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मोह्मद रफी: सुरों के शहंशाह के साथ इंसानियत के प्रतीक

गुलज़ार जहां रफ़ी साहब को संगीत का आठवां स्वर कहते थे, वहीं राज कपूर उन्हें “संगीत का बेताज बादशाह” मानते थे। नौशाद की नज़र में रफी साहब के गीत ही “हिन्दुस्तान की धड़कन” थे।

जयपुरDec 24, 2024 / 12:47 pm

Hemant Pandey

मन्ना डे का मानना था कि “सब गायक-गायिकाओं में रफ़ी साहब अव्वल थे क्यूंकि जो कुछ वो गले से अभिव्यक्त करते थे, वो दूसरे सब गायक-गायिकाओं के लिये करना नामुमकिन होता था।”

महान गायक मोहम्मद रफी साहब को हम से बिछड़े चार दशक हो चुके हैं, पर अब तक उनकी आवाज़ का जादू बरकरार है। उनके गायन से आलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है और इसीलिए दुनियाभर में सब उन्हें “परमात्मा की आवाज़” कह पूजते हैं। गीतों के इस मसीहा जैसी सादगी, ईमानदारी, उदारता और सरलता की कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती और ये उनके सत्कर्मों की पवित्रता ही है कि जो उनके सुर में ढल कर, सात दशकों से उन्हें संसार का सब से चहेता गायक बनाए हुए है।
अहंकार, लोभ, द्वेष और राजनीति से अछूते, रफ़ी साहब की दानवीरता की कहानियॉ, फिल्म जगत में लोक-कथा की तरह, आदरपूर्वक सुनाई जाती हैं। यही वजह कि उनकी आवाज़ में इतनी पाकीज़गी है, इतनी पवित्रता है कि लोग हमेशा उन्हें श्रद्धा, स्नेह और आदर से “रफ़ी साहब” कह के पुकारते हैं। बहुतेरों कलाकारों को स्थापित करने के लिये उन्होंने हज़ारों गीत मुफ्त गा दिये, चुपचाप आर्थिक मदद कर दी। ये उनकी उदारता देखिये कि इमरजेंसी में किशोर कुमार के गीतों पर लगे प्रतिबन्ध को हटवाने के लिये उन्होनें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से बात की थी। इस घटना के चश्मदीद गवाह मन्ना डे भी थे लेकिन ये बात रफ़ी साहब की मृत्युपरांत, किशोर कुमार ने खुद रोते हुए बतायी थी क्यूंकि उन दोनों से रफ़ी साहब ने कुछ ना कहने का वचन लिया था!
इसीलिये रफ़ी साहब की रचनाओं के श्रवण करने पर ऐसा महसूस होता है जैसे कोई पीर-पैगम्बर या संत, वन्दना में लीन हो, तन्मयता से गा रहा है। उनकी तीन सप्तक से लम्बी आवाज़ में जो विविधता, लोच, गहराई, ताकत और भाव्यात्मक अभिव्यक्ति थी, उस श्रेष्ठता को आज तलक, कोई गायक या गायिका छू भी नहीं पाया है। स्वर और लयकारी का गुण तो बहुतों के पास होता है पर शब्दों में करूणा, माधुर्य, थिरकन, जोश, पवित्रता, कोमलता और रूहानीयत का सही मिश्रण कर, मार्मिक प्रस्फुटन और सम्प्रेषण करना, सदियों में कोई एकाध बिरला ही कर पाता है। इसीलिये उनकी कृतियाँ लोगों की आत्मा में रम गयीं हैं।
हिमालय की बुलन्दी व सागर की गहराई में गुंथी रफ़ी साहब की इन्द्रधनुषी अदायगी, दिव्य अमृत्त का साक्षात्कार है। आप मंथन करें तो पायेंगे कि उनके गीतों में भाव है, प्रवाह है, पात्र है, एहसास है पर उनकी उपस्थिति के बावजूद, वो “खुद” कहीं नहीं हैं। यानि उनकी आवाज़ मंत्रमुग्ध करने के साथ-साथ, सब के अंतर्मन के भावों को मुखरित करती है। कोई नहीं जानता कि बीते युग के तानसेन और बैजू कैसा गाते थे, लेकिन सब मानते हैं कि उन दिग्गजों के अवतार सिर्फ़ विनम्र रफ़ी साहब ही हो सकते थे। परदे पर जब हम उनकी आवाज़ में अकबर के नवरत्न का “दीपक जलाओ, अंधेरा है मन का दीपक जलाओ” या बैजू का भजन “मन तड़पत हरि दर्शन को आज” सुनते हैं तो दोनों ही महान शास्त्रीय गायक हमारे सम्मुख सजीव हो उठते हैं. गुणीजन मानते हैं कि शायद रफ़ी साहब उन ऐतिहासिक शख्सियतों से भी बेहतर गायक थे क्यूंकि उन्होंने ना केवल स्वर की विविधता को प्रदर्शित किया बल्कि अपनी अभिव्यक्ति और उच्चकोटि के गायन से अनेकों पात्रों को जीवित कर दिया।
