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Mahakumbh 2025 Ground Report: हाथ में नरमुंड, लाल आंखें और योनिकुंड में तांत्रिक सिद्धियां, जानिए किन्नर अखाड़े की रहस्यमई दुनिया का सच…

Kinnar Akhara Story: महाकुम्भ मेला में किन्नर अखाड़ा, आकर्षण का केंद्र बन चुका है। यह सिद्ध कर रहा है कि किन्नर समुदाय का स्थान केवल नाच-गाना करने या शगुन के कार्यक्रमों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे भी आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकते हैं।

प्रयागराजJan 24, 2025 / 02:24 pm

Vikash Singh

Mahakumbh Kinnar Akhara: महाकुम्भ मेला के सेक्टर नंबर 16 के गेट पर लोग सेल्फी ले रहे हैं और फोटो खींच रहे हैं। कुछ लोग अपने दोस्तों और साथियों के कानों में कुछ कह रहे हैं, जबकि अन्य अखाड़ों की तुलना में यहां की भीड़ अधिक उत्साही और रोमांचित नजर आ रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे उन्होंने कोई अद्भुत दृश्य देख लिया हो। जी हां, हम बात कर रहे हैं महाकुम्भ मेला के सबसे चर्चित अखाड़े, किन्नर अखाड़े की। आइए किन्नर अखाड़े की ‘पार्ट 1’ की स्टोरी को जानते हैं…

नाच-गाना करने या शगुन के कार्यक्रमों तक सीमित नहीं हैं किन्नर

महाकुम्भ मेला में किन्नर अखाड़ा, आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह अखाड़ा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में किन्नरों की भूमिका और स्वीकार्यता को लेकर मैसेज भी दे रहा है। यह सिद्ध कर रहा है कि किन्नर समुदाय का स्थान केवल नाच-गाना करने या शगुन के कार्यक्रमों तक सीमित नहीं है, बल्कि वे भी आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकते हैं, जैसा कि अन्य अखाड़े करते हैं।

हाथ में नरमुंड, लाल आंखें और जलती हुई भस्म

अखाड़े के गेट पर एक पीला पोस्टर लगा है, जिसमें लाल और बोल्ड अक्षरों में “किन्नर अखाड़ा” लिखा हुआ है। इसके अंदर, एक भव्य दृश्य दिखाई देता है- हाथ में नरमुंड, लाल आंखें और जलती हुई भस्म। गेट से 50 मीटर अंदर आते ही एक स्थान पर जलती हुई आग दिखाई देती है, जहां तीन किन्नर और दो नागा साधु धुनि रमाए बैठे होते हैं। इन साधुओं में से एक, शिखंडीनंद गिरी महाराज, जो कामाख्या से हैं। उन्होंने जलती हुई आग के बारे में बताया कि यह विशेष हवनशाला है। यहां रात 12 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक सिद्धियां और साधना की जाती है।

सबसे अलग है यह हवनकुंड, जानिए क्या है खास…

किन्नर अखाड़े में बने हवनकुंड की विशेषता इसे अन्य हवनकुंडों से अलग बनाती है। इसे योनिकुंड के आकार में बनाया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य मां कामाख्या की पूजा और दस महाविद्याओं का आह्वान करना है। इस हवनकुंड में तांत्रिक आहुतियां दी जाती हैं, जो शक्ति को केंद्रित करने के लिए होती हैं। यह हवनकुंड किन्नर समुदाय के लिए एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह शक्ति और तंत्र विद्या के के लिए प्रचलित कुंड है।
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हाथ में नरमुंड, लाल आंखें और जलती हुई भस्म

अखाड़े में रखे गए नरमुंड के बारे में शिखंडीनंद गिरी महाराज ने बताया कि यह किन्नर का कपाल है। किन्नर का चेहरा मृत्यु के बाद लोग देख नहीं पाते, इसलिए यह कपाल एक विशेष प्रकार की पहचान है। इसके आंखों में रखा नींबू नकारात्मक शक्तियों को अपने अंदर समाहित करता है, जिसे विभूतिनाथ कहा गया है। यह एक तंत्रिक साधना का हिस्सा है, जो अघोरी साधनाओं से मेल खाता है।
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अघोरी की तरह किन्नर भी करते हैं श्मशान साधना, रात का माहौल बिल्कुल अलग

