प्रसून पांडेय इलाहाबाद. इसे वक्त का तकाजा कहें या जम्हूरियत की ताकत देश की सबसे पुरानी पार्टी और सबसे ताकतवर सियासी परिवार का वारिस आज पुरखों की गलियों में घूमेगा। उनका मकसद शहर देखना या पर्यटन नहीं बल्कि उस पार्टी में जान फूंकना है, जिसने उसके पिता के नाना उसकी दादी और पिता को प्रधानमंत्री बनाया। जी हां हम बात कर रहे हैं देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले नेहरू गांधी परिवार के वारिस राहुल गांधी की। देवरिया से शुरू हुई 27 साल यूपी बेहाल सीरीज की किसान यात्रा को लेकर राहुल बुधवार देर रात संगम नगरी पहुंचे। बुजुर्ग कार्यकर्ताओं और युवा समर्थकों की भारी भीड़ के बीच राहुल का इलाहाबाद की सीमा पर भव्य स्वागत किया गया। हंडिया से लेकर स्वराज भवन तक जगह जगह राहुल का दीदार करने वाले देखे गए। ये समय का फेर ही है कि जिस शहर के लिए गांधी परिवार का नाम पहचान हुआ करता था वहां परिवार के वारिस को गलियों में घूमकर जनता से समर्थन मांगना पड़ता है। आने को राहुल गांधी 2007 और 2012 के चुनाव में भी इलाहाबाद में रोड शो करने आए थे लेकिन तब पार्टी की स्थिति अलग थी और कार्यक्रम भी संक्षिप्त था। शहर की सियासत पर नजर रखने वालों का कहना है कि पहली बार कोई गांधी इतना सघन रोड शो शहर में करने जा रहा है। स्वराज भवन से करीब दो सौ मीटर दूर से राहुल के काफिले का इंतजार कर रहे कल्याणपुर के बुजुर्ग कांग्रेसी राजनारायण कहते हैं इंदिरा की डेहरी पर उनका नाती आया है। हम तो पंडित नेहरू के समय से कांग्रेसी हैं वोट दिया तो कांगे्रस को नहीं तो नहीं दिया। अगर राहुल ऐसे ही मेहनत करते रहे तो पार्टी का दोहरा वनवास खत्म हो जाएगा। संकरी सड़कों से सिविल लाइंस तक सुबह के नाश्ते के बाद राहुल इलाहाबाद में निकलेंगे तो शहर के लगभग हर उस रास्ते से गुजरेंगे जहां से वो पूरे शहर को टच कर लें। इस दौरान वो लंबे समय से कुलपति और लोकसेवा आयोग के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे युवाओं से मिलेंगे तो कटरा की तंग सड़क पर व्यापरियों से रूबरू होंगे। हिंदू हॉस्टल के सामने महामना को नमन करने के बाद उनका काफिला सिविल लाइंस के उन रास्तों से भी गुजरेगा जहां काफी हाउस और पैलेस थियेटर जैसा इतिहास है और नएण्नए मॉल की आधुनिकता। कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि भावनाओं के सहारे इलाहाबाद कंाग्रेस के पुनर्जीवन की धरती बनेगी। इविवि के अध्यक्ष रहे कांग्र्रेस नेता संजय तिवारी कहते हैं कि राहुल गांधी पहले भी इलाहाबाद आए हैं लेकिन इस बार जो समर्थन सहयोग और साथ मिल रहा है पहले कभी नहीं मिला। खाट पर चर्चा हो किसान यात्रा इसको इतना सपोर्ट मिल रहा है कि विरोधियों की हवा खिसक गई है। आप देखिएगा इलाहाबाद से कांग्रेस का नया दौर शुरू होगा। इस शहर के लिए गांधी सिर्फ नेता नहीं वरिष्ठ पत्रकार और लंबे समय से बड़े सियासी परिवर्तनों पर बेबाक राय देने वाले अभिलाष नारायण कहते हैं इलाहाबाद के लिए गांधी के मायने सियासी पार्टी के पदाधिकारी से अलग है। यहां मामला संजीदा हो जाता है। मेरी याद में अर्से बाद गांधी परिवार के किसी सदस्य का इतना विस्तृत कार्यक्रम इस शहर के लिए बना है। उनकी यात्रा भले देवरिया से दिल्ली हो लेकिन इस शहर में उसकी अहमियत अलग है। शहर ही नहीं जिले में बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो भावनात्मक रूप से नेहरू और इंदिरा से लेकर राजीव और राहुल तक से खुद को जुड़ा महसूस करता है। हो सकता है यह कहना आज की तारीख में जल्दबाजी हो लेकिर कांग्रेस उपाध्यक्ष अगर दादी और पिता का दस फीसदी भी शहर से जुड़ पाए तो आने वाले चुनाव में परिणाम अलग हो सकते हैं।