नाथ संप्रदाय की स्थापना आदिनाथ भगवान शिव द्वारा मानी जाती है। आदिनाथ शिव से मत्स्येन्द्रनाथ ने ज्ञान प्राप्त किया। मत्स्येन्द्र नाथ के शिष्य गोरखनाथ हुए। गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित बारह पंथी मार्ग नाथ संप्रदाय के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस संप्रदाय के साधक अपने नाम के आगे नाथ शब्द जोड़ते हैं। कान छिदवाने के कारण इन्हे कनफटा, दर्शन कुंडल धारण करने के कारण दरशनी और गोरखनाथ के अनुयायी होने के कारण गोरखनाथी भी कहा जाता है।
गोरखनाथ के समय में समाज में बड़ी उथल-पुथल थी। मुसलमानों का आगमन हो रहा था। बौद्ध साधना मंत्र-तंत्र, टोने-टोटके की ओर अग्रसर हो रही थी। ब्राह्मण धर्म की प्रधानता स्थापित हो गई थी फिर भी बौद्धों, शाक्तों और शैवों का एक भारी संप्रदाय था जो ब्राह्मण और वेद की प्रधानता को नहीं मानता था। गोरखनाथ के योग मार्ग में ऐसे अनेक मार्गों का संघटन हुआ। इन संप्रदायों में मुसलमान जोगी अधिक थे।
गोरखनाथ ने ब्राह्मणवाद, बौद्ध परम्परा में अतिभोगवाद व सहजयान में आई विकृतियों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने हिंदू-मुसलमान एकता की नींव रखी और ऊंच-नीच, भेदभाव, आडम्बरों का विरोध किया। यही कारण है कि नाथ सम्प्रदाय में बड़ी संख्या में सनातन धर्म से अलगाव के शिकार अस्पृश्य जातियां इसमें शामिल हुईं। नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे अधिक थे। हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों के लोग बड़ी संख्या में नाथ संप्रदाय में शामिल हुए।
इसी संप्रदाय से योगी आदित्यनाथ जुड़े। घर बार छोड़कर गोरक्षपीठ में संत का जीवन जीने लगे। बाद में इन्हे गोरक्षपीठाधीश्वर बनाया गया। राजनीति में प्रवेश के बाद गोरखपुर संसदीय सीट से पांच बार सांसद भी रहे। 2017 में यूपी में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद योगी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। जिसके बाद से ही देश भर के लोग इस संप्रदाय को जानने समझने में खास दिलचस्पी दिखा रहे हैं।