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दुविधा की स्थिति में भारत ढूंढ रहा है कूटनीतिक समाधान

वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा वांछित भगोड़ों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए इसमें संशोधन किया गया। संधि में जिन व्यक्तियों के प्रत्यर्पण का प्रावधान किया गया है वे ऐसे अपराधों के दोषी हो जिनके लिए कम से कम एक वर्ष की सजा हो सकती है। वर्ष 2016 के संशोधन में इस संधि में अपराधी के खिलाफ ठोस सबूत प्रस्तुत करने की आवश्यकता को समाप्त कर प्रत्यर्पण की चुनौतियों को काफी कम दिया गया है।

जयपुरDec 26, 2024 / 03:47 pm

Hemant Pandey

पूरे मामले में एक एंगल पाकिस्तान का भी है। तख्तापलट के बाद जिस तरह से हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हिंसा और हिन्दू मंदिरों में तोड़-फोड़ की घटनाएं हो रही है, उससे भारत-बांग्लादेश संबंधों में तल्खी उत्पन्न हो गई है।

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने निर्वासित प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर भारत को दुविधा में डाल दिया है। अंतरिम सरकार के मंत्रियों ने जिस तरह से भारत और बांग्लादेश के बीच कैदियों के प्रत्यर्पण की संधि का हवाला देते हुए हसीना को वापस देश भेजने का अनुरोध किया है उससे भारत सरकार की दुविधा बढ़ना लाजमी है। दुविधा के दो बड़े कारण है। प्रथम, हसीना भारत की भरोेसेमंद सहयोगी रही है। यदि भारत यूनुस सरकार की मांग को स्वीकार कर शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए तैयार हो जाता है, तो हसीना की पार्टी अवामी लीग के कार्यकर्त्ताओं और समर्थकों में भारत के प्रति जो विश्वास का भाव है वह डगमगा उठेगा। दूसरा भारत के इस कदम से भारत-बांग्लादेश संबंधों के संपूर्ण इतिहास पर प्रश्न उठ खड़े होंगे। इसके विपरित यदि भारत प्रत्यर्पण की मांग को अस्वीकार करता है तो उसके सामने कई मोर्चे खुल जाएंगे। अंतरिम सरकार के अनुरोध को खारिज करने का सीधा-सीधा असर भारत-बांग्लादेश संबंधों पर पड़ेगा। भारत के इंकार से बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के साथ तनाव बढ़ सकता है। हाल-फिलहाल बांग्लादेश जिस दौर से गुजर रहा है, जाहिर है भारत उसमें संबंधों को और अधिक खराब नहीं करना चाहेगा। दुविधा का एक बड़ा कारण यह भी है कि यदि भारत अंतरिम सरकार के अनुरोध को ठुकराता है तो अंतरराष्ट्रीय संधि और समझौतों के प्रति उसकी आस्था संदिग्ध हो जाएगी। जाकिर नायक, ललीत मोदी और नीरव मोदी जैसे भगोड़ों को वापस देश में लाने की उसकी मुहिम भी कमजोर पड़ जाएगी। सवाल है दुविधा की इस स्थिति में भारत क्या करे। फिलहाल भारत ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है।

इस साल अगस्त में तख्ता पलट के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। सुरक्षा की दृष्टि से उस वक्त वे देश छोड़कर भारत आ गई थी। उसके बाद से वे भारत में है। अब बांगलादेश के विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने भारत सरकार को औपचारिक राजनयिक संदेश भेजकर कहा है कि बांग्लादेश सरकार चाहती है कि शेख हसीना न्यायिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए बांग्लादेश वापस आए। हसीना पर बांग्लादेश में 200 से ज्यादा मामले दर्ज है जिनमें भ्रष्टाचार, मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार जैसे गंभीर मामले भी शामिल हैं।

दरअसल, भारत इस मामले में एक कूटनीतिक समाधान की तलाश कर रहा हैं। वह जानता है कि प्रत्यर्पण पर उसका का कोई भी निर्णय भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर डाल सकता है। ऐसे में वह उन तमाम विकल्पों पर विचार कर आगे बढ़ना चाहेगा जो मानवीय, कानूनी और कूटनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाए रखने में मददगार हो। हालांकि, भारत इस बात को भी जानता है कि बांग्लादेश की जिस सरकार ने प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है उसकी कोई संवैधानिक हैसियत नहीं है। हसीना भी भारत में राजनीतिक शरणार्थी की हैसियत से पनाह लिए हुए है। बांग्लादेश जिस प्रत्यर्पण संधि का हवाला देकर हसीना की वापसी की मांग कर रहा है उसमें राजनीतिक मुद्दों के मामले मे प्रत्यर्पण को बाहर रखा गया है।

