प्रयागराज

एक ऐसा शक्तिपीठ, जहां झूले में चुनरी बांधने से पूरी होती हैं मन्नतें, आप जानते हैं?

उत्तर प्रदेश के एक ऐसा शक्तिपीठ स्‍थान है। जहां माता की कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं है। मंदिर के मुख्य भाग में एक चबूतरे पर झूला है। इसे चुनरी से ढका गया है। श्रद्घालु इसे ही माता का स्वरूप मानते हैं।

प्रयागराजMar 22, 2023 / 07:27 pm

Vishnu Bajpai

मां के दरबार में पूजा-अर्चना करते श्रद्घालु।

22 मार्च से चैत्र नवरात्र शुरू हो चुके हैं। इस दौरान पूरे देश में मां की विभिन्न रूपों में पूजा-अर्चना की जा रही है। श्रद्घालु नौ दिनों तक मां के नौ प्रमुख स्वरूपों के दर्शनों के लिए मंदिरों में जाते हैं। हर जगह की अपनी अलग मान्यता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में माता का एक ऐसा भी शक्तिपीठ स्‍थान है। जहां कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं है। यहां एक झूले को माता का स्वरूप माना जाता है। श्रद्घालु इसी झूले पर चुनरी बांधकर अपनी मन्नतें मांगते हैं। आइए हम आपको इस स्‍थान के बारे में विस्तार से बताते हैं।
आदिशक्ति माता की उपासना का पर्व है नवरात्रि
देवी मां की उपासना के पर्व चैत्र नवरात्र में माता के दरबारों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। ऐसे में हम लगातार आपको उत्तर प्रदेश के शक्तिपीठों की जानकारी दे रहे हैं। आज हम जिस शक्तिपीठ की पौराणिक कहानी लाए हैं, वह प्रयागराज में स्थित है। यहां देवी के तीन स्‍थान हैं। पहला आलोपी बाग में स्थित शक्तिपीठ मां आलोपशंकरी देवी का मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है। इसके अलावा ‘अक्षयवट’ और ‘मीरापुर’ में मां के मंदिर हैं। इन तीनों को ही शक्तिपीठ माना जाता है।
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मत्‍स्य पुराण में मिलती है इस शक्तिपीठ की कथा
मत्‍स्य पुराण के अनुसार के अनुसार इस स्थान पर माता सती के दाएं हाथ का पंजा गिरा था। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां माता की निराकार पूजा होती है। यानी यहां देवी मां की कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं है, बल्कि एक कुंड है। जहां माता का हाथ गिरकर अदृश्य हो गया था। इसी के चलते इस मंदिर का नाम भी अलोप शंकरी पड़ा। मंदिर के मुख्य भाग में एक चबूतरा है। चबूतरे के बीचोंबीच एक कुंड है और कुंड के ऊपर एक झूला, जिसको चुनरी से ढका गया है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां देवी का वास जल में है और झूला उनका स्वरूप है।
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नारियल पानी का चढ़ता है प्रसाद
मंदिर में मौजूद कुंड में नारियल का पानी चढ़ाया जाता है और यही भक्तों को प्रसाद स्वरूप दिया जाता है, क्योंकि इस मंदिर में माता की कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं है। इसलिए नवरात्रि के दौरान यहां श्रृंगार तो नहीं होता, लेकिन पूरे विधि विधान से पाठ जरूर होते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में चुनरी या धागा बांधने से श्रद्घालुओं की मन्नतें पूरी हो जाती हैं। साथ ही यहां आए भक्तगण पूजा-अर्चना करने के बाद मंदिर की परिक्रमा भी करते हैं।
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यहां से जुड़ी हैं तमाम पौराणिक मान्यताएं
श्रीमद देवी भागवत के अध्याय सात में इसका उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार, जब देव ऋषि नारद ने माता सती को यह बताया कि उनके पिता प्रजापति दक्ष एक बड़ा यज्ञ करवा रहे हैं, तो माता सती ने भगवान शिव से वहां जाने की इच्छा जताई। लेकिन भगवान शिव ने यह कहकर मना कर दिया गया कि हमें तो बुलाया ही नहीं गया। इसके बाद भी माता सती अपने पिता के घर चली गईं।
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यज्ञ कुंड में कूदकर सती ने दी थी अपनी जान
वहां वह अपने पति का अपमान सह नहीं सकी। इससे उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी प्राणों की आहुति दे दी थी। इस बात का भगवान शिव को पता चला तो वह माता सती के शरीर को गोद में लेकर संपूर्ण भूमंडल में भ्रमण करने लगे। इस दौरान माता के 51 अंग देश-विदेश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर गिरे थे। इनमें से एक स्थान प्रयागराज का आलोपी बाग भी है। जहां माता के दाएं हाथ का पंजा गिरा था। यह 14वें नंबर का शक्तिपीठ है।

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