देशभर में टैक्स में एकरूपता लाने और जटिलता दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने सात साल पहले ऐतिहासिक जीएसटी व्यवस्था लागू की थी। सरकार ने जीएसटी व्यवस्था को संघीय भावना से संचालित करने का उदाहरण भी बनाया है। इसी क्रम में छह राज्यों राजस्थान, कर्नाटक, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के मंत्रियों के समूह (जीओएम) को करों की दरों पर नए सिरे से विचार करने का जिम्मा दिया गया। इनकी सिफारिश पर अब जल्द ही जीएसटी परिषद में विचार किया जाएगा। यह ऐसा मौका है जब उन जरूरी चीजों की जीएसटी दरों को कम करने का प्रयास किया जा रहा है जिनका उपयोग रोजाना की जिंदगी में जरूरी हो गया है। दूसरी तरफ हमें लोक कल्याण के कामों के लिए राजस्व भी सुनिश्चित करना है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि उन चीजों पर कर बढ़ाया जाए जिनका उपयोग समाज और उपयोग करने वाले के भी हित में नहीं है। ‘स्वस्थ भारत’ का जो महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य केंद्र सरकार ने सामने रखा है, ‘तंबाकू-मुक्त भारत’ उसका एक प्रमुख स्तंभ है। इसके तहत लगातार उपाय करते हुए तंबाकू का उपयोग क्रमिक रूप से सीमित करते जाना है।
2017 के आंकड़ों के मुताबिक भारत की 28.6 प्रतिशत वयस्क आबादी तंबाकू का उपयोग कर रही है। इसकी वजह से सालाना 13 लाख मौतें हो रही हैं और देश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ रहा है। तंबाकू हमारी सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) पर एक प्रतिशत से ज्यादा का बोझ अकेले डाल रहा है। पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की सदस्य डॉ. शमिका रवि की हाल की रिपोर्ट ‘चेंजेज इन इंडियाज फूड कंजप्शन एंड पॉलिसी इंप्लीकेशंस’ बताती है कि तंबाकू जैसे आदत पैदा करने वाले पदार्थों पर प्रति परिवार खर्च पिछले एक दशक में बढ़ा है। यह सरकार के लिए चिंता का विषय है।
जीएसटी लागू होने के पहले जहां राज्य और केंद्र सरकारें बजट में तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाती रहती थीं, जीएसटी लागू होने के बाद एक तो तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ोतरी थम गई और दूसरी तरफ क्रमिक रूप से प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होती रही। इस तरह तंबाकू उत्पाद खरीदना लोगों के लिए ज्यादा आसान होता गया। कई अध्ययन बताते हैं कि दूसरे उपभोक्ता उत्पादों के मुकाबले तंबाकू उत्पादों की मूल्य बढ़ोतरी कम हुई है।