प्रयागराज

51 शक्तिपीठों में से एक है मां ललिता देवी, जानें चमत्कारी मंदिर का इतिहास

नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना का दिन है, ऐसे में शक्तिपीठों के दर्शन-पूजन से विशेष लाभ प्राप्त होता है। मां की विशेष साधना के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में रोजाना माता का दिव्य श्रृंगार भी किया जाता है। सुबह करीब 5.30 बजे मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा-अर्चना की जाती है और शाम 7.30 बजे मां की भव्य आरती की जाती है।

प्रयागराजSep 28, 2022 / 06:46 pm

Sumit Yadav

51 शक्तिपीठों में से एक है मां ललिता देवी, जानें चमत्कारी मंदिर का इतिहास

प्रयागराज: पुराणों के अनुसार ऐसा माना गया है कि सिर्फ गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम का ही नहीं बल्कि शक्ति का भी प्रमुख केंद्र है। प्रयागराज में शक्ति की साधना के कई प्रमुख मंदिर है। इन सभी मंदिरों में से एक है मां ललिता देवी का मंदिर है। यह मंदिर शक्ति साधकों के लिए विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह स्थान संगम तट से लगभग 5 किमी की दूरी पर यमुना तट के मीरापुर में स्थित है। वही ललिता देवी मंदिर, पुजारी के अनुसार संगम स्नान के पश्चात् मां ललिता के दर्शन का विशेष महत्व है।
नवरात्रि के नव दिन श्रद्धालुओं की लगती है भीड़

माता के इस शक्तिपीठ के दर्शन के लिए वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दिनों में यहां का महत्वा और भी बढ़ जाता है। क्योंकि नवरात्रि के नौ दिन मां की उपासना का दिन है, ऐसे में शक्तिपीठों के दर्शन-पूजन से विशेष लाभ प्राप्त होता है। मां की विशेष साधना के लिए भक्त दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में रोजाना माता का दिव्य श्रृंगार भी किया जाता है। सुबह करीब 5.30 बजे मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं और पूरे विधि-विधान के साथ देवी की पूजा-अर्चना की जाती है और शाम 7.30 बजे मां की भव्य आरती की जाती है। मां के पवित्र मंदिर में प्रतिदिन सुबह-शाम सप्तचंडी का पाठ और पूजन किया जाता है। साथ ही हर माह अष्टमी तिथि को ललिता देवी का दर्शन-पूजन अत्यंत फलदायी माना जाता है। कुमकुम से अर्चन करने और गुड़हल का फूल अर्पित करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पांच पांडव ने पानी पीने के लिए खोदे थे कुंवा

वही मंदिर पुजारी शिवमूर्त मिश्र के अनुसार, इसका ताल्लुक महाभारत काल से भी माना जाता है । लाक्षागृह के दौरान पांडवों ने यहां पर आकर एक कुएं का निर्माण किया था जिसे पांडुकूप भी कहा जाता है। जो आज चारो ओर से जालियों से ढक दिया गया है साथ ही जो भी भक्त माता के दर्शन करने को आते है तो वो इस कूप का भी दर्शन करते है ।
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जानें क्या है पौराणिक मान्यता

पौराणिक कथा के अनुसार सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा दामाद भगवान शिव का अपमान न सह सकीं तो उन्होंने नाराज होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह उनके शव को लेकर क्रोध में विचरण करने लगे। माता सती से भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काट दिया। चक्र से कटकर अलग होने पर जिन 51 स्थान पर सती के अंग गिरे, वह पावन स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। प्रयाग में सती की हस्तांगुलिका गिरी। प्रयागराज में माता महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वरूप में मां ललिता देवी विराजित हैं।

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