संगीतकार चित्रगुप्त कहते थे कि सब गायक-गायिकाओं में संगीत निर्देशकों को संतुष्ट करने की योग्यता थी लेकिन “रफ़ी साहब एकमात्र कलाकार थे जो संगीत रचना को अपनी अनूठी गायिकी से अकल्पनीय और उत्कृष्ट बना देते थे।” संगीतकार प्यारेलाल के अनुसार धुन कितनी भी कठिन होती थी, रफ़ी साहब उसे आसानी से गा देते थे और “उनकी असाधारण क्षमता, संगीतकारों को नए प्रयोग करने को प्रेरित करती थी।” संगीतकार जयदेव ने १९८१ में मुझ से कहा था कि “कई लोकप्रिय और सर्वकालिक गीत कभी बन नहीं पाते, अगर रफ़ी साहब ना होते” और “कई अद्वितीय फिल्में बेअसर हो जातीं अगर रफ़ी साहब ना होते।” इस सन्दर्भ में उन्होनें “प्यासा”, “कागज़ के फूल”, “बैजू बावरा”, “हकीकत”, “मेरे महबूब”, “हम दोनों” और “गाइड” जैसी फिल्मों के नाम लिये और कहा कि संगीत जगत में उनका ना कोई सानी था और ना आगे होगा क्यूंकि उनको भजन, गीत, गज़ल, कव्वाली, पाश्चात्य रॉक और विशुद्ध शास्त्रीय संगीत पर समान महारत हासिल थी। इस कथन की सच्चाई इससे ज़ाहिर होती है कि किशोर कुमार, मुकेश, तलत महमूद जहां रफी साहब के सब से बड़े प्रशंसक थे, वहीं मन्ना डे, रफ़ी साहब को विश्व का सर्वोत्तम गायक मानते थे।
मन्ना डे का मानना था कि “सब गायक-गायिकाओं में रफ़ी साहब अव्वल थे क्यूंकि जो कुछ वो गले से अभिव्यक्त करते थे, वो दूसरे सब गायक-गायिकाओं के लिये करना नामुमकिन होता था।” जो नाद की गहराई और आध्यात्मिकता समझते हैं, वो ही रफ़ी साहब कि आवाज़ की महानता और प्रभाव को समझते हैं और क्यूँ मंदिर­मस्जिद, धर्म-जाति के झगड़ों से परे, रफी साहब की आवाज़ सब से असरदार है? पात्र चाहे अमीर­गरीब, शहरी­ग्रामीण, बूढ़े­जवान हों या फ़िर मज़दूर, बाबू, सैनिक या किसान, हर परिस्थिति में और हर चरित्र पे, उनकी आवाज़ उपयुक्त बैठती थी क्यूंकि उनके स्वर से उत्पन्न भाव, पात्र को पूर्ण करता है। इसीलिये उनकी आवाज़ परमात्मा की पहचान है और इंसानियत का सर्वोत्तम प्रतीक भी।
गुलज़ार जहां रफ़ी साहब को संगीत का आठवां स्वर कहते थे, वहीं राज कपूर उन्हें “संगीत का बेताज बादशाह” मानते थे। नौशाद की नज़र में रफी साहब के गीत ही “हिन्दुस्तान की धड़कन” थे। हालांकि इस बिरले कलाकार ने अपनी कला और मानवीयता से दुनिया को प्रेम और एकता के सूत्र में पिरो दिया पर सरकारी तंत्र ने उन्हें भारत रत्न से सुशोभित नहीं किया। लेकिन इसके विपरीत, उनके करोड़ों प्रशंसक, उनकी याद में श्रद्धांजलि स्वरुप, विश्व के सैंकड़ों देशों में प्रति वर्ष, करीब बीस-पच्चीस हज़ार कार्यक्रम आयोजित करते हैं, उन्हें हृदय में संगीत सम्राट का सम्मान देते हैं। यही प्रकृति और इंसानियत का पुरस्कार है क्यूंकि महल हो या झौंपड़ा, हर जगह, हर पल, रफ़ी साहब के ही गीत गूंजते रहते हैं। धर्म, जाति, राष्ट्र और भाषा से परे, रफी साहब ने संगीत रचनाओं को जो संबल दिया, जो लोगों को आनंद और सुकून दिया, उसी कारण वो असंख्य लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। बेशक, रफ़ी साहब दुनिया के एक अनमोल रत्न थे!

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