्से में स्थापित करने के साथ रिसर्च और खोज में आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायक होंगे। इस प्रकार, भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए उत्पादन से आगे बढक़र उत्पाद आधारित कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जिससे न केवल वैश्विक ब्रांड्स की पहचान बनेगी, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ेगी।

Hindi News / Prime / भारत को वैश्विक ब्रांड बनाने के लिए आवश्यक रणनीतियां

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.