शेख हसीना के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश ने वर्ष 2013 में अपनी साझा सीमाओं पर उग्रवाद और आतंकवाद से निपटने के लिए रणनीतिक उपाय के रूप में प्रत्यर्पण संधि को लागू किया था। वर्ष 2016 में दोनों देशों द्वारा वांछित भगोड़ों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए इसमें संशोधन किया गया। संधि में जिन व्यक्तियों के प्रत्यर्पण का प्रावधान किया गया है वे ऐसे अपराधों के दोषी हो जिनके लिए कम से कम एक वर्ष की सजा हो सकती है। वर्ष 2016 के संशोधन में इस संधि में अपराधी के खिलाफ ठोस सबूत प्रस्तुत करने की आवश्यकता को समाप्त कर प्रत्यर्पण की चुनौतियों को काफी कम दिया गया है। लेकिन संधि के अनुच्छेद 6 के अनुसार यदि अपराध ’राजनीतिक प्रकृति’ का है, तो प्रत्यर्पण से इन्कार किया जा सकता है। इसके अलावा संधि के अनुच्छेद 8 मे प्रत्यर्पण से इंकार के आधारों की जो सूचि दी गई है, उसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को भारत उस स्थिति में भी प्रत्यर्पित करने से इंकार कर सकता है, जब उसे लगे कि प्रत्यर्पण किए जाने वाले के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायसंगत नहीं है और उसमें सियासी साजिश नजर आ रही हो। असाधारण परिस्थितियों में भी भारत किसी व्यक्ति को प्रत्यर्पित करने से इंकार कर सकता है। खासकर जब उसकी जान को खतरा हो या निष्पक्ष सुनवाई पर संदेह हो। बांग्लादेश की मौजूदा परिस्थितयां और अस्थिर माहौल को देखते हुए भारत इस परन्तुक पर आगे बढ़ सकता है।
पूरे मामले में एक एंगल पाकिस्तान का भी है। तख्तापलट के बाद जिस तरह से हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हिंसा और हिन्दू मंदिरों में तोड़-फोड़ की घटनाएं हो रही है, उससे भारत-बांग्लादेश संबंधों में तल्खी उत्पन्न हो गई है। भारत समर्थक सरकार के पतन के बाद अब पाकिस्तान इस स्पेस को भरना चाहता है। अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस पाकिस्तान की खुलकर मदद कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि उनकी सरकार अपने देश के कारोबारियों को जबरन पाकिस्तान के साथ करोबार करने और वहां से सामान इम्पोट करने का दबाव बनाया जा रहा है। शिपिंग मंत्रालय के भी कुछ अधिकारी भारत-बांग्लादेश शिपिंग समझौते की समीक्षा करने का सूझाव दे रहे है। इस समझौते के तहत ही भारत के जहाजों को बांग्लादेश स्थित चटगांव और मोंगला बंदरगाह तक जाने की इजाजत है।

पिछले सप्ताह मिस्र की राजधानी काहिरा में हुई मुस्लिम देशों की समिट डी-8 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और मोहम्मद यूनुस की मुलाकात हुई। समिट ने शहबाज ने बांग्लादेश को भाई बताया तो वहीं यूनुस ने 1971 के खूनी इतिहास को भुलाकर पाकिस्तान के साथ लंबित मुद्दों को हमेशा के लिए सुलझाने की बात कही हैं। अगस्त में तख्तापलट के बाद से दोनों नेताओं के बीच यह दूसरी मुलाकात है। ऐसे में बाग्लादेश की मांग को तल्ख रवैये के रूप में ही देखा जाना चाहिए । भारत पूरे मामले में फूंक-फूंक कर कदम रखने की नीति पर आगे बढ़ रहा है। प्रत्यर्पण की टाइमिंग को देखते हुए भारत की यह नीति सही ही हैं। हालांकि, प्रधामंत्री शेख हसीना का प्रत्यर्पण संधि के प्रावधानों के अनुरूप तो सकता है लेकिन बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति और राजनीतिक प्रतिशोध के इस माहौल में उनकी वतन वापसी मानवीय दायित्वों के अनुरूप नहीं है। यही कारण है कि भारत इस मामले में एक कूटनीतिक समाधान की तलाश कर रहा हैं। यह समाधान किसी तीसरे देश में शरण देने की संभावनाओं के रूप में भी हो सकता है।

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