प्रयागराज

राममंदिर का स्वरूप तय हुआ था इस महावीर भवन में, यह है वजह

हर कोई अपने अगुआ को कर रहा याद,आंदोलन का केंद्र विंदु रहा प्रयाग

प्रयागराजNov 11, 2019 / 03:23 pm

प्रसून पांडे

राममंदिर का स्वरूप तय हुआ था इस महावीर भवन में, यह है वजह

प्रयागराज | राम जन्मभूमि पर फैसला आने के बाद उन पुरुधाओं की याद ताज़ा हो गई है। जिन्होंने अपना जीवन रामलला के मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष करते हुए बिता दिया। रामलला जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के आंदोलन का प्रयागराज से गहरा नाता रहा है। कभी इसी संगम की रेती पर बैठकर हिंदुत्व के पुरुधाओ ने भगवान राम को न्याय दिलाने के लिए रणनीति बनाई और विश्वव्यापी संघर्ष किया। आज भले ही वह इस फैसले के वक़्त वो नहीं है। लेकिन आज उन्हें करोड़ों. करोड़ सनातन धर्म के अनुयाई अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

आंदोलन अगुआ की स्मृतियां

अयोध्या फैसला आने के बाद राम मंदिर समर्थकों के मन में एक बार फिर अपने अगुआ अशोक सिंघल की स्मृतियां उतर आई है। विश्व हिंदू परिषद के लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल आजादी के बाद भारतीय इतिहास में ऐसे व्यक्तित्व के रूप में स्थापित हुए जिन्हें राम मंदिर आंदोलन का अगुआ और राम मंदिर आंदोलन के परिचायक के रूप में दुनिया भर में पहचान मिली। राम लाल के लिए संघर्ष करते हुए 17 नवंबर 2015 को सिंघल ने आखिरी सांस ली ।फैसलें के बाद महावीर भवन में उन्हें नमन करने वालों का आना जाना लगा है।

महावीर भवन में हुई संरचना
महावीर भवन से अशोक सिंघल ने राम मंदिर को लेकर देशव्यापी आंदोलन की संरचना तैयार की। जिसने देश की राजनीतिक दिशा और दशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महावीर भवन से मंदिर आंदोलन को जन-जन तक ले जाने के लिए अशोक सिंघल ने अपनी जान लगा दी। यह वह समय था जब प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद रज्जू भैया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक थे । भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व डॉ मुरली मनोहर जोशी के पास था। अशोक सिंघल भी प्रयागराज से हिंदुत्व की लड़ाई को बढ़ाने के लिए पुरजोर कोशिश में लगे थे।तीनों दिग्गजों ने मिलकर इस संघर्ष को आगे बढ़ाया था।

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यहीं स्वीकृत हुआ मंदिर का स्वरूप
विश्व हिंदू परिषद प्रयागराज के महानगर उपाध्यक्ष राजीव भारद्वाज और बब्बन भैया बताते हैं कि 1986 में जब अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि स्थल का ताला खुला तो वहां भव्य राम मंदिर निर्माण की बात शुरू हो गई। 1989 में विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल की अगुवाई मे महाकुंभ में 29 से 30 जनवरी तक प्रति धर्म संसद आयोजित हुई।जिसमें मंदिर निर्माण का संकल्प लिया गया।इसी धर्म संसद में राम मंदिर का प्रारूप स्वीकृत किया गया था। जो अब तक राम मंदिर मॉडल के रूप में देश भर के अलग.अलग स्थानों पर भ्रमण कर राम मंदिर निर्माण के अलख जगाने का काम करता रहा है।

धर्म संसद के नौ प्रस्ताव

ये धर्म संसद कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी जैनेंद्र सरस्वती ने की थी। उन्होंने बताया कि इस धर्म संसद में 9 प्रस्ताव पारित हुए जिसमें एक श्री राम जन्म मंदिर निर्माण के लिए हर गांव से पूजित श्रीराम शिला मंगाने और हर हिंदू में राम मंदिर के निमित्त सवा सवा रुपए भेट स्वरूप देने की भी मांग की गई थी। जिसके बाद भी पूरी ताकत से संकल्प को पूरा करने में जुट गई देवराहा बाबा की उपस्थिति में श्री राम मंदिर के प्रारूप का चित्र देशभर में बांटा गया। 6 करोड़ लोगों तक संपर्क हुआ और पौने तीन लाख गांव में श्रीरामशीला अयोध्या पंहुचाई गई। 9 नवंबर 1989 को संतों ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास किया था।

मोदी को पीएम बनाने की मांग

फैसलें के बाद एक बार अशोक सिंघल की स्मृतियाँ उनके ओजस्वी ओज वाले संबोधन याद किये जा रहे है वो नारे राम मंदिर आंदोलन के वो नारे जिसने भारतीय राजनीत में भी बड़ा उलट फेर किया। अशोक सिंघल ने 2013 के कुंभ के दौरान हुई संसद में नरेद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाये जाने की सबसे पहली मांग रखी। जब तक सिंघल रहे तब तक प्रयाग आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा। देश भर के दिग्गज राजनीतिक चेहरों के आलावा संतो और विद्वानों का जमावड़ा महावीर भवन में होता रहा है।

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