महाकुंभ लोक श्रद्धा और मानवता का अद्भुत संगम है, जिसका इतिहास बहुत पुराना है। माना जाता है कि यह हजारों वर्षों से आयोजित किया जा रहा है। महाभारत में भी महाकुंभ का उल्लेख मिलता है। यह भारतीय संस्कृति का ऐसा अनमोल रत्न है, जिसने सदियों से भारत की आत्मा को समृद्ध किया है। यह आयोजन सनातन धर्म की प्राचीन परंपराओं को सजीव बनाए रखने का महत्वपूर्ण माध्यम है। प्रयागराज को वैसे भी ‘त्रिवेणी संगम’ के कारण विशेष मान्यता प्राप्त है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें यहां पर गिरी थी और तभी से यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से प्रयागराज महाकुंभ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आत्मा की शुद्धि, पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति का अवसर प्रदान करता है। महाकुंभ के दौरान संगम में स्नान करने से न केवल शरीर शुद्ध होता है बल्कि मन और आत्मा भी पवित्र हो जाती है।
प्रयागराज महाकुंभ भारतीय संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता का उत्सव है। महाकुंभ हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है और विश्व को भारतीय जीवनशैली व दर्शन से परिचित कराता है। महाकुंभ का आयोजन भारतीय सभ्यता की स्थायी धरोहर है, जो हमें एकता, समरसता और सांस्कृतिक गौरव का संदेश देती है। यह न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक ऐसा महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करता है। यह विश्व को भारतीय धर्म और दर्शन के अद्वितीय पक्षों से परिचित कराता है। महाकुंभ प्रत्येक व्यक्ति को धर्म, आस्था और मानवता के मर्म को समझने का अवसर प्रदान करता है। यह आयोजन वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित करता है, जिससे भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक छवि को मजबूती मिलती है।
महाकुंभ एक ऐसा आयोजन है, जहां श्रद्धालु न केवल धार्मिक कर्मकांड में भाग लेते हैं बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव भी करते हैं। यहां का पवित्र माहौल, मंत्रोच्चारण और आरती की ध्वनि हर किसी को एक गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। महाकुंभ केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्सव भी है। महाकुंभ में आयोजित होने वाले लोक संगीत, नाट्य प्रदर्शन और पारंपरिक नृत्य न केवल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं बल्कि महाकुंभ के आकर्षण को भी कई गुना बढ़ा देते हैं। महाकुंभ विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों से आने वाले लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जो सामाजिक एकता और समरसता का एक अद्वितीय उदाहरण है। महाकुंभ के आयोजन में हाल के वर्षों में डिजिटल तकनीकों का उपयोग बढ़ा है। टिकट बुकिंग, मेले की लाइव स्ट्रीमिंग और भीड़ प्रबंधन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तथा डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जा रहा है, जिससे मेले की दक्षता और तीर्थयात्रियों की संतुष्टि में वृद्धि हुई है।
प्रयागराज महाकुंभ में देशभर के विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों का आगमन हो रहा है। ये संत भारतीय संस्कृति और धर्म के जीवंत प्रतीक हैं। नागा साधु, अवधूत, किन्नर अखाड़ा और अन्य साधु-संप्रदाय यहां अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों का प्रदर्शन करते हैं। नागा साधुओं का शाही स्नान महाकुंभ का मुख्य आकर्षण होता है। शाही स्नान महाकुंभ का सबसे पवित्र और आकर्षक अनुष्ठान होता है, जो विशेष दिनों में होता है, जिन्हें धार्मिक गणनाओं के आधार पर तय किया जाता है। इन दिनों में साधु-संत, अखाड़े और आम श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं। शाही स्नान का दृश्य अद्वितीय होता है, जिसमें आध्यात्मिकता और उत्साह का समावेश होता है।
2025 के महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी को पूर्णिमा से हुई है और इसका समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा। महाकुंभ में कुल छह शाही स्नान होंगे। पहला शाही स्नान 13 जनवरी को, दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर, तीसरा शाही स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर, चौथा शाही स्नान 2 फरवरी को बसंत पंचमी पर, पांचवां शाही स्नान 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा पर और आखिरी शाही स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर होगा।
नागा साधुओं, सन्यासियों और विभिन्न अखाड़ों से जुड़े साधु एक साथ स्नान के लिए महाकुंभ में आते हैं। नागा साधु, जो आमतौर पर हिमालय में रहते हैं, महाकुंभ के दौरान पहली बार जनता के सामने आते हैं। उनका विशेष आकर्षण विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए होता है।
