हामिद अंसारी बताते हैं कि वह कई सालों से पत्थरचट्टी रामलीला कमेटी से जुड़े हैं। उनकी कोशिश कलाकारों को ऐसे संवारने की होती है कि दर्शक उसके किरदार में डूब जाए। बकौल हामिद उन्हें इन पात्रों को तैयार करने में काफी खुशी होती है। इस काम का वह सालभर इंतजार करते हैं। हामिद अंसारी ने कहा कि हर दिन लगभग सौ कलाकारों को वह देवत्व स्वरूप प्रदान करते हैं। जब जिस किरदार को सजा रहे होते हैं। तो मन में छवि स्वयं बनकर आ जाती है। उन्ही स्वरूपों की तरह उन्हें आकर्षक बनाते हैं। हामिद कहते है हर दिन ईश्वर के दर्शन करता हूं। जो आम लोगों के लिए संभव नहीं है।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी उसी आधुनिकता और भव्यता के साथ प्रयागराज में रामलीला मंचन पत्थरचट्टी रामलीला कमेटी द्वारा किया जा रहा है। जिसको देखने के लिए यहां भीड़ उमड़ रही है। पत्थरचट्टी रामलीला दर्शकों को लुभाने के आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करती है। यहां दो मंजिला रंगमंच है। लाइट साउंड एवं आधुनिक यंत्र इसकी शोभा को चार चांद लगाते हैं। इस भव्य और आकर्षक रामलीला के आयोजन में हर वर्ष लगभग ढाई करोड़ रुपए का खर्च होता है ।जिसमें फिल्म इंडस्ट्री से कॉस्टयूम हाइटेक लाइट एंड म्यूजिक सिस्टम और देश के नामचीन कलाकारों और थिएटर के कलाकारों को यह मंचन के लिए बुलाया जाता है।
मणिपुरी कलाकार प्रस्तुत करते है संग्राम
रामलीला को आकर्षक बनाने के लिए मणिपुरी मार्शल आर्ट की ने परंपरागत कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है। वही कलाकार राम रावण का महासंग्राम प्रस्तुत करते हैं। जिसके लिए महीनों से उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। राम रावण के महासंग्राम को दशहरे के दिन प्रस्तुत किया जाता है। वैसे यहाँ हर किरदार को निभाने वाले का बाकायदा ओडिशन लिया जाता है। चयन के बाद ही यहां पात्र तय किये जाते है।
जानकारों की माने तो इतिहास के पन्नों में धर्म नगरी में 200 वर्षों से अधिक पुराने विवरण यहां रामलीला रावण दहन का मिलता है। 1924 के बाद प्रयागराज में दशहरे का राम दल जुलूस की शक्ल में निकलने लगा। जो उसके बाद से अब तक अनवरत जारी है। 60 बरस से पत्थरचट्टी रामलीला से जुड़े हरी मोहन मालवीय बताते हैं कि शुरुआती दिनों में मुख्य रूप से दसमी के दिन रामदल चौक में निकलना शुरू हुआ। उसके बाद फिर नवमी को शहर के मुट्ठीगंज बहादुरगंज क्षेत्र में रामदल को निकालने की शुरुआत हुई। शहर का कटरा इलाका ब्रितानी हुकूमत के अधीन था। लेकिन भारतीय ब्रिटिश सैनिक हिंदू और मुस्लिम मिलकर अष्टमी को रामदल निकालने की शुरुआत की जो अब तक चलता आ रहा है। वही दारागंज में सप्तमी को तीर्थ पुरोहितों ने काली स्वांग के रूप में आयोजन शुरू किया।
पहले यह रामलीला सिविल लाइंस के कमौरी महादेव मंदिर के पास होती थी। वहां रेलवे लाइन बिछने लगी तब रामलीला रामबाग में विस्थापित की गई। इसका नाम पत्थरचट्टी इसलिए पड़ा क्योंकि जिस जगह रामलीला होती है उस जगह खाली स्थान पर पत्थरचट्टा घास उगी थी। तभी से इसका नाम पत्थरचट्टी पड़ गया।