स्वयं चन्दमा ने की थी स्थापना
सोमेश्वर नाथ मंदिर के प्रमुख महंत राजेंद्र गिरि ने बताया कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्रमा द्वारा की गई थी। और भगवान शंकर की आराधना कर चंद्रमा को अपने क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। प्रमुख पुजारी के अनुसार जब राजा दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को क्रोधित होकर श्राप दे दिया। जिससे चंद्रमा कुरूप होकर छय रोग से ग्रसित हो गए, श्राप मुक्त होने के लिए उन्होंने भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर उनकी आराधना की उसी प्राचीन मंदिर को सोमेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है ।
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है
प्रमुख पुजारी ने बताया की यहाँ दूर दराज से पीड़ित परेशान लोग आते है।यहाँ दर्शन पूजन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।उन्होंने बातया की इस मंदिर की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके चंद्र कुंड में यदि एक माह तक स्नान कर भगवान शंकर की पूजा आराधना की जाए तो क्षय रोग से मुक्ति भी मिल सकती है ।और पुजारी ने बताया कि मंदिर के ऊपर छत्र पर जो त्रिशूल लगा है, वह चंद्रमा के पृथ्वी के चक्कर लगाने के अनुसार ही अपना कोड बदलता है। सोमेश्वर नाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।जिसके बारे में यह मान्यता है यहां पर पूजा आराधना करने के बाद मनुष्य को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं घेरता है।
सोमेश्वर महादेव के दर्शन से कटते है संकट
हजारो साल पहले सोमेश्वर की स्थापना यमुना तट पर जंगल और घने वनों के बीच हुई थी । सोमेश्वर महादेव की आराधना के लिए सावन मॉस में पुरे भक्तो की भीड़ लगी रहती है । विशेष तौर पर माघ मेले ए शिवरात्रि पर्व पर मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं। महंत के अनुसार सोम तीर्थ में शिव मंत्र का जाप करने से मनोकामना पूरी होती है।उन्होंने बताया की सोमतीर्थ के पास वरुण तीर्थ राम तीर्थ सीता कुण्ड और हनुमान तीर्थ का पुराण में संदर्भ है ।लेकिन यह रहस्य है की यह कहा स्थापित है।प्रयाग महात्म्य में कहा गया है कि सोम तीर्थ में शिव की आराधना करने से श्रद्धालु के संकट कट जाते हैं।