किन्नर अखाड़ा, अघोरी साधु की तरह श्मशान साधना भी करता है, लेकिन यह सिर्फ रात के 12 बजे से लेकर सुबह 4 बजे तक की अवधि में होती है। शिखंडीनंद गिरी महाराज ने बताया कि इस समय नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रिय होती हैं और यही समय सिद्धियों और तंत्र के माध्यम से नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए निर्धारित किया गया है। इस दौरान सभी सीक्रेट काम और सिद्धियां की जाती हैं, जो अन्य समय में संभव नहीं होतीं।

नासिक, कामख्या, कोलकाता, उज्जैन और काशी से आए हैं किन्नर महामंडलेश्वर

महाकुम्भ मेला में किन्नर अखाड़ा समुदाय के सामाजिक सम्मान और पहचान को भी नया रूप दे रहा है। शिखंडीनंद गिरी महाराज के मुताबिक, यहां नासिक, कामाख्या, उज्जैन, काशी और कोलकाता से किन्नर महामंडलेश्वर आए हैं। यह समुदाय एकजुट होकर समाज में अपनी जगह बनाता है और अपनी शक्ति को दर्शाता है।

जूना अखाड़े से जुड़ा किन्नर अखाड़ा, इंटरनेशनल किन्नर अखाड़ा भी है मौजूद

महाकुम्भ मेला में किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े से जुड़ा हुआ है। नासिक से आईं महामंडलेश्वर संजना नंद गिरी जी ने बताया कि शाही स्नान के दिन वे सबसे पहले जूना अखाड़े जाते हैं और फिर संगम के लिए प्रस्थान करते हैं। किन्नर अखाड़ा का एक इंटरनेशनल रूप भी है, जो दुनिया भर से किन्नर समुदाय को एकजुट करता है और उनकी आध्यात्मिक यात्रा को सपोर्ट करता है।
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आइए अब आगे जानते हैं कि भारत में किन्नरों का इतिहास क्या रहा है…

भारत में किन्नरों का इतिहास सदियों पुराना है। उनके बारे में कई प्रचलित मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार, किन्नर ब्रह्मा के पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए थे, जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार, अरिष्टा और कश्पय किन्नरों के आदिजनक थे। किन्नरों को देवताओं का गायक और भक्त माना जाता था और पुराणों में उनका उल्लेख भी है।

मुगल काल में हरम की रखवाली करते थे किन्नर

मुगल शासन में किन्नरों को कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जाती थी। उदाहरण के तौर पर अकबर के शासनकाल में किन्नर सत्ता के केंद्र में रहती थी। इतिहासकार रूबी लाल अपनी किताब में लिखती हैं कि अकबर के शासन काल में हरम को अलग-अलग हिस्सों में बांटा गया था. इसकी रखवाली की जिम्मेदारी किन्नरों को सौंपी गई थी।
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इतिहास में दर्ज है जावेद किन्नर का नाम, तेज दिमाग से मुगल काल का बना सबसे ताकतवर

मुगल सल्तनत में कई किन्नरों ने काम किया , लेकिन जावेद का नाम इतिहास में दर्ज है। जावेद एक ऐसा किन्नर था जिसे पता था कि मौके पर अपने दिमाग का इस्तेमाल कैसे करना है। उसने ऐसा ही किया और मुगल इतिहास का सबसे प्रभावशाली किन्नर बन गया। किन्नर जावेद की भर्ती मोहम्मद शाह रंगीला के शासनकाल में हुई थी, लेकिन बादशाह की मृत्यु के बाद जावेद एक प्रभावशाली किन्नर बनकर उभरा।
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