बीजेपी के लिए आसान नहीं होगी इलाहाबाद सीट
सपा ने जब समझौते के तहत इलाहाबाद सीट कांगेस के खाते में दी तो, लोगों को लगा कि जब इस सीट पर सपा चुनाव नहीं लड़ेगी तो यहां से बीजेपी जीत दर्ज कर लेगी, लेकिन उज्जवल रमण सिंह का कांग्रेस ज्वाइन करने और उनके चुनाव मैदान में आने से इलाहाबाद की सियासत ने नया मोड़ ले लिया है। माना जा रहा था कि कांग्रेस प्रत्याशी के इंतजार में ही बीजेपी ने इलाहाबाद के लिए अपना पत्ता नहीं खोला था। राजनितिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस से उज्जवल रमण को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद बीजेपी को अपना कैंडिडेट निश्चित करने से पहले अब काफी सोचना होगा।
सपा ने जब समझौते के तहत इलाहाबाद सीट कांगेस के खाते में दी तो, लोगों को लगा कि जब इस सीट पर सपा चुनाव नहीं लड़ेगी तो यहां से बीजेपी जीत दर्ज कर लेगी, लेकिन उज्जवल रमण सिंह का कांग्रेस ज्वाइन करने और उनके चुनाव मैदान में आने से इलाहाबाद की सियासत ने नया मोड़ ले लिया है। माना जा रहा था कि कांग्रेस प्रत्याशी के इंतजार में ही बीजेपी ने इलाहाबाद के लिए अपना पत्ता नहीं खोला था। राजनितिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस से उज्जवल रमण को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद बीजेपी को अपना कैंडिडेट निश्चित करने से पहले अब काफी सोचना होगा।
इलाहाबाद में है रेवती रमण के सियासत की बड़ी जमीन
कुंवर रेवती रमण सिंह प्रयागराज के करछना से आठ बार विधायक और इलाहाबाद सीट से दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। रेवती रमण सिंह ने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को यहां से चुनाव हराया था। उज्जवल रमण ङ्क्षसंह भी दो बार करछना से विधायक रह चुके हैं। माना जाता है कि इलाहाबाद में रेवती रमण के सियासत की जमीन बड़ी है। ऐसे में भाजपा को अब उज्जवल रमण को शिकस्त देने के लिए बहुत सोच समझ कर प्रत्याशी मैदान में उतारना पड़ेगा।
कुंवर रेवती रमण सिंह प्रयागराज के करछना से आठ बार विधायक और इलाहाबाद सीट से दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। रेवती रमण सिंह ने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को यहां से चुनाव हराया था। उज्जवल रमण ङ्क्षसंह भी दो बार करछना से विधायक रह चुके हैं। माना जाता है कि इलाहाबाद में रेवती रमण के सियासत की जमीन बड़ी है। ऐसे में भाजपा को अब उज्जवल रमण को शिकस्त देने के लिए बहुत सोच समझ कर प्रत्याशी मैदान में उतारना पड़ेगा।