उत्तरप्रदेश के कई शहरों व दूर-दराज से आने वाले लाखों जरूरतमंदों व थड़ी-दुकान लगाकर रोजगार चलाने वालों के लिए अच्छा कारोबार भी कुंभ मेलों के दौरान ही होता है। चाहे वह रिक्शा चालक हो या थड़ी पर चाय-नमकीन की बिक्री हो। करीब दो माह तक चलने वाला कुंभ प्रयागराज समेत आस-पास के शहरों की अर्थव्यस्था की धड़कन कहा जाएं तो भी अतिश्योक्ति नहीं। प्रयागराज में एक बात बेहद खास है। यहां बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की मजबूरी का फायदा उठाकर खाने-पीने की होटल, चाय की थड़ी या रिक्शे के किराए के नाम पर कोई लालच या मनमानी वसूली जैसी हरकतें नहीं है।
कुंभ मेले का शानदार प्रबंध-
करीब 25 किलोमीटर की परिधि में फैले प्रयागराज दिव्य कुंभ-2019 का प्रबंधन व व्यवस्था देखकर हर कोई हैरान रह सकता है। क्योंकि मेले के दौरान गंगा नदी पर दो दर्जन से अधिक पीपा पूल निर्माण, सभी सेक्टरों में रेती पर लोहे के चद्दर लगाकर सड़क निर्माण, साधु-संतों के टेंट या शिविर से सड़क तक लोहे के चद्दर व्यवस्था, पूरे मेला क्षेत्र में जगह-जगह रोशनी, साइनेज बोर्ड व डिस्पले, हर टैंट व शिविर में पानी-बिजली, शौचालय व सीवरेज के कनेक्शन, सांस्कृतिक मंच कार्यक्रम, आश्रय स्थल आदि की शानदार व्यवस्था है। यह सब देख ऐसा महसूस होता है कि गंगा मैया के आंचल यानि भराव क्षेत्र में बड़े स्तर के प्रबंध ईश्वर व गंगा मैया की कृपा से ही हुए हैं। हालांकि कुछ साधु-संत व्यवस्थाओं को लेकर नाखुश है। नाखुशी के कुछ और भी कारण हो सकते हैं, लेकिन समग्र रूप से मेले की व्यवस्थाओं का आंकलन तारीफे काबिल है।
संगम तट पर ‘संगम ही संगम’-
आस्था के कुंभ में ऐसा पहली बार हो रहा है कि यहां अब केवल आस्था का अमृत कुंभ ही नहीं बल्कि धर्म-पर्यटन, कला-संस्कृति, सामाजिक-सरोकार, सत्कार-सेवा-संस्कार, संत-समागम, तप-तपस्या, दान-पुण्य, अतुल्य भारत, निर्मल गंगा-स्वच्छ शहर का भी संगम हैं।
सुरक्षा का पूरा ख्याल-
अस्सी के दशक तक की कुछ हिन्दी फिल्मों में हमनें यह कई बार देखा की मां के साथ कुंभ मेला देखने आए दो भाईयों में से एक खो जाता है। जो फिल्म के क्लाइमेक्स सीन के रूप में 20-25 साल बाद मिलते हैं। फिल्मों की ऐसी कहानी भी कुंभ में लोगों के खो जाने की रियल घटनाओं से ही बनती थी। दरअसल में कुछ दशक पहले तक मेलों में लोग खो जाते थे, उन्हें खोजना मुश्किल हो जाता था। लेकिन इस बार के कुंभ में ऐसी स्थितियां नहीं हैं। कई लोग अपनों से बिछड़ते हैं, लेकिन मेले का सूचना तंत्र इतना मजबूत है कि भूले-भटकों को उनके अपनों से मिलवा दिया जा रहा है। पूरे मेले में एक ही नियंत्रण कक्ष से शानदार साउंड सिस्टम लगा रखा है। जिससे हर पल हर तरह की सूचना दी जा रही है। पुलिस व सेना के जवानों की जगह-जगह तैनाती रहने से न किसी की जेब कट रही है और न ही किसी तरह की बदमाशी हो रही है। घाटों पर स्नान की भी ऐसी व्यवस्था है कि किसी भी तरह की दुर्घटना से निपटने के सारे इंतजाम है। अभी तक किसी के डूबने जैसी कोई घटना नहीं हुई। घाटों पर एनडीएआरएफ व सुरक्षा बलों की तैनाती है।
यहां जेब पर नहीं पड़ता भार-
अन्य शहरों में जहां एक कप चाय 10 रुपए से कम में नहीं मिलती, लेकिन तीर्थराज प्रयागराज में किसी भी होटल या चाय की थड़ी पर चले जाएं, यहां पर 5 रुपए में चाय मिल जाती है। होटल-ढाबों में अच्छा खाना भी अन्य शहरों की तुलना में कम दर पर है। रिक्शा लेकर कहीं पर जाना है तो भी अधिक चार्ज नहीं। सिटी परिवहन के रूप में टैम्पो व सिटीबस में न्यूनतम किराया 5 रुपए है। नदी के दूसरे किनारे जाने पर नाव का किराया भी हर आम के लिए अनुकूल है। जबकि तीर्थ स्थल पुष्कर, अजमेर, नाथद्वारा या अन्य शहर जयपुर-जोधपुर जैसे शहरों में तीर्थाटन बेहद खर्चीला होता है। यहां 10 रुपए से कम कोई किराया नहीं है और बाहर के लोगों से ज्यादा भी वसूल लिए जाते हैं।