नागा साधुओं, सन्यासियों और विभिन्न अखाड़ों से जुड़े साधु एक साथ स्नान के लिए महाकुंभ में आते हैं। नागा साधु, जो आमतौर पर हिमालय में रहते हैं, महाकुंभ के दौरान पहली बार जनता के सामने आते हैं। उनका विशेष आकर्षण विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए होता है।
महाकुंभ मेले की ‘पेशवाई’ (साधुओं का भव्य जुलूस) अद्वितीय होती है। इस जुलूस में साधु-संत हाथी, घोड़ों और रथों पर सवार होकर निकलते हैं। पेशवाई के दौरान अद्भुत नजारा देखने को मिलता है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव होता है। कई ऐतिहासिक और महान हस्तियां भी महाकुंभ में भाग ले चुकी हैं। 1895 के प्रयागराज कुंभ मेले में स्वामी विवेकानंद ने भी भाग लिया था और लोगों को भारतीय संस्कृति और वेदांत की शिक्षा दी थी। योग और तंत्र साधना में रुचि रखने वालों के लिए तो महाकुंभ विशेष स्थान रखता है। कहा जाता है कि महाकुंभ के दौरान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए अनुकूल होती है। यही कारण है कि इस समय साधक ध्यान और साधना के लिए महाकुंभ का रुख करते हैं। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में महाकुंभ को ‘दुनिया का सबसे बड़ा मानव समूह’ होने का गौरव प्राप्त है। प्रयागराज में 2013 के महाकुंभ मेले ने ‘सबसे बड़े मानव-संगम’ का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। उस मेले में 12 करोड़ से अधिक लोग शामिल हुए थे, जिससे वह आयोजन इतिहास का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम बना था।
महाकुंभ से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। ये कथाएं भारतीय संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि महाकुंभ की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। उन्होंने इन पवित्र स्थानों को पुनर्जीवित किया और यहां महाकुंभ आयोजित करने की परंपरा शुरू की। महाकुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से भी माना जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार इंद्र और अन्य देवता महर्षि दुर्वासा के श्राप से कमजोर पड़ गए थे, जिसका लाभ उठाते हुए राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था और उस युद्ध में देवताओं की हार हुई थी। तब सभी देवता एकत्रित होकर सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। भगवान विष्णु ने राक्षसों के साथ मिलकर समुद्र मंथन कर वहां से अमृत निकालने की सलाह दी। जब समुद्र मंथन से अमृत का कलश निकला तो भगवान इंद्र का पुत्र जयंत कौए का रूप धारण कर उसे लेकर आकाश में उड़ गया। यह सब देखकर राक्षस भी जयंत के पीछे अमृत कलश लेने के लिए भागे और बहुत प्रयास करने के बाद दैत्यों के हाथ में अमृत कलश आ गया। उसके बाद अमृत कलश पर अपना अधिकार जमाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला। उस दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में गिरी, इसलिए इन्हीं चार स्थानों पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
महाकुंभ का भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ अस्थायी रोजगार के अवसर भी पैदा करता है। महाकुंभ में भाग लेने के लिए न केवल भारत बल्कि विदेशों से भी लाखों पर्यटक आते हैं और लाखों श्रद्धालुओं के आगमन से पर्यटन, परिवहन और व्यापार को बढ़ावा मिलता है। यह महा-आयोजन क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है। स्थानीय उद्योग, जैसे हस्तशिल्प, कपड़ा और खाद्य व्यवसाय इस दौरान विशेष रूप से फलते-फूलते हैं। महाकुंभ के दौरान होटल, धर्मशालाओं और अस्थायी आवासों की मांग में अप्रत्याशित वृद्धि होती है। परिवहन क्षेत्र, जैसे रेलवे, बस सेवा और हवाई यात्रा को भी इसका सीधा लाभ मिलता है। इसके अलावा स्थानीय विक्रेता और छोटे व्यापारियों के लिए भी यह आय का बड़ा स्रोत बनता है। महाकुंभ के आयोजन में हजारों अस्थायी नौकरियां उत्पन्न होती हैं, स्वच्छता कर्मी, सुरक्षा गार्ड, गाइड तथा अन्य सेवाओं में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। चूंकि सरकार को महाकुंभ के आयोजन के लिए बुनियादी ढ़ांचे में सुधार करना होता है, सड़कों, पुल, जल आपूर्ति, सीवरेज जैसी सुविधाओं का विकास होता है, जिससे इन क्षेत्रों के लोगों को दीर्घकालिक लाभ पहुंचता है। 2019 में आयोजित कुंभ मेले से कुल 1.2 लाख करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था जबकि 2025 के महाकुंभ से 2 लाख करोड़ रुपये तक की आर्थिक वृद्धि होने का अनुमान है। ऐसे में महाकुंभ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी वरदान है। (लेखक के अपने विचार हैं)